स्मृति का अर्थ व परिभाषाएं / स्मृति के अंग प्रकार नियम

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स्मृति का अर्थ व परिभाषाएं / स्मृति के अंग प्रकार नियम

स्मृति का अर्थ व परिभाषाएं / स्मृति के अंग प्रकार नियम

स्मृति का अर्थ एवं परिभाषाएँ
Meaning and Definitions of Memory

हमारे व्यावहारिक जीवन में अनेक प्रकार की घटनाएँ घटित होती हैं, जब हम किसी वस्तु को छूते, देखते, सुनते या सूँघते हैं तब ‘ज्ञानवाहक तन्तु’ उस अनुभव को मस्तिष्क के ज्ञान केन्द्र में पहुँचा देते हैं। ‘ज्ञान केन्द्र’ में उस अनुभव की प्रतिमा बन जाती है, जिसे ‘छाप’ कहते हैं। यह छाप वास्तव में उस अनुभव की स्मृति चिह्न होती है। यह अनुभव कुछ समय तक चेतन मन में रहता है, किन्तु बाद में वह अचेतन मन में चला जाता है और हम उसे भूल जाते हैं। उस
अनुभव को अचेतन मन में संचित रखने और आवश्यकता पड़ने पर चेतन मन में लाने की प्रक्रिया को स्मृति कहते हैं।

अतः स्मृति वह मानसिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने पूर्व अनुभवों को मानसिक संस्कार के रूप में अपने अचेतन मन में संचित रखता है और आवश्यकता पड़ने पर अपनी वर्तमान चेतना में ले आता है। स्मृति एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार स्मृति की परिभाषाएँ अग्रलिखित हैं-

(1) वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार-“स्मृति सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है।”
“Memory is the direct use of what is learned.”

(2) मैक्डूगल (McDougall) के शब्दों में-“स्मृति से तात्पर्य है-अतीत की घटनाओं के अनुभव की कल्पना करना और इस तथ्य को पहचान लेना कि ये अतीत कालीन अनुभव है।”
“Memory implies imagining of events as experienced in the past and recognising them as belonging to one’s own past experience.”

(3) हिलगार्ड (Hilgard) के मतानुसार– “स्मृति वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें अतीत में सीखे गये ज्ञान, अनुभव या कौशल का पुनःस्मरण किया जाता है।” “Memory is that mental process which invalves recalling the previously learned knowledge experience or skill.”

(4) नन (Nunn) के अनुसार-“हमारे अनुभवों को संचित करके रहने वाली शक्ति जब चेतना से युक्त होती, तब हम उसे स्मृति कहते हैं।”

(5) रायबर्न (Ryburn) के अनुसार-“अपने अनुभवों को संचित रखने और उनको प्राप्त करने के कुछ समय बाद चेतना के क्षेत्र में लाने की जो शक्ति हममें होती है उसी को स्मृति कहते हैं।” “The power that we have to stare our experiences and to bring them into the field of consciousness some time after the experiences have occured is termed memory.”

स्मृति के अंग या स्मरण की प्रक्रिया या तत्त्व

वुडवर्थ के अनुसार स्मृति प्रक्रिया के निम्नलिखित चार अंग होते हैं-
के
(1) सीखना (Learning)
(2) धारणा (Retention)
(3) पुन:स्मरण (Recall)
(4) पहचान (Recognition)

1. सीखना (Learning)-किसी विषय-वस्तु को स्मरण करने के लिये सर्वप्रथम उसे सीखना पड़ता है। इसलिये सीखने को स्मृति का पहला अंग कहा जाता है। बिना सीखे किसी भी विषय-वस्तु का स्मरण करना तथा बिना स्मरण के सीखना भी सम्भव नहीं है। सीखने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा पूर्व में की जा चुकी है।

2. धारणा (Retention) –धारणा से तात्पर्य सीखी गयी वस्तु को मस्तिष्क के चेतन जगत् में स्थापित करना है। जब हम किसी कार्य को सीखते हैं तो उसकी छाप को चेतन मन में स्थापित करते हैं, फिर उसे अचेतन मन में स्थापित कर देते हैं ताकि वह आवश्यकता के समय चेतन में प्रयोग की जा सके। विद्वानों का मत है कि धारणा शक्ति 11 वर्ष से लेकर 25 वर्ष तक तीव्र गति से विकसित होती है और बाद में धीमी पड़ने लगती है।

