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समास की परिभाषा एवं प्रकार / समास के नियम और उदाहरण
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definition of Samas | समास की परिभाषा
परिभाषा – दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से नए शब्द बनाने की क्रिया को समास कहते हैं। इस विधि से बने शब्दों को समस्त-पद कहते हैं। जब समस्तपदों को वापस पृथक्-पृथक् किया जाता है तो उसे समास-विग्रह कहते हैं। उदाहरणतया-‘गंगा का जल’ पद में दो पद हैं- (1) गंगा (2) जल । समास होने पर बनेगा- ‘गंगाजल’ ।
यदि ‘गंगाजल’ का विग्रह करना हो तो पुनः हम लिखेंगे – ‘गंगा का जल’ ।
नोट– (1) समास के लिए कम से कम दो पद होने चाहिए। पहले पद को पूर्वपद तथा दूसरे पद को उत्तरपद कहते (2) समास होने पर दोनों पद या अन्य अधिक पद मिलकर एक संक्षिप्त रूप धारण कर लेते हैं। (3) समास-प्रक्रिया में बीच की विभक्तियों का लोप हो जाता है। (4) समास होने पर जहाँ संधि संभव होती है, वहाँ नियमों के अनुसार संधि भी हो जाती है।
समास के प्रकार / समास के भेद
समास के प्रमुख प्रकार हैं-
(1) तत्पुरुष समास
(2) कर्मधारय समास
(3) द्विगु समास
(4) बहुव्रीहि समास
(5) द्वंद्व समास
(6) अव्ययीभाव समास ।
1. तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है तथा पूर्वपद गौण होता है। प्रायः उत्तरपद विशेष्य और पूर्वपद विशेषण होता है। उदाहरणतया-रसोई के लिए घर’ । यहाँ ‘घर’ विशेष्य है और ‘रसोई के लिए’ विशेषण है। समास-प्रक्रिया में बीच की विभक्तियों का लोप तो होता ही है, कभी-कभी बीच में आने वाले अनेक पदों का भी लोप हो जाता है। जैसे—’दहीबड़ा’ का विग्रह है-‘दही में डूबा हुआ बड़ा’। समास होने पर ‘में डूबा हुआ’ तीनों पद लुप्त हो गए हैं।
तत्पुरुष के भेद-तत्पुरुष समास के निम्नलिखित भेद हैं-
(i) कर्म तत्पुरुष
जहाँ पूर्वपद में कर्मकारक की विभक्ति का लोप हो, वहाँ ‘कर्म तत्पुरुष’ होता है। उदाहरणतया-
समस्तपद विग्रह
ग्रामगत ग्राम को गया हुआ
मरणासन्न मरण को पहुँचा हुआ
यशप्राप्त यश को प्राप्त
गृहागत गृह को आया हुआ
(ii) करण तत्पुरुष
जहाँ पूर्व पक्ष में करण कारक की विभक्ति का लोप हो, वहाँ ‘करण तत्पुरुष’ होता है। उदाहरणतया-
समस्तपद विग्रह
अकालपीड़ित अकाल से पीड़ित
भुखमरा भूख से मरा
अनुभवजन्य अनुभव से जन्य
मदमस्त मद से मस्त
ईश्वरप्रदत्त ईश्वर द्वारा प्रदत्त
मनगढ़ंत मन से गढ़ा हुआ
कष्टसाध्य कष्ट से साध्य
मनमाना मन से माना
गुणयुक्त गुण से युक्त
शोकाकुल शोक से आकुल
तुलसीकृत तुलसी द्वारा कृत
सूररचित सूर द्वारा रचित
प्रेमातुर प्रेम से आतुर
हस्तलिखित हस्त से लिखित
(iii) संप्रदान तत्पुरुष
जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संप्रदान की विभक्ति अर्थात् ‘के लिए’ का लोप होता है, वहाँ संप्रदान तत्पुरुष समास होता है।उदाहरण –
समस्तपद विग्रह
आरामकुर्सी आराम के लिए कुर्सी
युद्धक्षेत्र युद्ध के लिए क्षेत्र
क्रीडाक्षेत्र क्रीड़ा के लिए क्षेत्र
रसोईघर रसोई के लिए घर
गौशाला गौ के लिए शाला
राहखर्च राह के लिए खर्च
गुरुदक्षिणा गुरु के लिए दक्षिणा
विद्यालय विद्या के लिए आलय
देशभक्ति देश के लिए भक्ति
सत्याग्रह सत्य के लिए आग्रह
