भारतीय स्वतन्त्रता की स्वर्ण जयन्ती पर निबंध / भारत की स्वतंत्रता का उत्साह पर निबंध

आपको अक्सर स्कूलों में निबंध लिखने को दिया जाता है। ऐसे में हम आपके लिए कई मुख्य विषयों पर निबंध लेकर आये हैं। हम अपनी वेबसाइट istudymaster.com के माध्यम से आपकी निबंध लेखन में सहायता करेंगे । दोस्तों निबंध लेखन की श्रृंखला में हमारे आज के निबन्ध का टॉपिक भारतीय स्वतन्त्रता की स्वर्ण जयन्ती पर निबंध / भारत की स्वतंत्रता का उत्साह पर निबंध है। आपको पसंद आये तो हमे कॉमेंट जरूर करें।

भारतीय स्वतन्त्रता की स्वर्ण जयन्ती पर निबंध / भारत की स्वतंत्रता का उत्साह पर निबंध

भारतीय स्वतन्त्रता की स्वर्ण जयन्ती पर निबंध / भारत की स्वतंत्रता का उत्साह पर निबंध

रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) संसद में स्वर्ण जयन्ती समारोह, (3) राष्ट्रीय परेड (4) डाक टिकट, सिक्के एवं पदक, (5) उपसंहार।

प्रस्तावना-

खिल उठी कली नया विकास आ गया।

स्वतन्त्रता दिवस लिए नया प्रभात आ गया ॥

द्वार-द्वार सज गये खुशी के दीप जल गये।

गीत गा उठे सभी तार-तार बज गये ॥

एकता की राह पर शान्ति दीप जल गया।

स्वतन्त्रता दिवस लिए नया प्रभात आ गया ।।

स्वाधीनता संग्राम की परिणति 1947 में हुई। हमारा देश ब्रिटिश शासन की गुलामी से 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ। स्वतन्त्रता के पचास वर्ष पूरे होने पर सम्पूर्ण देश में स्वर्ण जयन्ती मनाने का आयोजन किया गया। 14 अगस्त, 1997 की मध्य रात्रि से आरम्भ हुए आयोजनों का सिलसिला पूरे वर्ष चला। जो भारतीय विदेशों में रह रहे थे, वे भी इस हर्षोल्लास में सम्मिलित हुए। 15 अगस्त को देश भर में प्रातः स्कूली बच्चों ने प्रभात फेरियाँ निकालीं और सांस्कृतिक कार्यकम आयोजित किये। इसके अतिरिक्त खेल-कूद प्रतियोगिताएँ और प्रदर्शनियाँ लगाई गईं। देश की राजधानी दिल्ली को दुलहन की तरह सजाया गया । इसी प्रकार सरकारी संस्थाओं में भी कर्मचारियों ने स्वर्ण जयन्ती मनायी। भारतीय रेलवे ने तो ‘सफलताओं के पचास वर्ष : एक झलक’ के प्रदर्शन के लिए एक पूरी रेलगाड़ी को ही सजा कर राष्ट्र को समर्पित किया।

See also  21 वीं सदी का भारत पर निबंध / essay on 21th century of India in hindi

संसद में स्वर्ण जयन्ती समारोह—

स्वर्ण जयन्ती का मुख्य समारोह राजधानी में 14 अगस्त की मध्य रात्रि को ठीक उसी समय, उसी स्थान पर 50 वर्ष पश्चात् संसद के केन्द्रीय हाल में प्रारम्भ हुआ, जहाँ स्वतन्त्रता प्राप्ति का जश्न मनाया गया था। इसमें देश के प्रधानमन्त्री इन्द्र कुमार गुजराल, राष्ट्रपति डॉ० के० आर० नारायणन्, लोकसभा अध्यक्ष पी० ए० संगमा तथा देश के अन्य बहुत से नेताओं ने शहीदों को मौन श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रसिद्ध गायक भीमसेन जोशी ने राष्ट्रीय गीत ‘बन्दे मातरम्’ गाया। इसके पश्चात् महात्मा गांधी, सुभाषचन्द्र बोस और जवाहरलाल नेहरू की टेप की हुई आवाजें गूँज उठीं। प्रसिद्ध कोकिल कंठ गायिका लता मंगेशकर ने ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ गाकर सभी को मन्त्र मुग्ध कर दिया।