इस सम्बन्ध में जेम्स ने लिखा है, “मनुष्य की सामान्य धारणा शक्ति को परिष्कृत करने में संस्कृति का योग नहीं होता। यह तो शरीर का शास्त्रीय गुण है, जो एक बार ही व्यक्ति को उसके शरीर के साथ मिलता है और जिसे परिवर्तित करने की कोई आशा नहीं होती।”
अतः धारणा शक्ति को प्रभावशाली बनाने के लिये मस्तिष्क, स्वास्थ्य, रुचि, विचार एवं तर्क के साथ सीखने का विषय एवं विधि आदि का सही सहयोग प्राप्त करना आवश्यक होता है।

3. पुनःस्मरण (Recall) – पुनःस्मरण स्मृति का तीसरा अंग है। पुन:स्मरण गत अनुभवों अथवा अधिगम को वर्तमान में पुन: उत्पादन करने से है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ‘पूर्व अनुभवों अथवा सीखी गयी बातों को अचेतन मन से चेतन मन में लाना ही पुनःस्मरण है। यह स्वाभाविक है कि किसी भी क्रिया को सीखने के पश्चात् हम उसे पूर्व अनुभव बनाकर अचेतन मन में स्थापित कर देते हैं। जब हमें भविष्य में उसकी आवश्यकता होती है तो चेतन में ले आते हैं और उसका लाभ उठाते हैं। अतः शिक्षा के क्षेत्र में पुन:स्मरण स्वत: ही होना चाहिये , न कि किसी दबाव में आकर। जब हम किसी भय, दबाव या चिन्ता में आकर किसी ज्ञान को धारण करते हैं तो पुन: स्मरण करने में असमर्थ हो जाते हैं।

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4. पहचान (Recognition)-स्मृति का चौथा अंग पहचानना है। पहचान से तात्पर्य उस विषयवस्तु को ठीक ढंग से जानने से है, जिसे पूर्व समय में धारण किया गया है। अतः अच्छी स्मृति वही मानी जाती है, जिसमें सही ज्ञान का स्मरण किया गया हो; जैसे- हम मंसूरी गये थे। वहाँ के सभी अनुभव यदि हम आज भी दोहरा लेते हैं और वे सही निकलते हैं तो इसे पहचानना कहते हैं।

स्मृति के प्रकार / Types of Memory in hindi

मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के निम्नलिखित प्रकार बताये हैं-

1. तात्कालिक स्मृति (Immediate memory) – तात्कालिक स्मृति को सांवेदिक स्मृति (Sensory memory) भी कहते हैं। इस प्रकार की स्मृति से तात्पर्य किसी विषय-वस्तु को सीखने के उपरान्त तत्काल दोहरा देने की क्षमता है।

2. स्थायी स्मृति (Permanent memory) – जब किसी व्यक्ति के मन में सीखे हुए तथ्य स्थायी रूप धारण हो जाते हैं और उन्हें वह कभी नहीं भूलता तो इसे स्थायी स्मृति कहते हैं।

3. सक्रिय स्मृति (Active memory)-प्रयास करने पर सीखे हुए जो तथ्य हमारी स्मृति में आते हैं अर्थात् उन्हें याद करने के लिये विशेष प्रयास करना पड़ता है तो ऐसी स्मृति को सक्रिय स्मृति कहते हैं।

4. रटन्त स्मृति (Rote memory) – इस प्रकार की स्मृति बालकों में पायी जाती है। बालक द्वारा किसी चीज को बिना सोचे समझे रट लिया जाता है तो ऐसी स्मृति को रटन्त स्मृति कहते हैं, जैसे-कविता याद करना।

5. निष्क्रिय स्मृति (Passive memory) – जब बिना किसी प्रयास के सीखा हुआ कोई तथ्य हमें याद आ जाता है तो ऐसी स्मृति को निष्क्रिय स्मृति कहते हैं। ऐसी स्मृति का विशेष लक्ष्य नहीं होता।

6. मनोवैज्ञानिक स्मृति (Psychological memory) – जब किसी विधि के द्वारा कोई तथ्य शीघ्रता से याद कर लिया जाता है और दोहराने की आवश्यकता नहीं होती तो ऐसी स्मृति को मनोवैज्ञानिक स्मृति कहते हैं।

स्मृति की विशेषताएँ या लक्षण

स्मृति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. शीघ्र याद होना (Quick learning) – अच्छी स्मृति का प्रथम लक्षण है शीघ्र याद होना। जो बालक किसी बात को एक बार पढ़ लेने या सुन लेने से याद कर लेता है तो उसकी स्मृति अच्छी कही जाती है।

