उल्लेख अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / उल्लेख अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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ullekh alankar | उल्लेख अलंकार की परिभाषा

काव्य में जहाँ एक वस्तु का अनेक प्रकार से उल्लेख किया जाए, वहाँ उल्लेख अलंकार होता है।

उदाहरण –  जाकी रही भावना जैसी।
               प्रभु मूरति देखी तिन तैसी ॥
              देखहिं भूप महा नरधीरा ।
              मनहुँ वीर रस धरे शरीरा ॥
             डरे कुटिल नृप प्रभुहिं निहारी ।
              मनहुँ भयानक मूरति भारी ॥
              पुरवासिन देखे दोउ भाई।
             नरभूषन लोचन सुखदाई ॥

स्पष्टीकरण –  यहाँ राम-लक्ष्मण का, अनेक व्यक्तियों के, अनेक दृष्टिकोणों द्वारा उल्लेख किया गया है। अतः यहाँ उल्लेख अलंकार है।

उदाहरण –  तू रूप है किरन में, सौन्दर्य है सुमन में।
                  तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में।
                  तू ज्ञान हिन्दुओं में, ईमान मुस्लिमों में।
                  तू प्रेम क्रिश्चियन में, है सत्य तू सुजन में।

स्पष्टीकरण –  यहाँ रूप का किरण, सुमन, में और प्राण का पवन, गगन कई उल्लेख है।

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उल्लेख का शब्दिक अर्थ तो है लिखना परन्तु यहाँ पर इसका वर्णन से तात्पर्य है। इस अलंकार में एक वस्तु का अनेक प्रकार से वर्णन किया जाता है। ऐसा दो तरह से हो सकता है- (क) ज्ञातृभेद द्वारा (ख) विषय भेद द्वारा

(क) ज्ञातृभेद द्वारा- जहाँ अनेक व्यक्ति एक वस्तु का, अपनी-अपनी भावना के अनुसार अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं। जैसे-

जानति सौति अनीति है, जानति सखी सुनीति ।
गुरुजन जानत लाज हैं, प्रीतम जानत प्रीति ।।

प्रस्तुत नायिका को सौतें अनीति, सरिवयाँ सुनीति, गुरुजन लज्जा और प्रियतम प्रेम-रूप जानते हैं। अपनी-अपनी भावना के अनुसार एक ही वस्तु (नायिक) को भिन्न-भिन्न व्यक्ति विभिन्न रूपों में देखते हैं।

(ख) विषय भेद द्वारा- जहाँ एक व्यक्ति एक वस्तु का भिन्न-भिन्न गुणों के कारण अनेक प्रकार से वर्णन करता है। जैसे-
मेरे नगपति मेरे विशाल !
साकार, दिव्य गौरव विराट !
पौरुष के पुंजीभूत ज्वाल !
मेरी जननी के हिमकिरीट !
मेरे भारत के दिव्य भाल!

यहाँ एक नगपति (हिमालय) का गौरव, पौरुष, ज्वाल, हिम-किरीट और दिव्य भाल इन अनेक रूपों में वर्णन है, अतः विषय भेद द्वारा उल्लेख अलंकार है।

उल्लेख अलंकार के अन्य उदाहरण

(1) बिन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।

(2) कोउ कह नर-नारायन,हरि-हर कोउ।
    कोउ कह, बिहरत बन मधु-मनसिज दोउ॥




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