पाठशाला पाठ के लिए शाला
हथकड़ी हाथ के लिए कड़ी
प्रयोगशाला प्रयोग के लिए शाला
हथघड़ी हाथ के लिए घड़ी
यज्ञशाला यज्ञ के लिए शाला
हवनसामग्री हवन के लिए सामग्री
(iv) अपादान तत्पुरुष
जहाँ समास के पूर्व पक्ष में अपादान की विभक्ति अर्थात् ‘से (विलग) का भाव हो, वहाँ अपादान तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण –
समस्तपद विग्रह
ऋणमुक्त ऋण से मुक्त
धनहीन धन से हीन
गुणहीन गुणों से हीन
पथभ्रष्ट पथ से भ्रष्ट
भयभीत भय से भीत
जन्मांध जन्म से अंधा
देशनिकाला देश से निकाला
रोगमुक्त रोग से मुक्त
(v) संबंध तत्पुरुष
जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संबंध तत्पुरुष की विभक्ति अर्थात् का, के, की का लोप हो, वहाँ संबंध तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण –
समस्तपद विग्रह
अछूतोद्धार अछूतों का उद्धार
देशरक्षा देश की रक्षा
अमृतधारा अमृत की धारा
देशवासी देश का वासी
परनिंदा पर की निंदा
आज्ञानुसार आज्ञा के अनुसार
उद्योगपति उद्योग का पति
पूँजीपति पूँजी का पति
गंगातट गंगा का तट
पुस्तकालय पुस्तक का आलय
प्रेमसागर प्रेम का सागर
गृहस्वामी गृह का स्वामी
घुड़दौड़ घोड़ों की दौड़
भारतरत्न भारत का रत्न
जलधारा जल की धारा
भ्रातृस्नेह भ्रातृ का स्नेह
मृत्युदंड मृत्यु का दंड
जलप्रवाह जल का प्रवाह
राजपुरुष राजा का पुरुष
राजकुमार राजा का कुमार
राजभक्ति राजा की भक्ति
लखपति लाखों का पति
राजमाता राजा की माता
लोकसभा लोक की सभा
राजसभा राजा की सभा
विद्याभंडार विद्या का भंडार
(vi) अधिकरण तत्पुरुष
जहाँ अधिकरण कारक की विभक्ति अर्थात् ‘में’, ‘पर’ का लोप होता है, वहाँ ‘अधिकरण तत्पुरुष’ समास होता है। उदाहरण –
समस्तपद विग्रह
आत्मविश्वास आत्म पर विश्वास
आनंदमग्न आनंद में मग्न
घुड़सवार घोड़े पर सवार
ध्यानमग्न ध्यान में मग्न
आपबीती आप पर बीती
नीतिनिपुण नीति में निपुण
कलानिपुण कला में निपुण
पुरुषोत्तम पुरुषों में उत्तम
युद्धवीर युद्ध में वीर
कार्यकुशल कार्य में कुशल
गृहप्रवेश गृह में प्रवेश
ग्रामवास ग्राम में वास
व्यवहारकुशल व्यवहार में कुशल
शरणागत शरण में आगत
(vii) नञ् तत्पुरुष
जिस समस्तपद में पहला पद नकारात्मक (अभावात्मक) हो, उसे नञ् तत्पुरुष कहते हैं।
उदाहरण –
समस्तपद विग्रह
अकर्मण्य न कर्मण्य
अनादि न आदि
अनिच्छ न इच्छा
अजर न जर
अन्याय न न्याय
अधीर न धीर
अधर्म न धर्म
अपुत्र न पुत्र
अब्राह्मण न ब्राह्मण
अनचाही न चाही
अमर न मर
अनदेखी न देखी
अयोग्य न योग्य
अनंत न अंत
2. कर्मधारय समास
कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है; अथवा एक पद उपमान और दूसरा पद उपमेय होता है। जैसे-
(क) विशेषण-विशेष्य कर्मधारय
समस्तपद विग्रह
अंधकूप अंधा है जो कूप
नीलांबर नीला है जो अंबर
कापुरुष कायर है जो पुरुष
नीलकंठ नीला है जो कंठ
कुबुद्धि बुरी है जो बुद्धि
नीलगगन नीला है जो गगन
कृष्णसर्प कृष्ण है जो सर्प
पनचक्की पानी से चलने वाली चक्की
दहीबड़ा दही में डूबा हुआ बड़ा
पीतांबर पीत है जो अंबर
दुरात्मा बुरी है जो आत्मा
पर्णकुटी पर्ण से बनी कुटी
प्रधानाध्यापक प्रधान है जो अध्यापक
दुश्चरित्र बुरा है जो चरित्र
नीलकमल नीला है जो कमल
