अधिगम में योगदान देने वाले व्यक्तिगत और पर्यावरणीय कारक

दोस्तों अगर आप बीटीसी, बीएड कोर्स या फिर uptet,ctet, supertet,dssb,btet,htet या अन्य किसी राज्य की शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इन सभी मे बाल मनोविज्ञान विषय का स्थान प्रमुख है। इसीलिए हम आपके लिए बाल मनोविज्ञान के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक की श्रृंखला लाये हैं। जिसमें हमारी साइट istudymaster.com का आज का टॉपिक अधिगम में योगदान देने वाले व्यक्तिगत और पर्यावरणीय कारक / Factors Contributing to Learning : Individual and Environmental in hindi है।

अधिगम में योगदान देने वाले व्यक्तिगत और पर्यावरणीय कारक

अधिगम में योगदान देने वाले व्यक्तिगत और पर्यावरणीय कारक

सीखने में योगदान देने वाले व्यक्तिगत और पर्यावरणीय कारक

शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए इसके पाँचों अंगों को चुस्त-दुरस्त रखना आवश्यक होता है। इन पाँचों अंगों से सम्बन्धित कारक शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं अतः इन अंगों के कारक ही शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक होते हैं। अतः इनका वर्णन प्रस्तुत है-

1. व्यक्तिगत से सम्बन्धित कारक
(Factor Related to Individual)

व्यक्तिगत से सम्बन्धित कारक अग्रवत् है-

(a) आयु एवं परिपक्वता (Age and Maturity)-

व्यक्ति की आयु बढ़ने के साथ उसकी परिपक्वता भी बढ़ती है। परिपक्वता में उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास भी परिपक्व होने लगता है। 16 वर्ष की उम्र तक व्यक्ति का शरीर पुष्ट एवं उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ एवं कर्मेन्द्रियाँ भी सशक्त हो जाती हैं। मानसिक क्षमताएँ भी परिपक्वता के साथ विकसित हो जाती हैं। जब व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से परिपक्व हो जाता है तो उसके सीखने की गति भी बढ़ जाती है और गति के बढ़ने के साथ-साथ उसके सीखने का स्तर भी बढ़ता जाता है।

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(b) शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health)-


शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अथवा छात्र सीखने में रुचि लेते हैं। थकान का प्रभाव कम होने से ऐसे छात्र जल्दी सीखते हैं। शारीरिक अथवा मानसिक अस्वस्थता के कारण छात्र शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में ठीक ढंग से भाग नहीं ले पाते।

(c) बुद्धि, रुचि, अभिक्षमता एवं अभिवृत्ति (Intelligence, Interest, Aptitude and Attitude)-

सीखने वाले की बुद्धि का प्रभाव सीखने पर होता है, उसकी रुचि, अभिक्षमता एवं अभिवृत्ति सीखने के प्रति होने पर सीखने की गति बढ़ती है इसके विपरीत प्रतिकूल अभिवृत्ति, अभिक्षमता अथवा रुचि होने पर सीखना कम हो जाता है या बन्द हो जाता है।

(d) अभिप्रेरणा एवं सीखने की इच्छा शक्ति (Motivation and will to Learn)-

सीखने के लिए अभिप्रेरणा का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। अभिप्रेरित व्यक्ति जल्दी एवं अधिक सीखता है। छात्र अथवा व्यक्ति की इच्छाशक्ति जितनी प्रबल होती है उतना ही उसका सीखना शीघ्र होता है।

(e) आकांक्षा स्तर एवं उपलब्धि अभिप्रेरणा (Level of Aspiration and Achievement Motivation)-

छात्र का आकांक्षा स्तर जितना उच्च होता है उसके सीखने की तीव्रता भी उतनी ही अधिक होती है। लेकिन एक स्तर से ऊपर आकांक्षा स्तर होने पर तथा उसके अनुरूप परिश्रम नहीं करने पर अथवा परिणाम प्राप्त नहीं होने पर निराशा एवं भग्नाशा भी हो जाती है।

(f) जीवन का लक्ष्य (Goal of Life)-

व्यक्ति जब अपने जीवन का कोई लक्ष्य बना लेता है तो वह उसके अनुरूप आवश्यक शैक्षिक योग्यता प्राप्त करना चाहता है। इस कारण उसका सीखने की प्रक्रिया की गति तेज हो जाती है। वह हर प्रकार से समर्पित होकर सीखना प्रारम्भ करता है और शीघ्र ही वांछित योग्यता प्राप्त कर लेता है।

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2. पर्यावरण से सम्बन्धित कारक
(Factors Related to Environment)

पर्यावरण से सम्बन्धित आवश्यक कारक निम्नवत् हैं-

(a) भौतिक पर्यावरण (Physical Environment)-

शुद्ध वायु, उचित प्रकाश, शान्त वातावरण एवं मौसम की अनुकूलता शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करती है। इनके अभाव में छात्र शीघ्र थक जाते हैं और इस कारण अधिगम प्रक्रिया बाधित होती है।

(b) सामाजिक पर्यावरण (Social Environment)-

यदि परिवार, समाज, समुदाय और विद्यालय आदि सभी स्थानों पर छात्रों को सामाजिक एवं शैक्षिक पर्यावरण मिलता है, तो शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया प्रभावी होती है अन्यथा उसमें बाधा उत्पन्न होती है।

(c) समय (Time)-

शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया किस समय चलती है इसका भी प्रभाव अधिगम पर पड़ता है। गर्म देशों में प्रातःकाल एवं ठण्डे देर्शी में दिन का समय पढ़ने-पढ़ाने के लिए अनुकूल होता है। इसके विपरीत समय में इस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही पढ़ने-पढ़ाने की समयावधि भी इस प्रक्रिया को प्रभावित करती है। छोटे बच्चों के लिए 3 से 4 घण्टे की विद्यालय एवं बड़े बच्चों के लिए अधिकतम 6 घण्टे का विद्यालय पर्याप्त होता है। इससे अधिक समयावधि उबाऊ एवं अरुचिकर होती है। अत: अधिगम को गति मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता।

(d) थकान एवं विश्राम (Fatigue and Rest)-

शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के लिए समय-सारिणी का बड़ा महत्व है। कठिन विषय अल्प समय में ही छात्रों को थका देते हैं। समय सारिणी में इसीलिए कठिन विषयों के पहले एवं सरल विषयों को बाद में स्थान दिया जाता है। कालांशों के बीच में विश्रान्तिकाल (Interval) का भी ध्यान रखा जाता है।

(e) अन्य व्यवस्थाएँ (Other Facilities)-

अध्यापक-छात्र के अन्तर्सबन्ध, सीखने की सामग्री की उपलब्धता, शिक्षण सहायक सामग्री एवं पाठ्य- पुस्तकों की उपलब्धता,प्रयोगशाला, पुस्तकालय, प्रयोग-प्रायोजनाओं की सुविधा आदि भी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रत्यक्ष एंव अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को पूरी करने के लिए अपनाई गई अधिगम व्यवस्था सम्बन्धी कारक भी इसे प्रभावित करते हैं। कुछ अधिगम व्यवस्थाएँ निम्नवत् है-
(1) सम्पूर्ण अथवा खण्ड विधि (Whole of Partile Method)
(ii) उप विषय अथवा संकेन्द्रीय विधि (Topical or Concentric Method)

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                                    निवेदन

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