लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल पर निबंध / essay on Vallabhbhai Patel in hindi

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लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल पर निबंध / essay on Vallabhbhai Patel in hindi

लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल पर निबंध / essay on Vallabhbhai Patel in hindi


रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) जन्म और शिक्षा, (3) कार्य-क्षेत्र,
(4) उपसंहार।

प्रस्तावना-

सरदार बल्लभभाई पटेल एक ऐसा व्यक्तित्व है जो न केवल भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के वीर सेनानी थे, बल्कि जिसने स्वतन्त्र भारत को  एक सूत्र में पिरो दिया। सन् 1947 में जब देश स्वतन्त्र हुआ तो अंग्रेज भारत की 534 देशी रियासतों को आजाद बने रहने की ऐसी छूट दे गये, जिसके रहते देश टुकड़े-टुकड़े हो जाता। सरदार पटेल ने प्रयास करके सबको एक केन्द्रीय सरकार के नीचे ला खड़ा किया। गाँधी जी की प्रेरणा से बारडोली के किसानों को संगठित करके उन्होंने देश में जागरण की नयी ज्योति प्रज्वलित की । अपनी उभरती हुई वकालत को छोड़कर आपने राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और त्याग का एक नया आदर्श लोगों के सामने प्रस्तुत किया। बारडोली की
सफलता से उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली और भारत के देशी राज्यों को स्वतन्त्र भारत में मिलाने के महान् कार्य से वे लौह-पुरुष के नाम से प्रसिद्ध हुए।

जन्म और शिक्षा-

सरदार बल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 गुजरात के करमसद गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम झबेरभाई था। सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ अंग्रेजों लोहा ले चुके थे। सरदार बल्लभभाई पटेल उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्हें मैट्रिक के बाद ही मुख्तारी की परीक्षा पास करके नौकरी करनी पड़ी। कुछ धन अर्जित करके सन् 1910 में आप विदेश गये और सन् 1913 में बैरिस्टर बनकर स्वदेश वापस लौटे।

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कार्य-क्षेत्र–

सरदार बल्लभभाई पटेल फौजदारी के प्रसिद्ध वकील थे। वे आराम की जिन्दगी व्यतीत कर सकते थे, लेकिन देश की सेवा उनके जीवन का परम लक्ष्य था। सन् 1915 में गाँधी जी ने अहमदाबाद को केन्द्र मानकर देश सेवा का कार्य आरम्भ कर दिया था। सरदार बल्लभभाई पटेल की यद्यपि सार्वजनिक कार्यों में पर्याप्त रुचि थी, परन्तु उन्हें यह समझते देर न लगी कि वकालत करके धन कमाने का जीवन और देश सेवा का जीवन साथ-साथ नहीं चल सकता।

अतः चलती हुई वकालत को छोड़कर वे स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। सन् 1916 से 1945 तक के प्रत्येक आन्दोलन में सरदार बल्लभभाई पटेल ने सक्रिय भाग लिया और शीघ्र ही वे देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय नेताओं में गिने जाने लगे। खेड़ा सत्याग्रह, बारडोली आन्दोलन, डाण्डी यात्रा, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह और अन्त में ‘भारत छोड़ो’ राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार बल्लभभाई पटेल सबसे आगे थे। सरदार बल्लभभाई पटेल स्पष्ट वक्ता और दृढ़ प्रतिज्ञ थे। उन्हें उनके मार्ग से कोई विचलित नहीं कर सकता था। जो निश्चय कर लेते, उसे पूरा करके ही छोड़ते थे।

उपसंहार-

देश स्वतन्त्र हुआ, लेकिन साथ ही विभाजित भी हो गया । शान्ति स्थापित करने की अनेकों विस्थापितों को बसाने की और देशी राज्यों को देश की मुख्य धारा से जोड़ने की समस्याएँ भारत के प्रथम गृह-मन्त्री के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल के सामने थीं। वे इनसे विचलित नहीं हुए। बड़ी दृढ़ता तथा सूझ-बूझ से उन्होंने शीघ्र ही इन समस्याओं का समाधान किया। 15 सितम्बर, 1950 को जब उनका देहान्त हुआ तो वे विरासत में हमारे लिए एक संगठित और सुदृढ़ विशाल भारत छोड़ गये। उनके निधन पर पंडित जवाहरलाल नेहरू
ने कहा था, “इतिहास उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और भारत को संगठित करने वाले के रूप में याद रखेगा। स्वतन्त्रता युद्ध के वे एक महान् सेनानी थे।”


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