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कोहलर का सूझ या अन्तदृष्टि का सिद्धान्त / गेस्टाल्टवादियों का सिद्धांत / