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मदर टेरेसा पर निबंध / essay on Mother Teresa in hindi
रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) जन्म, (3) भारत आगमन, (4) मानव सेवा, (5) उपसंहार।
प्रस्तावना –
क्षुधार्थ रन्तिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थि-जाल भी।
उशीनर क्षितीस ने स्वमाँस दान भी दिया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्यों डरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ॥
मानव जीवन की सार्थकता मनुष्य मात्र की सेवा करना है। सेवा एक ऐसी सर्वोत्तम भावना है जो मानव को सच्चा मानव बनाती है ।मानवता के प्रति प्रेम को किसी संकुचित परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। जिस व्यक्ति के मन में ममता, करुणा और सेवा की भावना हो, वह अपना सम्पूर्ण जीवन मानव सेवा में अर्पित कर देता है। विश्व में मानव की निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वाली अनेक विभूतियाँ हुई हैं, उनमें मदर टैरेसा का नाम अग्रणीय है। उन्हें ममता, प्रेम, करुणा और सेवा की साक्षात मूर्ति कहा जा सकता है।
जन्म-
मदर टैरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 में यूगोस्लाविया के स्कोपजे नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम अल्बेनियन था। वे बिल्डिंग बनाने के ठेकेदार थे। इनके माता-पिता धार्मिक विचारों के थे। बारह वर्ष की आयु में ही इन्होंने जीवन का लक्ष्य निश्चित कर लिया था। 18 वर्ष की अवस्था इन्होंने नन बनने का निर्णय कर लिया। इसके लिए वे आयरलैंड के लोरेटो ननों के केन्द्र में सम्मिलित हो गयीं। वहाँ से उन्हें भारत जाने का आदेश मिला।
भारत आगमन–
सन् 1929 में मदर टैरेसा एग्नेस लोरेटो एटेली स्कूल कलकत्ता में अध्यापिका के रूप में आयीं। अपनी योग्यता,कर्त्तव्यनिष्ठा तथा सेवा-भाव के कारण वे प्रिंसिपल बन गयीं। लेकिन इससे इनके मन को सन्तोष नहीं था। पीड़ित मानवता की पुकार इन्हें पुकार रही थी। ये 10 दिसम्बर, 1946 को रेल से दार्जलिंग की यात्रा कर रही थीं, उसी समय इन्हें ऐसा लगा कि भीतर से कोई कह रहा है कि स्कूल छोड़कर गरीबों के बीच रहकर उनकी सेवा करनी होगी। इन्होंने स्कूल छोड़ दिया और सन् 1950 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। इससे पूर्व सन् 1948 में इन्होंने कलकत्ता में झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए स्कूल की स्थापना की। फिर ‘निर्मल हृदय’ नामक धर्मशाला की स्थापना की, जहाँ असहाय लोगों को आश्रय दिया गया। ये अपनी सहयोगिनी ननों के साथ सड़कों तथा गलियों में पड़े हुए रोगियों का इलाज ‘निर्मल हृदय’ में करती थीं।
मानव सेवा–
आरम्भ में ये मरणासन्न रोगियों की तलाश में शहर भर में घूमती रहती थीं। पहले ये क्रोकलेन में रहती थीं और बाद में सर्कुलर रोड पर रहने लगीं। अब यह इमारत ‘मदर हाउस’ के नाम से विश्व में प्रसिद्ध है। सन् 1952 में पहला ‘निर्मल हृदय’ केन्द्र स्थापित किया गया था। आज यह संस्था 120 देशों में कार्यरत है। यह संस्था 169 शिक्षण संस्थाओं, 1369 उपचार केन्द्रों और 755 आश्रय गृहों का कुशलतापूर्वक संचालन कर रही है।
मदर टैरेसा अत्यन्त सहनशील और करुणामयी थीं। रोगियों, वृद्धों, भूखे, नंगे और गरीबों के प्रति इनके मन में असीम ममता थी। इन्होंने 50 वर्षों तक दुखियों और लाचारो की अथक् सेवा की तथा अनाथ तथा विकलांग बच्चों के जीवन में आशा की रोशनी पहुँचाने में युवावस्था से जीवन की अन्तिम साँस तक प्रयास किया। भारत सरकार ने इनकी इन सेवाओं के लिए इन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। मदर टैरेसा हृदय रोग से पीड़ित थीं। सितम्बर, 1997 में इनका स्वर्गवास हो गया।
उपसंहार-
पीड़ित मानवता की तन-मन-धन से सेवा करने वाली मदर टैरेसा हमारे बीच नहीं रहीं। हमें इनके दिखाये मार्ग पर चलते हुए अनाथ, असहाय और बीमारों की सेवा का व्रत लेना चाहिए, यही इनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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