व्यंजन की परिभाषा एवं प्रकार / व्यंजनों का वर्गीकरण

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व्यंजन की परिभाषा एवं प्रकार / व्यंजनों का वर्गीकरण

व्यंजन की परिभाषा एवं प्रकार / व्यंजनों का वर्गीकरण

व्यंजन किसे कहते हैं || व्यंजन की परिभाषा | vyanjan in hindi

वे वर्ण, जिनके उच्चारण में स्वर वर्ण की सहायता लेनी पड़ती है, व्यंजन वर्ण कहलाते हैं; जैसे- अ (स्वर वर्ण) के बिना व्यंजन वर्ण का उच्चारण संभव नहीं है। अतः हम कह सकते हैं कि, प्रत्येक व्यंजन वर्ण में अ स्वर सम्मिलित होता है। व्यंजन वर्ण के उच्चारण भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बाधित होती है। मूल व्यंजन वर्णों की संख्या 33 मानी जाती है परंतु, द्विगुण व्यंजनों (ड़ तथा ढ़) को जोड़ देने पर इनकी संख्या 35 हो जाती है।

व्यंजन के प्रकार || व्यंजनों का वर्गीकरण | vyanjan ke prakar

दोस्तों व्यंजनों का वर्गीकरण, व्यंजन के प्रकार अलग अलग प्रकार के आधार पर विभाजित किये गए है। व्यंजनों के विभाजन,व्यंजनों के वर्गीकरण के कुल 6 आधार हैं,जो निम्नलिखित हैं।

(1) मूल विभाजन या अभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर स्वरों के प्रकार

(i) स्पर्श व्यंजन / उदित व्यंजन / वर्गीय व्यंजन
(ii) अन्तस्थ व्यंजन
(iii) ऊष्म व्यंजन
(iv) संयुक्त व्यंजन

(2) प्राण वायु के आधार पर स्वरों के प्रकार

(i) अल्पप्राण
(ii)  महाप्राण

(3) स्वर तंत्रियों के कंपन / घोष के आधार पर स्वरों के प्रकार

(i) घोष या सघोष
(ii) अघोष

(4) उच्चारण स्थान के आधार पर स्वरों के प्रकार – नीचे विस्तृत रूप से पढ़ेगे।

व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं || व्यंजनों के प्रकार | hindi me vyanjan ke prakar

(1) मूल विभाजन या अभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों के प्रकार

यह विभाजन सर्वप्रथम एवं सबसे प्राचीन है। मूल विभाजन के आधार पर व्यंजनों को 4 भागों में बांटा गया है। इस प्रकार व्यंजन मूलतः 4 प्रकार के होते हैं।

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(i) स्पर्श व्यंजन / उदित व्यंजन / वर्गीय व्यंजन – वे व्यंजन वर्ण, जिनका उच्चारण करते समय वायु फेफड़ों से निकलते हुए मुँह के किसी स्थान विशेष (कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत या ओंठ) को स्पर्श करते हुए निकले उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है। स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25 है। यह व्यंजनों के शुरू के 5 वर्ग होते है इसीलिए इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहा जाता है। ये व्यंजन जीभ के अलग अलग उच्चारण स्थानों के टकराने से उत्पन्न हुए हैं,इसीलिए इन्हें उदित व्यंजन भी कहा गया है।

क्र ० सं०वर्गस्पर्श या उदित व्यंजन
1क वर्गक,ख, ग, घ, ङ ।
2च वर्गच,छ, ज,झ,ञ ।
3ट वर्गट,ठ, ड, ढ, ण ।
4त वर्गत,थ,द, ध, न ।
5प वर्गप,फ, ब,भ,म ।

(ii) अन्त:स्थ व्यंजन – अंत: का अर्थ होता है – भीतर या अंदर ।   वे व्यंजन वर्ण, जिनका उच्चारण स्वर एवं व्यंजन वर्णों के बीच हो वे अन्तःस्थ व्यंजन कहलाते हैं। अन्तःस्थ व्यंजनों की संख्या 4 है- य, र, ल, व । अन्तःस्थ व्यंजन वर्णों का उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओंठों के परस्पर स्पर्श से होता किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता है। उपर्युक्त चारों अन्तःस्थ व्यंजन अर्द्ध स्वर भी कहलाते हैं।

(iii) ऊष्म व्यंजन – ऊष्मा का अर्थ है – गर्मी या गर्माहट। वे व्यंजन, जिनका उच्चारण करते समय हवा मुँह में किसी स्थान विशेष पर घर्षण करके निकले और ऊष्मा अथवा गर्मी उत्पन्न करे, ऊष्म/संघर्षी व्यंजन कहलाते हैं। इनकी संख्या 4 है – श,ष,स,ह ।

(iv) संयुक्त व्यंजन – जो व्यंजन दो व्यंजनों के मेल से बनते हैं,संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। इनकी संख्या 4 है – क्ष,त्र,ज्ञ,श्र ।

