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विस्मृति का अर्थ व परिभाषाएं / विस्मृति के प्रकार कारण उपाय सिद्धांत
विस्मरण या विस्मृति की अवधारणा एवं अर्थ
किसी सीखी हुई वस्तु को स्मरण न कर सकना, विस्मृति या विस्मरण कहलाती है। हमारे जीवन में अनेक ऐसी बातें हैं जिन्हें हम भूल जाते हैं। मनुष्य के सफल जीवन के लिये स्मृति जितनी आवश्यक है विस्मृति भी उतनी ही आवश्यक है। अप्रिय बातों को भूल जाना ही अच्छा होता है, क्योंकि इससे मानसिक तनाव दूर हो जाता है। मानसिक रोगी अप्रिय बातों को बार-बार याद करते हैं।
विस्मरण या विस्मृति की परिभाषाएं
विस्मृति की कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
(1) ड्रेवर के अनुसार-“विस्मृति का अर्थ है, किसी अवसर पर प्रयत्न करने पर किसी पूर्व-अनुभव को याद करने या कुछ समय पहले सीखे किसी कार्य को करने में असफलता।”
(2) मन के शब्दों में-“ग्रहण किये गये तथ्यों को धारण न कर सकना ही विस्मृति है।”
(3) फ्राइड के मतानुसार-“विस्मृति की क्रिया के द्वारा हम अपने दुःख देने वाले अनुभवों को स्मृति से निकाल देते हैं।”
(4) भाटिया के अनुसार-“जब व्यक्ति मूल उद्दीपक की सहायता बिना भूत्तकालीन अनुभवों को चेतन मस्तिष्क में नहीं ला पाता, तो इस क्रिया को विस्मृति कहते हैं।”
इस प्रकार विस्मृति की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार से हैं-(1) बालकों को क्रमानुसार घटनाएँ याद नहीं आतीं। (2) बालक जितने तथ्यों को याद करते हैं, उनमें सभी को वे पुनः स्मरण में नहीं ला पाते। (3) बालकों में अवधान केन्द्रित न कर सकने के कारण विस्मृति भी क्रियाशील हो जाती है। (4) बालक तथ्यों के अभिज्ञान में त्रुटि कर देते हैं।
विस्मृति के प्रकार / Types of Forgetting in hindi
विस्मृति निम्नलिखित दो प्रकार की होती है-
1. सक्रिय विस्मृति-जब व्यक्ति को किसी घटना को भूलने के लिये प्रयास करना पड़ता है, तो उसे सक्रिय विस्मृति कहते हैं।
2. निष्क्रिय विस्मृति-जब व्यक्ति किसी तथ्य या घटना को स्वयं भूल जाता है, तो ऐसी विस्मृति को निष्क्रिय विस्मृति कहते हैं।
विस्मृति का महत्त्व
(Importance of Forgetting)
यद्यपि विस्मरण को एक नकारात्मक प्रक्रिया माना जाता है परन्तु कभी-कभी विस्मरण हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। हम दुःखदायी और नकारात्मक बातों को भूलकर ही प्रसन्न रह सकते हैं। अन्यथा कुछ तकलीफें विस्मृत न हों तो वे सारी उम्र जीवन पर बोझ बनी रहेगी। इसी प्रकार जो बातें हमारे काम की नहीं हैं या अनुपयोगी हैं तो उनका विस्मरण हो जाना महत्त्वपूर्ण होता है।
विस्मृति के कारक या कारण / Factors or Causes of Forgetting in hindi
विस्मृति के कारणों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(क) सैद्धान्तिक कारण तथा (ख) सामान्य कारण।
(क) विस्मृति के सैद्धान्तिक कारण
मनोवैज्ञानिकों ने विस्मृति क्यों होती है, के सम्बन्ध में निम्नलिखित सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं। ये विस्मृति के सैद्धान्तिक कारण कहलाते हैं। ये कारण निम्नलिखित हैं-
1. बाधा का सिद्धान्त (Theory of interference) – बाधा के सिद्धान्त के प्रतिपादक मूलर (Muller), पिलजेकर (Pilzecker) तथा वुडवर्थं (Woodworth) आदि मनोवैज्ञानिक हैं। इन मनोवैज्ञानिकों के विचारों में व्यक्ति के नये अनुभव प्राचीन संस्कारों के प्रत्यास्मरण में बाधक होते हैं अर्थात् नवीन अनुभवों के बाधा पहुँचाने से पुराने अनुभव विस्मृत हो जाते हैं।
2. दमन का सिद्धान्त (Theory of repression) –फ्रायड, जरसिल्ड आदि ने दमन के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया है। उन मनोवैज्ञानिकों के विचार में व्यक्ति सुख प्रदान करने वाली घटनाओं तथा अनुभवों को स्मरण रखना चाहता है, परन्तु अप्रिय घटनाओं को स्मरण करना नहीं चाहता। ये अप्रिय घटनाएँ व्यक्ति के चेतन मन (Concious mind) में अचेतन मन (Unconcious mind) में चली जाती हैं। इस प्रकार व्यक्ति उनका दमन करता रहता है।