बैलगाड़ी बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी
मधुमक्खी मधु का संचय करने वाली मक्खी
महाजन महान है जो जन
महात्मा महान है जो आत्मा
महादेव महान है जो देव
(ख) उपमेय उपमान कर्मधारय समास-
समस्तपद विग्रह
कमलनयन कमल के समान नयन
करकमल कमल के समान कर
कुसुमकोमल कुसुम-सा कोमल
क्रोधाग्नि क्रोध रूपी अग्नि
ग्रंथरत्न ग्रंथ रूपी रत्न
महापुरुष महान है जो पुरुष
महाराजा महान है जो राजा
मालगाड़ी माल को ढोने वाली गाड़ी
वनमानुष वन में रहने वाला मनुष्य
घनश्याम घन के समान श्याम
चरणकमल कमल के समान चरण
प्राणप्रिय प्राणों के समान प्रिय
विद्याधन विद्या रूपी धन
3. द्विगु समास
जहाँ समस्तपद के पूर्वपक्ष में संख्यावाचक विशेषण होता है, वहाँ द्विगु समास होता है।
उदाहरणतया–
समस्तपद विग्रह
चवन्नी चार आनों का समाहार
द्विगु दो गौओं का समाहार
चारपाई चार पायों का समाहार
नवग्रह नव ग्रहों का समाहार
चौमासा चार मासों का समाहार
नवनिधि नव निधियों का समाहार
चौराहा चार राहों का समाहार
नवरत्न नव रत्नों का समाहार
तिरंगा तीन रंगों का समाहार
पंचतंत्र पंच तंत्रों का समाहार
त्रिफला तीन फलों का समाहार
पंचवटी पंच वटों का समाहार
पंजाब पाँच आबों का समाहार
त्रिभुवन तीन भुवनों का समाहार
त्रिलोक तीन लोकों का समाहार
शताब्दी शत अब्दों का समाहार
त्रिवेणी तीन वेणियों का समाहार
सतसई सात सौ का समाहार
दुराहा दो राहों का समाहार
सप्ताह सात दिनों का समाहार
दोपहर दो पहरों का समाहार
4. बहुव्रीहि समास
जहाँ पहला पद और दूसरा पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। जैसे- ‘एकदंत’ अर्थात् एक दाँत वाला है जो-गणेश । यहाँ ‘एक’ और ‘दंत’ में से कोई पद प्रधान या गौण नहीं है ; बल्कि ये दोनों पद मिलकर तीसरे पद ‘गणेशजी’ के लिए प्रयुक्त हो रहे हैं। अतः बहुव्रीहि समास में पहला या दूसरा- कोई भी पद प्रधान नहीं होता।
समस्तपद विग्रह
कनफटा कान है फटा जिसका (फकीर)
कमलनयन कमल जैसे नयनों वाला (राम)
गिरिधर गिरि को धारण करने वाला (कृष्ण)
गिरीश पर्वतों का राजा (हिमालय)
गजानन गज जैसे आनन वाला (गणेश)
चंद्रमुखी चंद्र के समान मुख वाली
गोपाल गो का पालन करने वाला (कृष्ण)
चक्रधर चक्र धारण करने वाला (कृष्ण)
चक्रपाणि चक्र है हाथ में जिसके (कृष्ण)
चतुर्भुज चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु)
चतुर्मुख चार हैं मुख जिसके (ब्रह्मा)
जितेंद्रिय जीत लिया है इंद्रियों को जिसने
तीव्रबुद्धि तीव्र बुद्धि वाला
त्रिभुज तीन भुजाओं वाली आकृति
त्रिलोचन तीन आँखों वाला (शिव)
त्रिवेणी तीन नदियों का संगम-स्थल (प्रयागराज )
दशानन / दशमुख दस आनन/मुख हैं जिसके (रावण)
दिगंबर दिशाएँ हैं जिसके लिए (नग्न)
निशाचर निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
नीलकंठ नीला कंठ है जिसका (शिव)
पतझड़ झड़ जाते हैं पत्ते जिस ऋतु में
पीतांबर पीले वस्त्रों वाला (कृष्ण)
पंचानन पाँच आनन हैं जिसके (शिव)
बारहसिंगा बारह सींगों वाला (एक पशु विशेष)
मक्खीचूस मक्खी को भी चूसता है जो (कंजूस)
महात्मा महान आत्मा है जिसकी
मुरलीधर मुरली धारण करने वाला (कृष्ण)
मृगनयनी मृग जैसे नयनों वाली
लंबोदर लंबा उदर है जिसका (गणेश)
षडानन षट् (छः) आननों वाला (कार्तिकेय)
