अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण


अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार की परिभाषा

अप्रस्तुत प्रशंसा का अर्थ है- अप्रस्तुत कथन । जहाँ अप्रस्तुत के वर्णन में प्रस्तुत की प्रतीति हो, वहाँ अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार होता है।
अथवा
जब अप्रस्तुत का वर्णन इस ढंग से किया जाय कि प्रस्तुत का ज्ञान हो, तब अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार होता है।

उदाहरण –  माली आवत देखकर, कलियन करी पुकारि ।
                फूले-फूले चुन लिये, काल्हि हमारी बारि ॥

स्पष्टीकरण – यहाँ माली, कली और फूलों के अप्रस्तुत कथन द्वारा ‘काल, युवा- पुरुषों और वृद्ध जनों का अर्थ प्रस्तुत किया गया है। काल को आता देखकर युवा पुकार उठते हैं कि यह वृद्धों को ले जा रहा है, थोड़े समय में हम भी वृद्ध हो जायेंगे और फिर हमारी भी बारी आ जायेगी।’

उदाहरण क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो ।
                उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो॥

स्पष्टीकरण – यहाँ अप्रस्तुत सर्प के विशेष वर्णन से सामान्य अर्थ की प्रतीति होती है कि शक्तिशाली पुरुष को ही क्षमादान शोभती है। यहाँ अप्रस्तुत प्रशंसा है।

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अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार के अन्य उदाहरण

(1) दिन दस आदर पाय कै, करि लै आप बखान |
जौ लौं काग सराध पख, तौ लौं तो सनमान  ||

स्पष्टीकरण – यहां अप्रस्तुत काग के द्वारा किसी नीच अधिकारी का वर्णन किया गया है । अतः यहाँ पर अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार है।

(2) भूमि सयन वल्कल वसन, असन कंद फल मूल |

स्पष्टीकरण – यहां पर रामचंद्र जी के वन के कष्टों का वर्णन करते सीता जी को अपने साथ वन जाने का निषेध किया है | अतः यहाँ अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार है।

(3) नहीं पराग नहीं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल |
अली  कली   ही सौं   बँध्यो,  आगे   कौन   हवाल ||

स्पष्टीकरण –  यहां अप्रस्तुत भोरे के बहाने कवि ने राजा जयसिंह को सचेत होने का उपदेश दिया है। अतः यहाँ अप्रस्तुता प्रशंसा अलंकार है।





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