सरदार भगत सिंह पर निबंध / essay on Sardar Bhagat Singh in hindi

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सरदार भगत सिंह पर निबंध / essay on Sardar Bhagat Singh in hindi

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सरदार भगत सिंह पर निबंध / essay on Sardar Bhagat Singh in hindi

रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) जीवन-परिचय, (3) स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान, (4) उपसंहार ।

प्रस्तावना –

भारतीय स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर जिन सपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान किया, उनमें सरदार भगतसिंह का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। आचार्य नरेन्द्र देव के शब्दों में, “सरदार भगत सिंह का नाम सुनते ही हमारे हृदय में एक अजीब उत्साह उत्पन्न हो जाता है। मानवीय दुर्बलताएँ दूर हो जाती हैं और व्यक्ति अपने को एक नये संसार में पाता है।” देश में आंदोलन की लहर चल रही थी, जिसे क्रान्तिकारी आंदोलन के नाम से जाना जाता है। लाला हरदयाल, राजा महेन्द्र प्रताप, बरकतुल्ला तथा भगतसिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ने इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। पंजाब, उत्तर प्रदेश और बंगाल सहित इस आन्दोलन की शाखाएँ देश के अनेक क्षेत्रों और विदेशों में भी फैली हुई थीं।

भगतसिंह इस भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन में सर्वाधिक ज्वाज्वल्यमान नक्षत्र बनकर जगमगा उठे थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए उन्होंने सशस्त्र संघर्ष को अनिवार्य बताया और स्वयं इस मार्ग पर चलकर संसार के समक्ष बलिदान की बेजोड़ मिसाल प्रस्तुत की। फलतः वे युवकों के प्रेरणा स्रोत बन गये । क्रान्तिकारी आन्दोलन को उन्होंने समाजवादी विचारधारा से जोड़कर उसे एक नई दिशा भी प्रदान की।

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जीवन परिचय-

सरदार भगतसिंह का जन्म अक्टूबर, 1907 में पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) जिले में हुआ था। उनकी माँ का नाम विद्यावती, पिता का नाम किशनसिंह और दादा का नाम अर्जुनसिंह था। देश-प्रेम और स्वतन्त्रता संघर्ष की भावना परिवार के इन सभी व्यक्तियों के हृदय में हिलोरें मार रहा था। भगतसिंह के बचपन में पिता किशनसिंह, चाचा स्वर्णसिंह तथा अजीतसिंह विदेशी शासन के कारागार में बन्द थे। राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत इस प्रेरक वातावरण ने बालक भगतसिंह पर अमिट प्रभाव डाला और उनमें क्रान्तिकारी भावनाओं का प्रादुर्भाव किया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की एक पाठशाला में हुई। फिर दयानन्द एंग्लो वैदिक कालेज, लाहौर से उन्होंने मैट्रिकुलेशन पास किया।

उन दिनों भारतीयों पर विदेशी सरकार द्वारा तरह-तरह के अत्याचार किये जा रहे थे। लोग आँसू के घूँट पीने को मजबूर । इस विदेशी अत्याचार के विरुद्ध युवक भगतसिंह के हृदय में विद्रोह की आग धधक उठी और उनका मन शिक्षा से उचट गया। वे राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़ने के लिए आतुर हो उठे। राष्ट्रीय आंदोलन के दमन के लिए ब्रिटिश सरकार ने रोलेट ऐक्ट पास किया जिसके विरोध में गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन का नारा दिया। पंजाब इस आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया था। सन् 1923 में भगतसिंह ने बी० ए० प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया। इन्हीं दिनों वे क्रान्तिकारी आंदोलन के सक्रिय सदस्य हो गये।

स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान-

भगतसिंह ने रूस, फ्रांस और आयरलैण्ड के क्रान्तिकारी आंदोलन का अध्ययन किया और उनसे प्रेरणा प्राप्त की। कहते थे “बहरे के कान खोलने के लिए जोरदार धमाके जरूरी हैं।” 8 नवम्बर, 1927 ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत के शासन सुधारों की जाँच करने के लिए इंग्लैण्ड से भारत में एक आयोग आयेगा। जिसकी अध्यक्षता श्री साइमन करेंगे।भारतीयों ने साइमन आयोग के बहिष्कार का निर्णय किया था । 18 दिसम्बर, 1928 को लाहौर की पुलिस कोतवाली से जब सांडर्स निकल रहा था, भगतसिंह ने अपने चुने हुए क्रान्तिकारी मित्रों के साथ सांडर्स को गोलियों से भून दिया। इस तरह उन्होंने खून का बदला खून से लिया। सरदार भगतसिंह ने असेम्बली के अधिवेशन में बम का धमाका करके यह चेतावनी दी थी कि भारत हमारा देश है, इसे स्वतन्त्र कराना ही हमारा कर्त्तव्य है।

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उपसंहार-

सरदार भगतसिंह के अथक प्रयासों और क्रान्तिकारी आन्दोलनों के परिणामस्वरूप भारत देश आजाद हुआ। 23 मार्च, 1931 का दिन भगतसिंह का अन्तिम दिन था।

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