राष्ट्रीय परेड-

नेशनल स्टेडियम से ठीक 9 बजे 60 झाँकियों का जुलूस राजपथ होते हुये विजय चौक के लिए अग्रसर हुआ। जुलूस का नेतृत्व तीनों सेनाओं के बैण्ड सलामी देते हुए कर रहे थे। इसके बाद स्वतन्त्रता सेनानियों की 50 खुली जीपों का जत्था था। झांकियों अलग-अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। प्रथम झाँकी एक घण्टे में तीन किलोमीटर का सफर तय करके राष्ट्रपति भवन के समीप विजय चौक पर पहुँची थी। प्रत्येक झाँकी के मध्य में भारतीय सेना के चार जवान तिरंगा झण्डा लेकर मार्च कर रहे थे। नेशनल स्टेडियम से लेकर विजय चौक तक सड़क के दोनों ओर हजारों लोग भारत माता की जय के नारे लगा कर झाँकियों में सम्मिलित लोगों को उत्साहित कर रहे थे।

अधिकांश झाँकियाँ राष्ट्र के प्रति आस्था व्यक्त कर रहीं थीं। सम्पूर्ण राजपथ पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाई पड़ रहे थे। मार्ग में जगह-जगह अभिनन्दन ‘ द्वार बनाये गये थे। इस परेड में महात्मा गाँधी, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और भारतीय प्रगति की झाँकियाँ विशेष आकर्षण का केन्द्र बनी हुई थीं । आतिशबाजी के भव्य कार्यक्रम ने भी दर्शकों को प्रफुल्लित किया। विजय चौक पर भव्य समारोह में प्रधानमन्त्री को राष्ट्रीय ध्वज अर्पित किया गया। दर्शकों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों का खूब आनन्द लूटा। इस परेड का दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण किया गया। जो लोग परेड देखने दिल्ली नहीं पहुँच सके थे, वे अपने घरों पर टी० वी० पर इस परेड को देखकर आनन्दित हुए।

See also  मेरी प्रिय पुस्तक अथवा रामचरित मानस पर निबंध / essay on my favourite book in hindi

इतना उत्साह और जोश में 1947 के पश्चात् अब पुनः दिखाई दिया। जनता डाक टिकिट, सिक्के एवं पदक-इस अवसर पर 2 रुपये का विशेष डाक टिकिट जारी किया गया। 50 पैसे और 50 रुपये के दो सिक्कों का सैट प्रधानमन्त्री ने राष्ट्रपति को भेंट किया। इसी प्रकार एक 10 ग्राम सोने का सिक्का भी जारी किया गया। सेना के 89 जवानों और अधिकारियों को वीरता के लिए पदक प्रदान किये गये। इसी अवसर पर 15 पुलिस कर्मियों को भी पदक प्रदान करके सम्मानित किया गया।

उपसंहार-

15 अगस्त के ध्वजारोहण समारोह का प्रारम्भ प्रसिद्ध शहनाई वादक बिसमिल्ला खाँ के शहनाई वादन से हुआ। इस महान् कलाकार ने 50 वर्ष पूर्व इसी दिन यहाँ लाल किले में अपनी शहनाई की गूंज सुनाई थी। इसके पश्चात् प्रधानमन्त्री ने जनता को सम्बोधित करते हुए कहा- हम सबका कर्त्तव्य है कि गाँधी जी और अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए जो कुर्बानी दी, उसे सदैव याद रखें। पिछले पचास वर्षों में भारतवासी न केवल मिल-जुलकर रहे हैं, अपितु वे एक राष्ट्र के रूप में संगठित हुए हैं।

भारत के स्वाधीन होने के बाद के पचास वर्षों में भारतवासी आशा, उद्यम, कठोर- वास्तविकताओं और विनाशकारी घड़ियों, निरंकुश शासन की विभीषिका और लोकतन्त्र की पुनः स्थापना के दौर से गुजरे हैं। इसके बावजूद इन वर्षों में विकास की प्रक्रिया जारी रही है। हालांकि इसकी गति कभी मन्द भी हुई। आज भारत 21वीं शताब्दी में प्रवेश करने वाला है और वह निरक्षरता तथा अभाव के दिनों से बहुत आगे जा चुका है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है-

See also  लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल पर निबंध / essay on Vallabhbhai Patel in hindi

“जिसको न निज गौरव तथा, निज देश का अभिमान है,

वह नर नहीं है, पशु निरा है, और मृतक समान है।”

👉 इन निबंधों के बारे में भी पढ़िए

                         ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

आपको यह निबंध कैसा लगा । क्या हमारे इस निबंध ने आपके निबंध लेखन में सहायता की हमें कॉमेंट करके जरूर बताएं । दोस्तों अगर आपको भारतीय स्वतन्त्रता की स्वर्ण जयन्ती पर निबंध / भारत की स्वतंत्रता का उत्साह पर निबंध अच्छा और उपयोगी लगा हो तो इसे अपने मित्रों के साथ जरूर शेयर करें।

Leave a Comment