विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा

जहाँ कारण के होने पर भी कार्य न हो, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण –  पानी बिच मीन, मीन पियासी ।
                मोहि सुनि-सुनि, आवै हाँसी ॥

स्पष्टीकरण –  यहाँ पर ‘मीन’ पानी के बीच भी प्यासी है। यहाँ ‘कारण’ पानी होते हुए भी कार्य (प्यास बुझाना) नहीं हो रहा है।

उदाहरण – फूलइ फलइ न बें, जदपि सुधा बरसहिं जलद
                मूरख हृदय न चतें, जौ मुरू मिलई विरंचि सम ।।

स्पष्टीकरण – बादल की सुधदृष्टि के बाद भी बेंत का न फूलना न फलना और विदंचि (ब्रह्मा) जैसे गुरू होने के बाद भी मूर्ख के हृदय में चेतना उत्पन्न न होना ‘विशेषोक्ति अलंकार’ है।

उदाहरण – लागन उर उपदेश, जदपि कहयौ सिव बार बहु ।

स्पष्टीकरण – शिव के बार-बार कहने पर भी, मूर्ख को उपदेश एमझ में नहीं आ रहा है।

विशेषोक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण

(1) नयनो से जल की वर्षा होने पर भी प्यास नहीं बुझती।

(2) देखों दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी ।
नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझाई।

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(3) पानी बिच मीन प्यासी, मोहि सुनि सुनि आवै हॉसी ।

(4) कहाँ कहै हरि के गये, विरह बसी अनुरागि
      बहत नयन सौ नीर नद, तदपि दहति बिरहागि ।।

(5) अनेह न नैननु को कछू, उपजी बड़ी बलाइ ।
     नीर भरे नितप्रति रहँ, तऊ न प्यास बुझाई ||

(6) त्यों त्यों प्यासेई रहत, ज्यों-ज्यों पियत अघाइ ।
      सगुण सलोने रूप की, जु न चख तृषा बुझाइ ।।

(7) बरसत रहत अछेह वै, नैन वारि की धार ।
        कमिति न हैं, तऊ तो वियोग की झार ।।

(8) नैकु बुझति नहीं बिरहानल, नैननि नीर- नदी बहने पर ।

(9) लाग न उर उपदेश, जदपि कह्यौ सिव बार बहु




                            ★★★ निवेदन ★★★

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