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हमारी वन-सम्पदा पर निबंध / essay on forest wealth in hindi
रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) वन सम्पदा का दोहन, (3) वनों के कटने से हानियाँ, (4) वनों का महत्त्व, (5) उपसंहार ।
प्रस्तावना —
आदि काल से मानव और प्रकृति का गहरा सम्बन्ध रहा है। प्रकृति ने मानव को विभिन्न रूपों में आकर्षित किया है। वास्तव में वन सम्पदा मानवी की सच्ची सहचरी है। उसने मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाया है। छायादार वृक्षों ने हमें शीतल छाया प्रदान की है, फूलों ने खुशबू प्रदान की है और फलों ने हमारी भूख मिटाकर शक्ति प्रदान की है। पर्वतों से निकलने वाली नदियों ने उसकी प्यास को शान्त किया है तथा भूमि को सींचा है। बसन्त और पतझड़ ने उसे सुख और शान्ति प्रदान की है। इस प्रकार मानव का प्रकृति से घनिष्ट सम्बन्ध है।
वन सम्पदा का दोहन –
बढ़ती सभ्यता के दौर में भारत की जनसंख्या तीव्र वृद्धि होना निश्चय ही चिन्ता का विषय है। हमारी सभ्यता का विकास तो अवश्य हुआ है लेकिन हमारे वन संकुचित होते चले गये। सुरसा रूपी जनसंख्या ने हरियाली रूपी हनुमान को छोटा कर दिया है। वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई ने वनों को संकुचित कर दिया है। इसी कारण सुन्दरलाल बहुगुणा को चिपको आन्दोलन चलाना पड़ा। चिपको आन्दोलन का सूत्रपात उत्तरांचल में हुआ। जहाँ वृक्षों को बचाने के लिए महिलाएँ पेड़ों से चिपक गईं और कहा “पेड़ों को मत काटो, अगर पेड़ों को काटना चाहते हो तो पहले हमें काटना होगा, हम पेड़ों को कटने से बचाने के लिए अपने को कटा सकती हैं।”
वनों के कटने से हानियाँ-
जंगलो के सिकुड़ने से प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई। वास्तव में वृक्ष प्रगति के आँगन का सुन्दरतम अंग है। इनके बिना प्रकृति का सौन्दर्य नष्ट हो जाता है। यह सब जानते हुए भी आज सघन वनों काटकर नगर बसाए जा रहे हैं। अब वातावरण में वह ताजगी नहीं रह गई जो कुछ समय पूर्व थी । वृक्षों की कटाई से अब बाढ़ भी अधिक आती है। प्रतिवर्ष बाढ़ से काफी जान-माल की हानि होती है। वृक्षों की कटाई का दूसरा प्रभाव वर्षा पर हुआ है। समय पर वर्षा न होने के कारण कृषि उपज भी कम होती है।
वनों का महत्त्व –
प्राचीन भारतीय साहित्य में वृक्षारोपण के महत्त्व को दर्शाने वाले अनेक उदाहरण हैं। वृक्ष परोपकार की साक्षात प्रतिमा हैं। उनकी इस महानता को देखकर ही उसे परोपकार का उपमान स्वीकार किया गया है। पन्त जी ने कहा है-
“छोड़ द्रुमों की मृदुछाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया ।
वाले तेरे बाल जाल में,
कैसे उलझादूँ लोचन ॥”
मत्स्य पुराण में तो वृक्षों की रक्षा की महत्ता बताते हुए कहा गया है कि एक वृक्ष की रक्षा दस पुत्रों की प्राप्ति के बराबर है। कुमार सम्भवम् और अभिज्ञान शाकुन्तलम् में क्रमशः पार्वती और शकुन्तला को वृक्षारोपण करते हुए वर्णन किया गया है, चिकित्सा के क्षेत्र में तो वृक्षों का अभूतपूर्व योगदान है। रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने लक्ष्मण के शक्ति लगने का वर्णन किया है। शक्ति लग जाने के कारण लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं। तब शुसेन वैद्य उन्हें जड़ी-बूटी सुँघाकर लक्ष्मण की चेतना को वापस लाये थे।
पीपल, वट, जामुन, आँवला, नीबू आदि के गुण तो एक अनपढ़ भी भली-भाँति जानता है। वस्तुतः वृक्षों की महिमा अवर्णनीय है। हमें प्रकृति के सन्तुलन को बनाए रखने एवं पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वनों की रक्षा करना अत्यन्त आवश्यक है। वृक्षों को काटकर फैक्ट्रियाँ स्थापित कर दी गयी हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि जलवायु में नीरसता और शुष्कता आ गयी है। समय पर वर्षा का होना बन्द हो गया है। वृक्षों से मिलने वाली आक्सीजन की मात्रा कम हो गई। भारतीय वैज्ञानिकों के अन्वेषणों के आधार पर इस तथ्य का अनुभव करते हुए 1950 से वन महोत्सव की योजना का कार्यक्रम शुरू किया ।
उपसंहार –
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वृक्षों के बिना जीवन सम्भव नहीं। वृक्षों से लाभ के साथ हमें नैतिक शिक्षा भी मिलती है। मनुष्य के निराशा से भरे जीवन में आशा और धैर्य की शिक्षा वृक्ष देते हैं। अतः यह सत्य है कि हमारे नैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास के मूल हैं।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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