राष्ट्रीय एकता पर निबंध / essay on National unity in hindi

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राष्ट्रीय एकता पर निबंध / essay on National unity in hindi

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रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता, (3) राष्ट्र भाषा, (4) राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के उपाय, (5) उपसंहार ।

प्रस्तावना –

प्राचीन काल में जब-जब देश में राष्ट्रीय एकता की कमी हुई, तभी देश संकट में पड़ा। पोरस को विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर से एवं पृथ्वीराज चौहान को मुहम्मद गौरी से पराजित होना पड़ा और देश में पहले यूनानी तथा बाद में इस्लामी शासन स्थापित हुआ। फिर देश अंग्रेज़ी शासन के चंगुल में फँसा । भारत माता गुलामी की बेड़ियों में जकड़ दी गयी। देश का आर्थिक शोषण हुआ। इस दुर्दशा से महात्मा गाँधी आदि देशभक्तों की आत्मा को बड़ा कष्ट हुआ और उन्होंने आजादी का बिगुल बजाया। राष्ट्रीय चेतना जाग्रत हुई, राष्ट्रीय एकता स्थापित हुई, जिसके परिणामस्वरूप देश स्वतंत्र हुआ। भिन्न-भिन्न प्रदेशों को केन्द्रीय शासन सूत्र में पिरोकर राजनैतिक एकता स्थापित की गयी, परन्तु राष्ट्रीय एकता नहीं रह पाई। इसके प्रमुख कारण विविध धर्म, जाति भाषा और प्रान्तीयता आदि की भिन्नताएँ हैं।

राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता – 

भारत की एकता उसकी विविधताओं में छिपी हुई है। आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्र हित को सर्वोपरि समझते हुए स्वार्थों का त्याग कर दिया जाये। एकता राष्ट्र को शक्ति देती है। इसके अभाव में राष्ट्र निर्बल होकर टूट जाता है। एकता राष्ट्र का प्राण है। जब तक वह कायम रहती है, राष्ट्र कायम रहता है। जब वह टूटती है; राष्ट्र टूट जाता है,राष्ट्र बिखर जाता है।

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इस सम्बन्ध में पं० जवाहरलाल नेहरू के विचार महत्त्वपूर्ण हैं-“हमें सीमित, संकीर्ण, प्रान्तीय, साम्प्रदायिक एवं जातिगत भावना मन में नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि हमें बहुत बड़े उद्देश्य को प्राप्त करना है। हमें भारतीय गणतन्त्र के नागरिक होने के नाते सीधे खड़े होना है। आकाश को आगे-पीछे देखना है। हमें अपने कदमों को धरती पर मजबूती से जमाना है एवं एकता को भारतीय जनता में उत्पन्न करना है। राजनैतिक एकता तो किसी सीमा तक प्राप्त हो चुकी है, किन्तु मैं जिस तथ्य के पीछे हूँ, वह इससे कुछ अधिक गहरा है अर्थात् देश के लोगों को भावनात्मक रूप में एक होना, जिससे हम एकता का निर्माण कर सकें, हम सभी विविधताओं के होते हुए इस एकता को बनाए रखें।”

राष्ट्र भाषा—

राष्ट्रीय एकता की बहुत बड़ी पहचान है—राष्ट्र भाषा । सम्पूर्ण राष्ट्र की एक राष्ट्रीय भाषा हो, यह अनिवार्य है। भारत की राष्ट्र भाषा सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में पिरो सकती है। संविधान ने हिन्दी को राजभाषा माना है। भारत की राजनीति ने राष्ट्रीय एकता के इस सूत्र को अपमानित करके छोड़ दिया।

राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के उपाय-

साम्प्रदायिकता और जातीय भेद-भाव एक भयंकर समस्या है। इसी ने देश का विभाजन कराया। यह आज भी राष्ट्रीय एकता के लिए अभिशाप बनी हुई है। हमारे देश में अनेक सम्प्रदाय हैं, जो छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे से लड़ते हैं। जी० एस० घुरिये के अनुसार, “यह जाति-प्रेम की भावना ही है, जो अन्य जातियों में कटुता उत्पन्न करती है और राष्ट्रीय चेतना के विकास के लिए अनुपयुक्त वातावरण तैयार करती है।” क्षेत्रीयता की भावना बहुत हानिकारक है। केवल अपने क्षेत्र के प्रति उनमें निष्ठा होती है।

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भाषावाद भी बहुत अहितकर है। इन समस्याओं का समाधान राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है। हमें स्वार्थ के संकुचित घेरे से बाहर निकलकर आपसी सद्भाव के साथ एक-दूसरे के निकट आना चाहिए और सभी के हित के लिए राष्ट्रीय एकता की फिर से स्थापना करनी चाहिए। पृथकतावादी आन्दोलनों का दमन राष्ट्रीय एकता के लिए परम आवश्यक सकते हैं। अन्तर्प्रादेशिक उत्सवों, मेलों एवं सम्मेलनों के आयोजनों से भी राष्ट्रीय एकता कायम हो सकती है। एक राष्ट्रगान, एक राष्ट्रध्वज, एक राष्ट्रचिह्न और राष्ट्रीय पर्व भी राष्ट्रीय एकता के सहायक तत्त्व हैं।

उपसंहार-

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय एकता वह संजीवनी बूटी है जो मरणासन्न राष्ट्र की प्राण-रक्षा करती है। राष्ट्र का निर्माण अनेक बलिदानों, तपस्या और साधना से हुआ है। हमें इसकी एकता प्राण-प्रण से बनाये रखनी चाहिए। हमारे साहित्यकारों, कलाकारों , धर्मगुरुओं, राजनीतिज्ञों आदि का यह परम कर्त्तव्य है कि वे अपने सद्प्रयासों से राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने में अपना अमूल्य योगदान करें।

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