5. द्वंद्व समास
जिस समस्तपद में दोनों पद समान हों, वहाँ द्वंद्व समास होता है। इसमें दोनों पदों को मिलाते समय मध्य-स्थित योजक लुप्त हो जाता है। जैसे- “भाई और बहन’ का समस्तपद होगा- ‘भाई-बहन’। यहाँ दोनों पद समान हैं। समास करते समय मध्य स्थित ‘और’ का लोप हो गया है।
अन्य उदाहरण-
समस्तपद विग्रह
अन्न जल अन्न और जल
ऊँच-नीच ऊँच और नीच
अपना पराया अपना और पराया
अमीर-गरीब अमीर और गरीब
खट्टा-मीठा खट्टा और मीठा
आशा-निराशा आशा और निराशा
गंगा-यमुना गंगा और यमुना
घी शक्कर घी और शक्कर
जन्म-मरण जन्म और मरण
उलटा-सीधा उलटा और सीधा
दाल-रोटी दाल और रोटी
यश-अपयश यश और अपयश
देश-विदेश देश और विदेश
रात-दिन रात और दिन
नर-नारी नर और नारी
राम-लक्ष्मण राम और लक्ष्मण
पाप-पुण्य पाप और पुण्य
रुपया-पैसा रुपया और पैसा
भला-बुरा भला और बुरा
सुख-दुख सुख और दुख
स्त्री-पुरुष स्त्री और पुरुष
भाई-बहन भाई और बहन
हानि-लाभ हानि और लाभ
भूख-प्यास भूख और प्यास
माता -पिता माता और पिता
6. अव्ययीभाव समास
जिस समास में पहला पद अव्यय हो, उसे ‘अव्ययीभाव समास’ कहते हैं। इसका पहला पद प्रधान होता है। इस प्रक्रिया से बना समस्तपद भी अव्यय की भाँति कार्य करता है। जैसे- प्रति + दिन = प्रतिदिन । यहाँ ‘प्रति’ अव्यय है। ‘प्रतिदिन’ समस्तपद भी अव्यय की भाँति कार्य करता है।
अन्य उदाहरण-
समस्तपद विग्रह
आजन्म जन्म से लेकर
प्रतिवर्ष प्रत्येक वर्ष / वर्ष-वर्ष
आजीवन जीवन-पर्यंत / जीवन भर
भरपेट पेट भर के
आमरण मरण तक
यथानियम नियम के अनुसार
आसमुद्र समुद्र तक
यथामति मति के अनुसार
गली-गली प्रत्येक गली
यथाविधि विधि के अनुसार
गाँव-गाँव प्रत्येक गाँव
यथाशक्ति शक्ति के अनुसार
घर-घर प्रत्येक घर
यथासमय समय के अनुसार
दिनोंदिन दिन ही दिन में
रातोंरात रात ही रात में
निडर डर रहित
साफ-साफ बिल्कुल साफ
निस्संदेह संदेह रहित
हरघड़ी घड़ी-घड़ी
प्रतिदिन दिन-दिन
हाथोंहाथ हाथ ही हाथ
बहुव्रीहि और कर्मधारय में अंतर
कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान (विशेष्य) होता है तथा पहला पद उस विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है।
उदाहरणतया- महाबीर महान है जो वीर। यहाँ ‘वीर’ (विशेष्य) का विशेषण है ‘महान’। बहुव्रीहि समास में दोनों पद मिलकर
किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं। जैसे-‘महान वीर है जो’ अर्थात् हनुमान। कुछ अन्य उदाहरण देखिए-
1. कमलनयन – कमल जैसे नयन (कर्मधारय)
– कमल जैसे नयनों वाला अर्थात् कृष्ण (बहुव्रीहि)
2. महात्मा – महान जो आत्मा (कर्मधारय)
– महान आत्मा है जिसकी (बहुव्रीहि)
आशय यह है कि बिग्रह के अंतर से कर्मधारय और बहुव्रीहि में अंतर हो जाता है।
बहुव्रीहि और द्विगु समास में अंतर
जहाँ पहला पद दूसरे पद (विशेष्य) की विशेषता संख्या में बताता है, वहाँ द्विगु समास होता है। जहाँ संख्यावाची पहला पद और दूसरा पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है।
उदाहरणतया –
1. अनादि – न आदि (कर्मधारय)
– नहीं आदि है जिसका अर्थात् ईश्वर (बहुव्रीहि)
2. अमर – न मर (कर्मधारय )
– नहीं मरता है जो अर्थात् देवता (बहुव्रीहि )
★★★ निवेदन ★★★
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