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अर्थान्तरन्यास अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / अर्थान्तरन्यास अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण
अर्थान्तरन्यास अलंकार की परिभाषा
जहाँ किसी सामान्य बात का विशेष बात से तथा विशेष बात का सामान्य बात से समर्थन किया जाय वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है।
उदाहरण – जो ‘रहीम’ उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग ।
चंदन विष व्यापत नहिं लिपटे रहत भुजंग ।।
स्पष्टीकरण –
सामान्य अर्थ – दोहे का पहला चरण
विशेष अर्थ – दोहे का द्वितीय चरण |
उदाहरण – कुसंगति अच्छी प्रकृति वालों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
स्पष्टीकरण – इस सामान्य अर्थ का विशेष से समर्थन है कि सर्प लिपटे रहते हैं पर चन्दन में विष व्याप्त नहीं होता |
अर्थान्तरन्यास अलंकार के अन्य उदाहरण
(1) जो बड़िन को लघु कहै नाहि रहिम घटि जाय ।
गिरिधर मुरलीधर कहै कछु दुख मानत नाहिं ।।
(2) बड़े न हुजै गुनन बिनु विरद बड़ाई पाय ।
कहत धतूरे सो कनक गहनो गढ़ो न जाय ।।
(3) कछु कहि नीच न छेड़िये, भलो न वाको संग
पाथर डारे कीच में, उछरि बिगारत अंग ।।
(4) टेढ़ जानि बदौ सब काहू । वक्र चंद्रमहि ग्रसै न राहू ॥
(5) सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय ।
पवन जगावत आग को, दीपहि देत बुझाय ।।
(6) कारन ते कारज कठिन, होय दोष नहिं मोर ।
कुलिष अस्थि ते उपल तें, लोह कराल कठोर ।।
★★★ निवेदन ★★★
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