2. उत्तम धारणा शक्ति (Good retent )-यदि कोई बालक सीखी या याद की हुई बातों को अधिक दिनों तक स्मरण रख सकता है तो उसकी स्मृति अधिक स्थायी होती है। यह अच्छी स्मृति की विशेषताएँ हैं।

3. शीघ्र पुनःस्मरण (Quick recall)-अच्छी स्मृति की एक अन्य विशेषता है- पुनः स्मरण। सीखी हुई विषय सामग्री जितनी शीघ्र याद आ जाती है, उतनी ही अधिक उसकी उपयोगिता होती है। परीक्षा की दृष्टि से शीघ्र पुनःस्मरण बालक के लिये अत्यावश्यक है।

4. शीघ्र एवं स्पष्ट पहचानना (Quick and accurate of recognization) – अच्छी स्मृति के लिये शीघ्र पुन:स्मरण ही नहीं बल्कि किसी विषय को शोघ्र एवं स्पष्ट रूप से पहचानना भी आवश्यक है। बालक ने विषय से सम्बन्धित बहुत-सी बातों को पढ़ा सीखा और याद किया है, परीक्षा के समय वह उन बातों को पुन:स्मरण करता है किन्तु बिना शीघ्र एवं स्पष्ट रूप से पहचानते हुए वह वांछित प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ नहीं हो सकता।

5. अनावश्यक बातों को भूलना (Forgetting of meaningless things)-अच्छी स्मृति की एक विशेषता यह भी है कि बालक व्यर्थ की बातों को भूल जाय और उपयोगी बातें ही याद रखे। अनावश्यक बातें याद रहने से उपयोगी बातों के पुन:स्मरण, धारण एवं पहचान में बाधा पड़ती है।

अच्छी स्मृति के प्रभावी कारक
Effecting Factors of Good Memory

अच्छी स्मृति के प्रभावी कारकों का वर्णन स्मृति के नियमों के रूप में किया जा रहा है-

1. आदत का नियम (Law of habit)-जब किसी विचार को बार-बार दोहराया जाता है तो हमारे मस्तिष्क में उसकी छाप इतनी गहरी हो जाती है कि हम बिना विचारे उसे व्यक्त कर देते हैं; जैसे-बहुत-से बालकों को पहाड़े रटे रहते हैं उनको बोलते समय उनको अपनी विचार शक्ति का प्रयोग नहीं करना पड़ता। इस नियम के में प्रो. बी. एन. झा ने कहा है कि, “इस नियम को लागू करने के लिये केवल मौखिक पुनरावृत्ति ही पर्याप्त है। इसका सम्बन्ध यान्त्रिक स्मृति से है।”

2. निरन्तरता का नियम (Law of perseveration)-सीखने की प्रक्रिया समाप्त हो जाने के बाद जो अनुभव विशेषतौर पर स्पष्ट होते हैं। वे हमारे मस्तिष्क में कुछ समय तक निरन्तर आते रहते हैं। अतः उन्हें स्मरण रखने के लिये किसी प्रकार का प्रयत्न नहीं करना पड़ता; जैसे-किसी दुःखद घटना को देखने के बाद हम लाख प्रयत्न करने के बाद भी उसे भूल नहीं पाते।

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3. परस्पर सम्बन्ध का नियम (Law of association of ideas)-इस नियम को विचार साहचर्य का नियम भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार जब हम एक अनुभव को दूसरे अनुभव से सम्बन्धित कर देते हैं तब उनमें से किसी एक का स्मरण होने पर हमें दूसरे का स्वयं ही स्मरण हो जाता है।

विचार साहचर्य के नियम को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(क) मुख्य नियम (Primary law)-विचार साहचर्य के मुख्य नियम निम्नलिखित प्रकार हैं-

1. समीपता का नियम (Law of contiguity)-जब दो वस्तुएँ या घटना या अनुभवों का ज्ञान एक साथ ग्रहण करते हैं तो उनमें परस्पर सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। अतः एक घटना का स्मरण होने पर दूसरे का स्मरण अपने आप जाता है। समीपता दो प्रकार की होती है-
(i) स्थानीय समीपता (Spatical contiguity) । (ii)समय की समीपता (Temparal contiguity)।
उदाहरण-यदि आलमारी में कलम और दवात एक साथ रखे हैं तो कलम स्मरण होते ही दवात का स्मरण स्वयं हो जाता है। यह स्थानीय समीपता का कारण है, उसी प्रकार चार बजे घण्टे की आवाज सुनकर बालकों को घर जाने की याद आ जाती है। यह समय या कालगत समीपता के कारण होता है।

