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मूल प्रवृत्ति और संवेग / मैकडूगल के 14 संवेग एवं मूल प्रवृत्तियां
संवेग का अर्थ एवं परिभाषाएं (EMOTION psychology)
Emotion शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द Emovere से हुई है जिसका अर्थ है- उत्तेजित करना। संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा को प्रदर्शित करता हैं। संवेग जन्मजात होता है। सभी संवेगों का विकास एक साथ न होकर धीरे-धीरे होता है।
वाटसन के अनुसार- नवजात शिशु में 3 संवेग पाये जाते हैं। (भय, क्रोध, प्रेम)
ब्रिजेज के अनुसार- जन्म के समय शिशु मे केवल 1 संवेग ‘उत्तेजना’ होता है तथा 2 वर्ष की आयु तक सभी संवेगों का विकास हो जाता है।
बुडवर्थ के अनुसार– “संवेग, व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।”
जरशील्ड के अनुसार– किसी भी प्रकार के आवेश आने, भड़क उठने तथा उत्तेजित हो जाने की अवस्था को संवेग कहते हैं।
रॉस के अनुसार– संवेग चेतना की अवस्था है जिसमें रागात्मक तत्व की प्रधानता रहती है।
संवेग की विशेषताएं
(1) संवेग एक विशेष मानसिक दशा है जिसमें व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक दशा तथा व्यापार में परिवर्तन होता है।
(2) संवेग परिवर्तनशील होता है।
(3) संवेगों का प्रभाव व्यक्ति की क्रियाशीलता पर पड़ता है।
(4) संवेग जाग्रत तो अचानक से हो जाते हैं लेकिन शान्त धीरे-धीरे होते हैं।
(5) संवेग जैसे-जैसे तीव्र हाते हैं- बुद्धि में वैसे-वैसे कमी आने लगती है। (6) संवेग के दो पहलू होते हैं- सकरात्मक एवं नकरात्मक।
(7) संवेग प्राकृतिक होते हैं- जैसे क्रोध (नकारात्मक संवेग)
(8) संवेग विकसित होते हैं- जैसे-प्रेम (सकारात्मक संवेग)
नोट-
1- किसमें कितनी संवेगात्मक बुद्धि है इसकी जाँच करने के लिए जिस इकाई विशेष का प्रयोग किया जाता है। उसे “संवेगात्मक लब्धि’ (E.Q.) कहते हैं।
2- कोई व्यक्ति जीवन में कितना सफल हो सकता है इसकी भविष्यवाणी संवेगात्मक लब्धि (E.Q.) से की जा सकती है।
मूलप्रवृत्ति और संवेग
(1) संवेग के तुरंत बाद होने वाली क्रिया ही मूल-प्रवृत्ति कहलाती है। अर्थात पहले संवेग होता है उसके परिणाम स्वरूप मूल प्रवृत्ति होती है।
(2) मैक्डूगल को मूल प्रवृत्ति का जनक कहा जाता है।
(3) विलियम मेक्डूगल व गिलफोर्ड ने ‘भय’ को सर्वाधिक महत्वपूर्ण संवेग माना है।
(4) एक बालक में निम्न 14 प्रकार के संवेग होते हैं।
फ्रायड की मूल प्रवृत्ति
यह दो प्रकार की है–
(1) जीवन की मूल प्रवृत्ति – यह ऊर्जा तथा जीवन से सम्बन्ध रखती है। इसे (“इरोस”) कहा गया है।
(2) मृत्यु की मूल प्रवृत्ति – यह विनाश से सम्बन्ध रखती है। इसे (“येनाटोस”) कहा गया है।
मैकडूगल के 14 संवेग एवं मूल प्रवृत्तियां / मैकडूगल के अनुसार 14 संवेग एवं उनकी मूल प्रवृत्तियां
मैकडूगल ने कुल 14 संवेगों को बताया है। इनमें से कुछ संवेग सकारात्मक तथा कुछ संवेग नकारात्मक हैं। मैकडूगल ने अधिकार, आत्म अभियान,आश्चर्य, आमोद, करुणा, कृतभाव, वात्सल्य आदि को सकारात्मक संवेग की श्रेणी में रखा है। मैकडूगल ने भय, क्रोध,भूख, कामुकता, घृणा, आत्महीनता, एकाकीपन आदि को नकारात्मक संवेग की श्रेणी में रखा है।
क्र०सं० | संवेग | मूल प्रवृत्ति |
1 | भय | पलायन |
2 | क्रोध | युयुत्सा (युद्ध करने की इच्छा) |
3 | भूख | भोजन तलाश |
4 | कामुकता | काम प्रवृत्ति |
5 | घृणा | निवृत्ति |
6 | आत्महीनता | दैत्य (दानव प्रवृत्ति) |
7 | एकाकीपन | सामूहिकता |
8 | अधिकार | संग्रहण |
9 | आत्म-अभियान | आत्म गौरव |
10 | आश्चर्य | जिज्ञासा |
11 | आमोद | हास |
12 | करुणा | शरणागति |
13 | कृतभाव | रचना |
14 | वात्सल्य | संतान |
नोट – (1) आडियस ग्रन्थि- लड़के का माँ के प्रति प्रेम (या पितृ-विरोधी भावना)
(2) इलेक्ट्रा ग्रन्थि- लड़की का पिता के प्रति प्रेम (या मातृ- विरोधी भावना)
निवेदन
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