दोस्तों अगर आप बीटीसी, बीएड कोर्स या फिर uptet,ctet, supertet,dssb,btet,htet या अन्य किसी राज्य की शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इन सभी मे बाल मनोविज्ञान विषय का स्थान प्रमुख है। इसीलिए हम आपके लिए बाल मनोविज्ञान के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक की श्रृंखला लाये हैं। जिसमें हमारी साइट istudymaster.com का आज का टॉपिक तर्क का अर्थ व परिभाषाएं / तर्क के प्रकार एवं सोपान है।
तर्क का अर्थ व परिभाषाएं / तर्क के प्रकार एवं सोपान
तर्क का अर्थ एवं परिभाषाएं / meaning and definition of argument
Argument या तर्क एक जटिल प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है। जब मनुष्य के सामने कोई कठिन समस्या उत्पन्न हो जाती है तो वह उसका समाधान करने के लिये विचार करने लगता है। विचार की यह प्रक्रिया ही ‘तर्क’ कहलाती हैं एक प्रकार से तर्क (Reasoning) को विचार (Thinking) का उत्कृष्ट रूप कहा जा सकता है। इस प्रश्न के उत्तर में हम तर्क का अर्थ, तर्क और चिन्तन का अन्तर तथा तर्क के विकास के उपायों पर प्रकाश डालेंगे।
तर्क की परिभाषा (Definition of Reasoning)
विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं पर प्रकाश डालना आवश्यक है-
(1) मन-“तर्क उस समस्या का समाधान करने के लिए भूत के अनुभवों को सम्मिलित रूप देता है, जिसका समाधान पिछले समाधानों का प्रयोग करके नहीं किया जा सकता है।”
(2) गेट्स तथा अन्य-“तर्क फलदायक सोचना है जिसमें किसी समस्या का हल करने हेतु पहले के अनुभवों को नवीन विधियों से फिर से संगठित या सम्मिलित किया जाता है।”
(3) स्किनर–“तर्क शक्ति का प्रयोग कारण तथा प्रभाव के सम्बन्धों की मानसिक स्वीकृति को प्रकट करने के लिए किया जाता है। यह किसी निरीक्षित कारण से किसी घटना की भविष्यवाणी या किसी देखी हुई घटना से किसी कारण का अनुमान हो सकता है।”
(4) गैरेट (Garrett) के अनुसार, “मन में किसी उद्देश्य एवं लक्ष्य को रखकर क्रमानुसार चिन्तन करना तर्क है।”
(5) वुडवर्थ (Woodworth) के शब्दों में, “तर्क में (तथ्यों एवं सिद्धान्तों) जो स्मृति या वर्तमान निरीक्षण द्वारा प्राप्त होते हैं-को परस्पर मिलाया जाता है फिर उस मिश्रण का परीक्षण कर निष्कर्ष निकाला जाता है।”
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तर्क की विशेषताएँ Characteristics of Argument
उपर्युक्त विद्वानों के मतों का विश्लेषण करने पर हम तर्क सम्बन्धी अग्रलिखित निष्कर्षो या विशेषताओं को पाते हैं-
1. निश्चित् लक्ष्य (Definite goal) – तर्क शक्ति का प्रारम्भ लक्ष्य प्राप्ति के लिये होता है। मानव प्रगति लक्ष्य प्राप्ति पर निर्भर करती है। अत: चिन्तन और तर्क के द्वारा जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित किया जाता है।
2. प्रतिक्रिया में शिथिलता (Slackness in response) – तर्क शक्ति का प्रारम्भ प्रतिक्रिया की शिथिलता से होता है। जब व्यक्ति किसी कार्य को करने में असमर्थ होता है तो वह विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करता है लेकिन सफलता न मिलने परे शिथिल हो जाता है और तर्क का सहारा लेता है।
3. पूर्वज्ञान (Previous knowledge) – तर्क में पूर्वज्ञान, पूर्व अनुभव तथा पूर्व अनुभूतियों का विश्लेषण किया जाता है। इसमें समस्या समाधान के नवीन तरीकों का जन्म होता है।