2. समानता का नियम (Law of similarity)– यदि कोई वर्तमान वास्तविक अनुभव पुराने अनुभव समान होता है तो वह पुराने अनुभव का स्मरण करा देता है, जैसे-दिल्ली के लाल किला को देखने पर आगरा के लाल किला का याद आना।

3. असमानता या विपरीतता का नियम (Law of contrast)- जो वस्तुएँ एक-दूसरे के विपरीत होती हैं वे भी एक दूसरे का स्मरण करा देती हैं; जैसे-दुःख के समय सुख की याद आना, युद्ध के साथ शान्ति का स्मरण।

4. रुचि का नियम (Law of interest)-जिन बातों में बालकों को जितनी अधिक रुचि होती है, उन्हें उतनी ही अधिक सरलता से उनका स्मरण होता है; जैसे-जिन बालकों को क्रिकेट में रुचि है तो उसे क्रिकेट से सम्बन्धित सभी नियम याद रहते हैं।

(ख) विचार साहचर्य के गौण नियम (Secondary law of association of ideas)-विचार-साहचर्य के गौण नियम निम्नलिखित हैं-

1. प्राथमिकता का नियम (Law of priority)-जो अनुभव सबसे पहले प्राप्त होते हैं, उनका प्रभाव मस्तिष्क पर बहुत दिनों तक रहता है और उन्हें सरलता से पुन:स्मरण किया जा सकता है; जैसे-बचपन में प्राप्त होने वाले अनुभव आजीवन बने रहते हैं। इसी प्रकार यदि हम किसी व्यक्ति से पहली भेंट में ही प्रभावित हो जाते हैं तो उसे कभी नहीं भुला पाते।

2. नवीनता का नियम (Law of recency) –जो अनुभव जितने अधिक नवीन होते हैं वे उतनी ही शीघ्र और सरलता से उसका स्मरण किया जाता है, जैसे- छात्र परीक्षा कक्ष में प्रवेश के समय तक पढ़ते रहते हैं और जब उन्हें प्रश्न-पत्र मिलता है तो कुछ समय पहले पढ़ी हुई बात तुरन्त याद आ जाती है।

3. आवृत्ति का नियम (Law of frequency)-जो अनुभव बार-बार प्राप्त होते रहते हैं वे सरलता से शीघ्र स्मरण हो जाते हैं, जैसे-जो व्यक्ति प्रात:काल स्नान करने के बाद तुरन्त पूजा पाठ करता है वह स्नान करते ही सर्वप्रथम ईश्वर का स्मरण करने लगता है। इस सम्बन्ध में वैलन्टाइन (Valentine) ने लिखा है, “दो बातों या विचारों का जितनी अधिक बार साथ-साथ अनुभव किया जाता है, उतना ही अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध उनमें स्थापित हो जाता है।”

4. स्पष्टता का नियम (Law of vividness) –जो विचार या अनुभव जितने अधिक स्पष्ट होते हैं, उतने ही शीघ्र वे समझ आ जाते हैं और याद हो जाते हैं। ऐसे अनुभवों का सरलतापूर्वक पुनःस्मरण किया जा सकता है।

5. मनोभाव का नियम (Law of mood)-व्यक्ति अपने मनोभावों के अनुसार अनुभवों का स्मरण करते हैं। दुःखी मनुष्य केवल दुःख और कष्ट की बातों का ही स्मरण कर सकता है। जब हम प्रसन्न होते तब हमें सुख एवं आनन्द की बातों का स्मरण होता है और जब हम दुःखी दशा में होते हैं तब हमारे विचारों में उदासीनता होती है।

स्मरण करने की विधियाँ / Methods of Memory

मनोवैज्ञानिकों ने प्रयोग द्वारा स्मरण करने की ऐसी अनेक विधियों की खोज की है, जिनके प्रयोग करने से समय की बचत होती है। स्मरण करने की महत्त्वपूर्ण विधियाँ निम्नलिखित हैं-

1. पूर्ण विधि (Whole method)-इस विधि में पूरे पाठ को आरम्भ से अन्त तक एक ही बार में पढ़कर याद किया जाता है। यह विधि केवल सरल और छोटे पाठों या कविताओं को याद करने के लिये उपयोगी होती है। इस सम्बन्ध में कॉलसनिक (Kolesnik) ने कहा है कि, “यह विधि बड़े बुद्धिमान और परिपक्व मस्तिष्क वाले बालकों के लिये उपयोगी है। “