क्ष = क् + ष  = क्षमा,रक्षा,कक्षा त्र = त् + र    = पत्र,त्रिशूल,त्रिनेत्र ज्ञ = ज् + ञ   = ज्ञान,विज्ञान,यज्ञ श्र = श् + र    = श्रवण,श्रम,परिश्रम

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(2) प्राण वायु के आधार पर व्यंजनों के प्रकार

यहाँ प्राण का तात्पर्य, उच्चारण के समय मुँह से निकलने वाली वायु की मात्रा से है। प्राणत्व के आधार पर व्यंजन वर्ण दो प्रकार के होते हैं-

(i) महाप्राण – वे व्यंजन वर्ण, जिनके उच्चारण में मुँह से अधिक हवा निकले तथा जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में हकार की ध्वनि विशेष रूप से सुनाई दे, वे महाप्राण व्यंजन वर्ण कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म व्यंजन के उदाहरण हैं। प्रत्येक स्वर वर्ण न तो अल्पप्राण न ही महाप्राण होते है। इस प्रकार महाप्राण व्यंजन वर्णों की संख्या 14 है।

5 वर्गों के सम स्थान वाले वर्ण (10) + उष्म व्यंजन (4)

अर्थात ख,घ,छ,झ,ठ,ढ,थ,ध,फ,भ,श,ष,स,ह ।

NOTE– सभी उष्म व्यंजन और वर्ग के दूसरे चौथे स्थान के वर्ण ही महाप्राण वर्ण है।

(ii)  अल्पप्राण – वे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में मुँह से कम वायु निकलती हो, अल्पप्राण कहलाते हैं। इनकी संख्या 19  है।

5 वर्गों के विषम स्थान वाले वर्ण (15) + अंत:स्थ व्यंजन (4)

अर्थात क,ग,ङ,च,ज,ञ,ट,ड,ण,त,द,न,प,ब,म,य,र,ल,व ।

NOTE– सभी अंत:स्थ व्यंजन और वर्ग के पहले,तीसरे,पांचवे स्थान के वर्ण ही अल्पप्राण वर्ण है।

(3) स्वर तंत्रियों के कंपन / घोष के आधार पर व्यंजनों के प्रकार

घोषत्व का अर्थ है- स्वरतंत्रियों में ध्वनि का कंपन। घोषत्व के आधार पर व्यंजन के दो प्रकार होते हैं-

(i) घोष या सघोष व्यंजन – वे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन उत्पन्न हो,वे सघोष/घोष कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा व पाँचवाँ व्यंजन तथा सभी स्वर एवं अन्तःस्थ व्यंजन सघोष/घोष हैं। इस प्रकार सघोष/घोष वर्णों की संख्या 30 है। जिसमे घोष व्यंजनों की संख्या 20 और बाकी 10 स्वर आते है।

घोष व्यंजन – वर्गों के 3,4,5 वर्ण (15) + अंत:स्थ व्यंजन(4) + ह = कुल 20

ख,ग,ङ,ज,झ,ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म,य,र,ल,व,ह

घोष स्वर – अ से औ तक कुल 10

NOTE – सभी अंत:स्थ व्यंजन, ह वर्ण  और वर्गों के तीसरे, चौथे, पांचवे वर्ण घोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं।

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(ii) अघोष व्यंजन – वे व्यंजन वर्ण, जिनके उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन न हो, अघोष कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला और दूसरा वर्ण तथा श, ष, स अघोष हैं। इस प्रकार अघोष व्यंजनों की संख्या 13 है।
उदाहरण – क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ,ष,श,स

NOTE – श,ष,स वर्ण  और वर्गों के पहले,दूसरे वर्ण अघोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं।

(4) उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों के प्रकार

उच्चारण स्थान व्यंजन
कंठक वर्ग,ह ।
तालुच वर्ग ,य,श ।
मूर्धाट वर्ग ,र,ष ।
दंतत वर्ग ,ल,स ।
ओष्ठप वर्ग,
दंत + ओष्ठ

कुछ व्यंजन एवं उनके अन्य नाम || परीक्षा दृष्टि से उपयोगी

(1) स्पर्श संघर्षी व्यंजन – च,छ,ज,झ ।

(2) संघर्षी व्यंजन – फ़,व,स,श,ह ।

(3) नासिक्य व्यंजन – ङ,न,ण,म,ञ ।

(4) निरानुनासिक व्यंजन – च,क,ट,थ ।

(5) लुंठित या प्रकम्पित व्यंजन –

(6) पार्श्विक व्यंजन –

(7) स्वर यंत्र मुखी या काकल्य व्यंजन –

(8) अर्ध स्वर – य,व ।

(9) द्विगुण व्यंजन / उक्षिप्त व्यंजन – ढ़,ड़ ।







                           ★★★ निवेदन ★★★

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