4. कारण की खोज (Discovey of cause) – तर्क में किसी घटना के कारण को खोजा जाता है। ‘क्यों, कैसे’ आदि प्रश्नों के उत्तर खोज कर’कारण और प्रभाव’ के बीच सम्बन्ध देखा जाता है। कारण खोज से समस्या का समाधान सरल हो जाता है।
5. सीखने की विधियों का उपयोग (Use of learning method) – तर्क में सीखने की विभिन्न विधियों ‘प्रयत्न एवं भूल’, ‘सूझ द्वारा’, ‘अनुकरण द्वारा’, ‘साहचर्य द्वारा’ आदि का सहारा लिया जाता है। ये विधियाँ क्रमवार प्रयोग की जाती हैं ताकि समस्या का समाधान सही प्रकार से हो।
6. समस्या – समाधान (Problem-solving) – तर्क का प्रयोग समस्या समाधान के लिये किया जाता है। जब तक समस्याएँ हैं तर्क का प्रयोग होता रहेगा।
तर्कों के प्रकार / Types of Arguments
तर्कों के विभिन्न प्रकारों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) आगमनिक तर्क (Inductive Reasoning)-
इस प्रकार के तर्क में सर्वप्रथम तथ्यों का संकलन किया जाता है। इस प्रकार जो तथ्य एकत्रित हो जाते हैं उनका विश्लेषण (analysis) किया जाता है। उसके पश्चात् किसी सिद्धान्त का निरूपण कर लिया जाता है। आगमन तर्क में, सर्वप्रथम निरीक्षण (Observation) किया जाता है, फिर उसका प्रयोग (Experiment) किया जाता है और सबसे अन्त में, सामान्यीकरण (Generation) के माध्यम से किसी सामान्य तथ्य का निरूपण किया जाता है। इसे हम एक उदाहरण से स्पष्ट करेंगे। बालक घर में देखता है कि घर में चूल्हे में आग है। वह मैदान में भी आग जलते देखता है। वह घर के चूल्हे की आग में धुआँ देखता हैं वह मैदान की आग में भी धुआँ देखता है। अतः वह यह निष्कर्ष निकालता है कि जहाँ पर भी आग होगी, वहीं पर धुआँ होगा। ऐसा उसने सामान्यीकरण (Generalisation) के माध्यम से किया। इसी को आगमन तर्क कहते हैं।
(2) निगमनिक तर्क (Deductive Reasoning)-
निगमन तर्क में कोई व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर किसी सिद्धान्त का निरूपण करता है। उदाहरण के लिए, बालक को यह ज्ञान कराया जाता है कि सभी व्यक्ति नश्वर हैं। अब वह निगमन तर्क के आधार पर यह निष्कर्ष निकालता है कि श्याम भी नश्वर है क्योंकि श्याम एक व्यक्ति है। इसे हम एक और उदाहरण से स्पष्ट करेंगे। एक बालक को एक-एक करके अनेक घोड़े दिखाये जाते हैं। उन्हें देखने पर बालक की धारणा बन जाती है कि घोड़ा एक ऐसा पशु है जिसके दो कान होते हैं और एक पूँछ। घोड़ा तेज दौड़ता है और उसको ताँगे में जोता जाता है। अब बालक घोड़ा पहचानने में भूल नहीं करता। आगमन (Inductive) और निगमन (Deductive) तर्क में मुख्य भेद यह है कि प्रथम में तथ्यों के संकलन से सामान्यीकरण करते हैं, जबकि निगमन तर्क में अनुभव के आधार पर सिद्धान्त का निरूपण किया जाता है।
(3) आलोचनात्मक तर्क (Criticism arguments) –
इस प्रकार के तर्कों के आधार पर छात्र विभिन्न प्रकार के आलोचनात्मक अध्ययन के बाद एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचता है; जैसे- छात्र विद्यालय में प्रथम अवस्था में जाने पर संकोच करता है परन्तु जाने पर यह देखता है कि विद्यालय में शिक्षक पढ़ाते हैं तथा कहानी सुनाते हैं, दोपहर में भोजन देते हैं तथा खेलने का