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2. खण्ड विधि (Part method)- इस विधि में याद किये जाने वाले पाठों को कई खण्डो में या वर्गों में बाँट दिया जाता है। इसके बाद क्रमानुसार या एक-एक करके उन खण्डों को याद किया जाता है। इस सम्बन्ध में कॉलसनिक ने कहा है कि, “यह विधि छोटे, कम बुद्धिमान और साधारण बालकों के लिये उपयोगी है।”

3. मिश्रित विधि (Mixed method)-इस विधि में पूर्ण विधि एवं खण्ड विधि दोनों का साथ-साथ प्रयोग किया जाता है। पहले पूरे पाठ को आरम्भ से अन्त तक पढ़ा जाता है और फिर उसे खण्डों में बाँटकर उनको याद किया जाता है। इसके बाद पाठ को पुन: आरम्भ से अन्त तक पढ़ा जाता है।

4. प्रगतिशील विधि (Progressive method) – इस विधि में पाठ को अनेक खण्डों में बाँट लिया जाता है। सबसे पहले प्रथम खण्ड को याद किया जाता है, उसके बाद प्रथम एवं दूसरे खण्ड को एक साथ याद करते हैं। फिर इसके बाद पहले, दूसरे और तीसरे खण्ड को एक साथ याद करते हैं। इस प्रकार जैसे-जैसे स्मरण करने के कार्य में प्रगति होती है, वैसे-वैसे एक नया खण्ड जोड़ दिया जाता है। इस विधि में समय अधिक लगता है और आरम्भ के कुछ खण्डों का स्मरण अधिक होता है और बाद के खण्डों का स्मरण कम होता जाता है।

5. अविराम या निरन्तर विधि (Unspaced method)-इस विधि में बिना बीच-बीच में रुके पाठ को लगातार दोहराया जाता है। यह विधि तात्कालिक स्मृति के लिये अच्छी होती है।

6. अन्तरायुक्त या सान्तर विराम विधि (Spaced method)- यह विधि अविराम विधि की उल्टी है। इसमें पाठ को थोड़े-थोड़े अन्तर या समय के बाद याद किया जाता है। यह अन्तर पाँच मिनट का और 12 घण्टे का भी हो सकता है। यह विधि स्थायी स्मृति के लिये अधिक अच्छी होती है। इसके सम्बन्ध मे वुडवर्थ का कहना है कि, “अन्तरायुक्त विधि से स्मरण करने
में सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त होता है।”

7. सक्रिय विधि (Active method) – इस विधि को उच्चारण विधि या स्वर विधि भी कहते हैं। इसमें स्मरण किये जाने वाले पाठ को छात्र बोल-बोल कर याद करते हैं। यह विधि छोटे बालकों के लिये अधिक उपयोगी है। वे इसमें रुचि भी लेते हैं और उनका उच्चारण भी ठीक हो जाता है।

8. निष्क्रिय विधि (Passive method) – यह विधि सक्रिय विधि की उल्टी है। इसमें याद किये जाने वाले पाठ को मन ही मन में पढ़कर याद किया जाता है। यह विधि अधिक आयु के छात्रों के लिये अच्छी है।

9. रटने की विधि (Cranning of method)-इस विधि में विषय वस्तु को बिना सोचे समझे बार-बार पढ़कर रट लिया जाता है। इस विधि में भूलने की सम्भावना अधिक होती है। इस सम्बन्ध में जेम्स ने कहा है कि, “इस विधि से जो बातें स्मरण कर ली जाती हैं वे अधिकांश रूप से भूल जाती हैं।”

10. निरीक्षण विधि (Method of observation)-इस विधि में याद किये जाने वाला पाठ का पहले निरीक्षण किया जाता है। यदि बालक को संख्याओं की कोई सूची याद करनी है तो वह पहले इस बान का निरीक्षण कर ले कि वे निश्चित क्रम में है या नहीं।

11. विचार-साहचर्य की विधि (Method of association of ideas)-इस विधि में जिस विषय को याद करना है उसे किसी ज्ञात विषय से सम्बन्धित किया जाता है। इस विधि से याद सरलता एवं शीघ्रता से होता है; जैसे-यदि किसी छात्र को लालबहादुर शास्त्री की जन्म तिथि याद करनी है तो इसका सम्बन्ध गाँधीजी की जन्म तिथि 2 अक्टूबर से कर देने पर शीघ्र याद हो जाती है और कभी नहीं भूलती। इस विधि के बारे में जेम्स (James) ने कहा है कि
“विचार साहचर्य उत्तम चिन्तन के द्वारा उत्तम स्मरण की विधि है।”



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