3. अनभ्यास का सिद्धान्त-एबिंग हॉस (Ebbing Hause) ने इस सिद्धान्त को प्रस्तुत किया था। इन्होंने विस्मरण या विस्मृति को एक निष्क्रिय मानसिक प्रक्रिया (Passive mental process) बताया है। जब कोई व्यक्ति किसी विषय-सामग्री को याद करता है, परन्तु बहुत दिनों तक उसका पुनः स्मरण नहीं करता, तो उसको भूल जाता है। इस प्रकार अभ्यास का अभाव ही विस्मृति का कारण है।
(ख) विस्मृति के सामान्य कारण
विस्मरण के सामान्य कारण निम्नलिखित हैं-
1. समय का प्रभाव-समय के साथ विस्मृति की मात्रा में वृद्धि होती जाती है। यही कारण है कि व्यक्ति की जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, उसकी स्मरण शक्ति भी क्षीण होती जाती है।
2. विषय की मात्रा-व्यक्ति छोटे विषय को देर में तथा लम्बे विषय को शीघ्र ही भूल जाता है। इस प्रकार विषय की मात्रा, विस्मृति का कारण होती है।
3. विषय का स्वरूप-व्यक्ति सरल, सार्थक तथा प्रिय वस्तु को अधिक देर तक याद रख पाता है। इसके विपरीत वह कठिन, निरर्थक तथा अप्रिय वस्तु को शीघ्र भूल जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि विषय का स्वरूप भी विस्मृति को प्रभावित करता है।
4. सीखने की दोषपूर्ण पद्धति-सीखने की दोषपूर्ण पद्धति भी विस्मृति का एक कारण होती है। यदि विषयवस्तु को गलत विधि से याद किया जाय, तो विषयवस्तु शीघ्र ही विस्मृत हो जाती है।
5. मानसिक आघात-मस्तिष्क पर लगे आघात के परिणामस्वरूप व्यक्ति स्मरण की हुई बातों को विस्मृत कर देता है, यदि आषात कम होता है तो व्यक्ति कम भूलता है। परन्तु अधिक आघात लगने पर वह वस्तु को बिलकुल विस्मृत कर देता है।
6. मानसिक द्वन्द्व-व्यक्ति के मस्तिष्क में जब किसी प्रकार का मानसिक द्वन्द्व रहता है, तो उसकी विस्मृति बढ़ जाती है।.
7. मादक द्रव्यों का सेवन-मादक द्रव्यों के प्रयोग से मानसिक
है और मानसिक शक्ति की दुर्बलता विस्मृति का कारण बन जाती है।
शक्ति दुर्बल हो जाती है।
8. मानसिक रोग-व्यक्ति यदि किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाता है, तो उसकी स्मरण शक्ति दुर्बल हो जाती है। ऐसी दशा में वह विषयवस्तु को शीघ्र ही भूल जाता है।
9. प्रत्याह्नान में इच्छा का अभाव – जब कोई व्यक्ति किसी विषय-सामग्री को प्रत्याह्वान करने की इच्छा नहीं रखता, तो उस विषय-सामग्री को शीघ्र ही विस्मृत कर देता है।
10. संवेगात्मक असन्तुलन-संवेगात्मक असन्तुलन भी विस्मृति का एक कारण होता है। किसी प्रकार की संवे परिस्थिति में व्यक्ति का किसी बात को याद कठिन हो जाता है।
विस्मृति को दूर करने के उपाय /
Measures to Remove Forgetting
विस्मृति को निम्नलिखित उपायों का प्रयोग करके कम किया जा सकता है-
1. स्मरण करने में ध्यान-किसी विषय को याद करते समय उस पर पूर्ण ध्यान देना चाहिये, पूर्ण ध्यान देने से विषय अधिक समय तक स्मृति में धारण किया जा सकता है।
2. अधिक समय तक स्मरण रखने की इच्छा-जब किसी पाठ को अधिक समय तक स्मरण रखने की इच्छा से याद किया जाता है, तो उस पाठ को शीघ्र ही विस्मृत होने की सम्भावना नहीं रहती।
3. स्मरण के पश्चात् विश्राम-विषय को स्मरण करने के पश्चात् कुछ समय विश्राम अवश्य करना चाहिये। इस सम्बन्ध में विश्राम का अत्यधिक महत्त्व है।
4. पाठ को दोहराना-पाठ याद करने के पश्चात् थोड़ा-थोड़ा समय देकर दोहराते रहना चाहिये। पाठ को दोहराते रहने से वह अधिक समय तक याद रहता है।
5. सस्वर वाचन-पाठ को बोल-बोलकर अर्थात् सस्वर याद करना चाहिये। बोल- बोलकर पाठ याद करने से विस्मरण की गति मन्द हो जाती है।
6. साहचर्य स्थापित करना-पाठ याद करते समय नवीन ज्ञान को पुराने अनुभवों के साथ सम्बन्धित करके याद करना चाहिये। विचार-साहचर्य के नियम का पालन करने से पाठ का विस्मरण नहीं होता है।
7. लय तथा पाठ-याद करते समय पाठ की प्रकृति के अनुसार लय तथा पाठ का प्रयोग करना चाहिये।
निवेदन
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