अवसर प्रदान करते हैं। इस स्थिति में वह छात्र समझ जाता है कि विद्यालय में छात्रों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जाता है। इसलिये विद्यालय में जाना लाभदायक है। इस प्रकार अनेक तथ्यों के बारे में बालक सामान्य रूप से विचार करके उनके गुण-दोषों का विवेचन करके स्वीकार करता है। इस प्रकार के तर्कों को आलोचनात्मक तर्क के माध्यम से जाना जाता है।
(4) सादृश्यवाची तर्क (Similar arguments) –
अनेक अवसरों पर हम किसी एक व्यक्ति के व्यवहार के बारे में जानते हैं। उसके आधार पर हम दूसरे व्यक्ति के व्यवहार का ज्ञान कर सकते हैं; जैसे-धातुएँ ऊष्मा की संचालक होती हैं। इस आधार पर हम समझ जाते हैं कि ताँबा, पीतल एवं लोहा आदि धातुएँ ऊष्मा की संचालक होंगी। इसी क्रम में चन्द्रशेखर आजाद एवं सरदार भगतसिंह एक समान क्रान्तिकारी थे। इस आधार पर चन्द्रशेखर आजाद के बारे में जानकारी प्राप्त करके सरदार भगतसिंह के कार्य एवं व्यवहार का अनुमान लगाया जा सकता है। इस प्रकार इसे सादृश्यवाची तर्क के रूप में स्वीकार किया जाता है।
(5) अनौपचारिक तर्क (Non-formal arguments) –
अनौपचारिक तर्कों का प्रयोग सामान्य रूप से हम अनेक प्रकार से अपने दैनिक जीवन में घर-परिवार के वार्तालाप में करते हैं। इन तर्कों का कोई क्रमबद्ध रूप नहीं होता इसलिये इनको उचित महत्त्व प्रदान नहीं किया जा सकता। इन तर्कों में साम्यता की स्थिति भी नहीं पायी जाती है; जैसे- भूतों के चार पैर होते हैं।
भूत किसी भी स्वरूप को धारण कर लेता है। मनुष्य को भी भूत कहते हैं। बहुत-से मनुष्यों के चार पैर होते हैं। इस प्रकार के तर्क अनौपचारिक होते हैं जो किसी नियम या निष्कर्ष विशेष की ओर अग्रसर नहीं करते।
(6) औपचारिक तर्क (Formal arguments) –
सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि जब हम किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये तर्क वाक्यों का प्रयोग करते हैं तो इसमें क्रमबद्धता पायी जाती है। इस प्रकार के तर्क वाक्यों में एक-दूसरे से सम्बन्ध होता है तथा ये किसी निश्चित उद्देश्य की ओर अग्रसर करते हैं। इस प्रकार के तर्क वाक्य दार्शनिक विचार प्रक्रिया का अंग होते हैं; जैसे-शीर्षासन से मस्तिष्क को शक्ति मिलती है। पद्मासन से पैर सुदृढ़ होते हैं। गरुड़ासन से रीढ़ की हड्डी सुदृढ़ होती है। ये सभी योगासन के प्रमुख अंग हैं। अत: योग मानवीय विकास की प्रमुख आवश्यकता है।
तर्क के सोपान (steps of argument)
तर्क के 5 सोपान हैं–
(1) समस्या की उपस्थिति – तर्क तो तभी होगा जब समस्या होगी। अतः समस्या की उपस्थिति ही तर्क का पहला सोपान है।
(2) समस्या की जानकारी – जब हम जान पाते है कि समस्या है तो तर्क के लिए यह जानना आवश्यक है। समस्या किस प्रकार की है? समस्या किस क्षेत्र से संबंधित है? उसके बाद ही तो तर्क की प्रक्रिया शुरू होगी।
(3) समस्या समाधान के उपाय – हमारे समस्या जानने के बाद हम उसके समाधान के उपाय खोजते है। कि यह समस्या किस प्रकार से हल होगी। हम समस्या को हल करने के लिए भिन्न भिन्न उपाय खोजते है।
(4) एक उपाय का चुनाव – भिन्न भिन्न उपाय खोजने के बाद हम एक उपाय का चुनाव करते है। कि इससे तो यह समस्या पक्का और जल्द से जल्द हल हो जाएगी। अतः उपाय का चुनाव जो सर्वोत्तम है, यह तर्क का चौथा सोपान है।
