वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा,भेद एवं उदाहरण / वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा,भेद एवं उदाहरण / वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा,भेद एवं उदाहरण / वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

vakrokti alankar / वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा

वक्रोक्ति का अर्थ है वक्र उक्ति अर्थात टेढ़ी उक्ति । अर्थात् कहने वाले का अर्थ कुछ होता है, किन्तु सुनने वाला उससे कुछ दूसरा ही अभिप्राय निकाल लेता है। जहाँ प्रत्यक्ष अर्थ से भिन्न कोई अन्य अर्थ लिया जाए, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।

जहाँ बात किसी एक आशय से कही जाय और सुनने वाला उससे भिन्न दूसरा अर्थ लगा दे, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण – एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है।
                 उसने कहा अपर कैसा? लो यह उड़ गया सपर है।

स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में अपर और सपर के अर्थभेद से वक्रोक्ति अलंकार संभव हुआ है। पहले अपर का अर्थ दूसरा है जबकि श्रोता द्वारा दूसरे अपर का अर्थ परहीन (बिना पंख का) लिया गया है।

वक्रोक्ति दो प्रकार की होती है – (क) श्लेष वक्रोक्ति और (ख) काकु
वक्रोक्ति ।

(क) श्लेष वक्रोक्ति अलंकार

जहाँ उक्ति की वक्रता का आधार श्लेष हो, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति होती है। इसमें श्लेष के दो अर्थों में से वक्ता एक अर्थ ग्रहण करता है, श्रोता दूसरा ।

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उदाहरण –  को तुम हो? इत आए कहाँ ?
                 ‘घनश्याम’ हैं, तो कितहूँ बरसो ।

स्पष्टीकरण – एक बार कृष्ण राधा के यहाँ गये और उनका बंद द्वार खटखटाया। भीतर से आवाज आई : कौन हो तुम? यहाँ क्यों आये हो? अपना नाम बताते हुए कृष्ण ने कहा : मैं घनश्याम हूँ। घनश्याम का एक अर्थ श्याम घन या काले बादल भी होता है। राधा के शरारत से कहा यदि घनश्याम हो तो यहाँ तुम्हारा क्या काम है, कहीं जाकर बरसो।

उदाहरण – एक कबूतर देखा हाथ में पूछा, कहाँ अपर है?
                 उसने कहा, अपर कैसा? वह उड़ गया, सपर है।

स्पष्टीकरण – यहाँ जहाँगीर ने नूरजहाँ से पूछा- एक ही कबूतर तुम्हारे पास है, अपर (दूसरा) कहाँ गया। नूरजहाँ ने दूसरे कबूतर को भी उड़ाते हुए कहा- अपर (बे-पर) कैसा, वह तो इसी कबूतर की तरह
सपर (पर वाला) था, सो उड़ गया।

(ख) काकु वक्रोक्ति अलंकार

जहाँ कहे हुए वाक्य का कंठ की ध्वनि के कारण दूसरा अर्थ निकले, वहाँ ‘काकु वक्रोक्ति’ होती है।

उदाहरण –  आये हू मधुमास के प्रियतम ऐहैं नाहिं।
                 आये हू मधुमास के प्रियतम ऐहैं नाहि ?

स्पष्टीकरण – कोई विरहिणी कहती है कि बसन्त आने पर भी प्रियतम ‘नहीं आयेंगे।’ सखी उन्हीं शब्दों द्वारा कल्पित करती है कि क्या प्रियतम नहीं आयेंगे? अर्थात् ‘अवश्य आयेंगे।’

उदाहरण – लिखन बैठि जाकी सबिहि, गहि गहि गरब गरूर।
                 भए न केते जगत के चतुर चितेरे कूर॥

स्पष्टीकरण – यहाँ उच्चारण के ढंग, अर्थात् काकु के कारण भए न केते (कितने न हुए) का अर्थ सभी हो गए हो जाता है।

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वक्रोक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण

(1) रुठहि करै तासौं को खेलें।

(2) क्या कहूं आज जो नहीं कही।

(3) एक कह्यो वर देत सिव, भाव चाहिए मीत।
     सुनि कह कोउ, भोले भवहिं भाव चाहिए मीत।।

(4) भिक्षुक गो कित को गिरिजे।
     सो तो माँगन को बलिद्वार गयो री।।

(5) राम साधु तुम साधु सुजाना।
      राम मातु भलि मैं पहिचाना।।

(6) प्यारी काहे आज तुम वामा हो कतरात
     हम तो हैं वामा सदा का अचरज की बात ।।

(7) लिखन बैठि जाकी सबी, गहि गहि गबर गरूर ।
      भये न केते जगत के चतुर चितेरे क्रुर ।।

(8) आयें हूँ मधुमास के प्रियतम ऐहैं नाहिं |
     आये हूँ मधुमास के प्रियतम ऐहै नाहिं ।

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                          ★★★ निवेदन ★★★

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