अधिगम के वक्र,पठार एवं स्थानांतरण / learning curves, plateau and transfer

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अधिगम के वक्र,पठार एवं स्थानांतरण / learning curves, plateau and transfer

अधिगम के वक्र,पठार एवं स्थानांतरण / learning curves, plateau and transfer

  (1) अधिगम के वक्र


अधिगम के वक्र सीखने की मात्रा, गति, उन्नति, अवनति को दर्शाते है।

परिभाषाये

स्किनर– अधिगम का वक्र किसी दी हुई क्रिया में उन्नति या अवनति का कागज पर विवरण है।

गेट्स एवं अन्य– अघिगम वक्र सीखने की क्रिया से होने वाली गति और प्रगतिबको व्यक्त करता  है।

रैमर्स- सीखने का वक्र किसी दी हुई क्रिया की आंशिक रूप से सीखने की पद्धति है।

सीखने के वक्र की विशेषताए-

(1)उन्नति की गति समान नही होती है।
(2)प्रारम्भिक अवस्था मे अंतिम अवस्था की तुलना में उन्नति की गति बहुत अधिक होती है।
(3)प्रारम्भ में गति तीव्र होती है पर यह सार्वभौमिक विशेषता नही है।
(4)सीखने में प्रतिदिन उतार चढ़ाव आता है पर सीखने की प्रगति एक निश्चित दिशा में होती है।

वक्र के उतार -चढ़ाव के कारण-

(1) उत्तेजना
(2) थकान
(3) प्रोत्साहन
(4) संतुलन

अधिगम वक्र के प्रकार

(1) सरल रेखीय/समान निष्पादन वक्र- इसमे सीखने की प्रगति को लागातर बढ़ते हुए दिखाया जाता है।

(2)ह्रास निष्पादन /उन्नतोदर/ऋणात्मक/convex वक्र- इसमे प्रारम्भ में गति तीव्र तथा बाद में मंद होती है। सबसे लोकप्रिय वक्र यही है । कला विषयो मे यही वक्र बनता है।

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(3)धनात्मक/वर्धमान/नतोदर/concave वक्र- इसमे प्रारम्भ में गति धीमी तथा बाद में तीव्र होती है। गणित तथा विज्ञान विषय के वक्र यही होते है ।

(4)मिश्रित/अवग्रहास/S type वक्र-  प्रारम्भ में गति तीव्र फिर धीमे फिर तेज फिर धीमे होती रहती है।

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वक्र को प्रभावित करने वाले कारक-

(1)पूर्वानुभव
(2)अभ्यास
(3) सरल से कठिन की ओर
(4)कौशल
(5)उत्साह एवं रुचि

          (2) अधिगम के पठार


जब सीखने में उन्नति व अवनति का बोध नही होता तो पठार आ जाते है ।

परिभाषाये

स्किनर– अधिगम पठार वह स्थिति है जिसमे उन्नति का बोध नही होता हैं।

रैक्स व नाईट- सीखने में पठार तब आते है जब व्यक्ति सीखने की एक अवस्था पर पहुँचकर दूसरी अवस्था में प्रवेश करता है।

सोरेनसन-सीखने की अवधि मे पठार कुछ दिनों, सप्ताहों या कुछ महीनों तक रहते है।

पठार के कारण-

(1)विषय रुचि का अभाव
(2)थकान
(3)मानसिक अस्वास्थ्यता
(4)सीखने की अनुचित विधि
(5)अभ्यास का अभाव
(6)उपयुक्तता न होना
(7)आवश्यकता के अनुरूप नही
(8)कार्य की जटिलता
(9)मनोशारीरिक दशा
(10)पुरानी आदतों का नई आदतों से संघर्ष
(11)जटिल कार्य के केवल एक पक्ष पर ध्यान
(12)व्यवधान व प्रेरणा का अभाव
(13)नकारात्मक कारक जैसे-आलस,ध्यान भंग
(14) उत्साहहीनता
(15)ज्ञान का अभाव

पठार का निराकरण-

(1)सीखने के समय का वितरण
(2)उत्साह के साथ सीखना
(3)पाठ्य सामग्री का संगठन
(4)शिक्षण विधि मे परिवर्तन
(5)प्रेरणा तथा उद्दीपन
(6)विश्राम
(7)अच्छी आदते

(3)अधिगम का स्थानांतरण


पूर्व में सीखे हुए ज्ञान का नई जगह प्रयोग ही अधिगम का स्थानांतरण है।

परिभाषाये

क्रो एंड क्रो- सीखने के एक क्षेत्र से सीखने के दूसरे क्षेत्र में स्थानान्तरित होने वाले ज्ञान को अधिगम का स्थानान्तरण कहते है।

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कल्सनिक– शिक्षा के स्थानांतरण से आशय एक परिस्थिति में प्राप्त ज्ञान,आदतों,निपुणता, अभियोग्यता का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है।

अधिगम स्थानांतरण के प्रकार-

(1)धनात्मक/सकारात्मक- यदि नया ज्ञान सीखने में पुराना ज्ञान मदद करे तो इसे अधिगम का धनात्मक स्थानांतरण कहते है।
जैसे-हिंदी का ज्ञान संस्कृत सीखने में उपयोगी होता है,
साईकल का ज्ञान मोटर बाइक सीखने में उपयोगी होता है।

(2)ऋणात्मक/नकारात्मक- यदि नया ज्ञान सीखने में पुराना ज्ञान रुकावट पैदा करे तो इसे अधिगम का ऋणात्मक स्थानांतरण कहते है। जैसे-अंग्रेजी की गिनती सीखने में हिंदी की गिनती रुकावट पैदा करती है।

(3) शून्य स्थानांतरण- जब नया ज्ञान सीखने में पुराना ज्ञान कोई मदद न करे न ही रुकावट पैदा करे । विद्वानों ने इसे अधिगम का स्थानांतरण नही माना है ।

अधिगम के स्थानांतरण के सिद्धांत-इसके दो सिद्धान्त प्रचलित है-

(1) प्राचीन सिद्धान्त- मानसिक शक्तियो का सिद्धांत, औपचारिक मानसिक प्रशिक्षण आदि प्राचीन सिद्धान्त है।

(2)आधुनिक सिद्धान्त-

इसके अंतर्गत निन्म आते है-
(i)समरूप तत्वों का सिद्धांत- थार्नडाइक ने दिया
(ii)सामान्यीकरण का सिद्धांत- सी. एच. जड ने दिया
(iii)आदर्श एवं मूल्यों का सिद्धांत- बाग्ले ने दिया।

                                        निवेदन

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