(5) उपाय का प्रयोग – सर्वोत्तम उपाय को चुनकर समस्या पर लागू करना तर्क का अंतिम सोपान है।
तर्क विकास के तरीके
Methods of Argument Development
हम बालकों में तर्क-शक्ति के विकास के लिये निम्नलिखित तरीके प्रस्तुत करते हैं-
(1) तार्किक चिन्तन की आवश्यकता उसी समय अनुभव की जाती है जब व्यक्ति के समक्ष कोई समस्या हो। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह कभी-कभी बालकों के समक्ष कोई समस्या रखे और उनसे उसका समाधान करने को कहे।
(2) बालकों के समक्ष समस्या रखने से पूर्व शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि क्या बालकों का बौद्धिक स्तर उस समस्या के अनुकूल है। उनके द्वारा अर्जित पूर्व ज्ञान का भी ध्यान रखना चाहिए।
(3) आगमन विधि (Inductive Reasoning) तार्किक चिन्तन में सहायता करती है। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह अपने शिक्षण में इस विधि का उपयोग करे।
(4) विद्यालय में जो पाठ्य सहगामी क्रियाएँ आयोजित की जाएँ, उनमें वाद-विवाद प्रतियोगिता, विचार- विमर्श तथा भाषण प्रतियोगिता आदि को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
(5) शिक्षक बालकों को ऐसे कार्य करने का अवसर दें जो तार्किक चिन्तन में सहायक होते हैं। बालकों को खोज, प्रयोग और अनुसन्धान के कार्यों में लगाया जाना चाहिए।
(6) बालकों से निरीक्षण तथा परीक्षण कराया जाना चाहिए। बालकों को स्वयं कार्य करने के अवसर प्रदन किए जाने चाहिए। ऐसे कार्यों से तार्किक चिन्तन का विकास किया जा सकता है।
(7) बालकों को सामान्यीकरण करने के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। उनको किसी समस्या का अनुमान करने, उसका हल प्रमाणित करने तथा किसी निष्कर्ष पर पहुँचने को प्रोत्साहित करना चाहिए।
(8) तार्किक चिन्तन में पूर्व-धारणा (Prejudice) बाधा उपस्थित करता है। अतः बालकों को ऐसा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे वे पूर्व धारणा रहित चिन्तन कर सकें।
(9) शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों में एकाग्रता और आत्म-निर्भरता के गुणों का विकास करें। इन गुणों से तार्किक चिन्तन में सहायता मिलती है।
चिन्तन और तर्क में अन्तर
(Distinction between Thinking and Reasoning)
तर्क को तार्किक चिन्तन भी कहते हैं। तर्क चिन्तन का उत्कृष्ट रूप माना जाता है। यह एक जटिल (Complex) मानसिक क्रिया है। तर्क को औपचारिक नियमों से सम्बद्ध किया जाता है। तर्क फलदायक चिन्तन है। इसमें किसी समस्या का समाधान करने के लिए पूर्व अनुभवों को पुनर्गठित किया जाता है।
जब मनुष्य के सामने कोई समस्या आती है तो वह उस समस्या का समाधान करने के लिए चिन्तन आरम्भ कर देता है। समस्या समाधान के अनेक विकल्प उसके मस्तिष्क में आते हैं। इस प्रकार की विचारात्मक प्रक्रिया को तर्क कहते हैं। तर्क में पूर्व अनुभवों के आधार पर नवीन कल्पना का निर्माण किया जाता है। चिन्तन एक मानसिक प्रक्रिया (Mental Process) है। तर्क को मानसिक अनुसन्धान (Mental Exploration) कहा जाता है। तर्क अतीत के अनुभवों को इस प्रकार मिलाता है कि समस्या का समाधान हो जाए।
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निवेदन
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