राष्ट्रीय उत्थान का आधार नैतिकता पर निबंध / essay on ethics in hindi

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राष्ट्रीय उत्थान का आधार नैतिकता पर निबंध / essay on ethics in hindi

राष्ट्रीय उत्थान का आधार नैतिकता पर निबंध / essay on ethics in hindi

रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) नैतिकता क्या है ?, (3) उत्थान का आधार-नैतिकता, (4) परिवर्तन कैसे लाया जाय, (5) उपसंहार ।

प्रस्तावना – 

एक समय था। जब भारतवासी घरों में ताले नहीं लगाते थे। घी-दूध की नदियाँ बहती थीं। पिछली कुछ शताब्दियों से हमारे नैतिक मूल्यों में निरन्तर ह्रास हो रहा है। आखिर इसका कारण क्या है ? भारत धर्म-प्रधान देश रहा है। अधिकांश भारतवासियों के जीवन में धर्म एक प्रेरक शक्ति के रूप में विद्यमान है। कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि पड़ोसी की विपत्ति में सहायता न करो या किसी को कष्ट पहुँचाओ या किसी का सामान चुराओ। सभी धर्म ईमानदारी और सच्चाई, दूसरों का ध्यान रखना, बड़े-बूढ़ों के प्रति आदर, पशुओं के प्रति दया, दीन-दुखियों के प्रति सहानुभूति जैसे चरित्र के आधारभूत गुणों पर बल देते हैं। फिर धर्म-प्रधान देश में नैतिकता का इतना पतन क्यों ?

नैतिकता क्या है? – 

नैतिकता की कोई सर्वमान्य परिभाषा देना सम्भव नहीं, क्योंकि सामाजिक परिभाषाएँ सर्वदा व्यक्ति और परिस्थिति सापेक्ष्य हुआ करती हैं। किसी जैन साधु के पैरों तले यदि चींटी भी मर जाय तो हिंसा है, जबकि देश की रक्षा के लिए सैकड़ों शत्रुओं को अपनी गोली से मृत्यु की गोद  में सुलाने वाला सैनिक हिंसक नहीं कहा जायेगा, क्योंकि उसका कर्त्तव्य वही है। कर्त्तव्य की अवहेलना करना अनैतिकता है। इन सभी बातों पर यदि गहराई से विचार किया जाय तो हमारी दृष्टि से यह परिभाषा हो सकती है-परहित की भावना से की गयी समस्त क्रियाएँ या कार्य नैतिक तथा स्वार्थ की संकुचित सीमाओं में जकड़ी हुई समस्त क्रियाएँ अनैतिक कही जा सकती हैं।

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उत्थान का आधार नैतिकता – 

किसी भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र की उन्नति और पतन के मूल आधार उसके अपने नैतिक और अनैतिक कार्य होते हैं। विधि की विडम्बना कुछ ऐसी है कि अनैतिकता जितनी जल्दी फलदायी होती है, उतनी नैतिकता नहीं । मनुष्य जो कुछ देखता है, उसी को प्राप्त करने लिए प्रयास करने लगता है, उचित-अनुचित पर विचार नहीं करता, नीति एवं न्याय-संगत बातों पर उसका ध्यान नहीं जाता और वह अनैतिकता पर उतर आता है।

यह अनैतिकता उसे भौतिक दृष्टि से सम्पन्नता तो दिला देती है, परन्तु उसका आत्मिक पतन हो जाता है। भौतिक सम्पन्नता व्यक्ति, समाज और राष्ट्रों में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा आदि निन्दनीय भावनाओं की वृद्धि करती है, जिनका परिणाम होता है – परस्पर झगड़ा, मारकाट, लूट-खसोट या छीना-झपटी। इस मारकाट में कुछ मर जाते हैं, कुछ शेष बच जाते हैं और अन्त में इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उत्थान का आधार नैतिकता है, अनैतिकता नहीं। प्रत्येक व्यक्ति, समाज और की कहानी यही है। जो युगों-युगों से चली आ रही है। इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

परिवर्तन कैसे लाया जाय? –

समाज और राष्ट्र का निर्माण व्यक्तियों से होता है। व्यक्तियों की विचारधारा ही उस समाज और राष्ट्र की प्रगति और अवनति का आधार होती है। अतः व्यक्ति की विचारधारा के बदलते ही समाज और राष्ट्र का स्वरूप भी बदल जाता है। व्यक्ति के विचार भी बदलते हैं—कभी दूसरों को देखकर, कभी ठोकर खाकर और कभी अच्छा साहित्य पढ़कर। दूसरों को देखकर विचारों को बदलने का नाम अनुकरण है।

अनुकरण सदैव बड़ों का किया जाता है। बड़े कौन हैं? एक दृष्टि से बड़े वे हैं जो भौतिक दृष्टि से सम्पन्न हैं और दूसरी दृष्टि से दे बड़े हैं, जिन्होंने समाज और राष्ट्रहित में अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। इतिहास में भौतिक दृष्टि से सम्पन्न न जाने कितने व्यक्ति हुए, परन्तु इतिहास के कुछ विद्यार्थियों को छोड़कर कोई उनका नाम तक नहीं जानता, जबकि देश-भक्तों, समाज सेवियों की समाधियों पर हम आज भी मस्तक झुकाकर श्रृद्धा के फूल अर्पण करके सच्ची श्रद्धांजलि देते हैं। इस पर जन-सामान्य विचार नहीं करता, जो विचार करता है, उसमें परिवर्तन आ जाता है। वाल्मीकि बदले, सूर बदले, रहीम बदले और न जाने कौन-कौन बदले।

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उपसंहार-

तुलसीदास ने सैकड़ों वर्ष पहले रामचरित मानस के काण्ड में लिखा है-

सुन्दर सचिव, वैद्, गुरु तीनों, प्रिय बोलहिं भय आस ।

राज, धर्म, तन तीनि कौ, होइ बेगि ही नास ।।

आज भी यह बात उतनी ही सत्य है, जितनी वर्षों पूर्व थी। घर-घर में सुन्दर काण्ड का पाठ होता है, परन्तु कोई जानता तक नहीं कि ‘सचिव’ का अर्थ कितना व्यापक है। हर व्यक्ति का उचित और नैतिक सलाहकार उसका सचिव है। अतः सचिव का कार्य है-नैतिकता का सच्चा पाठ पढ़ाना, जिससे हम न्याय-संगत और परोपकारी-पथ पर अग्रसर हों और राष्ट्र के उत्थान का पथ-प्रशस्त हो ।

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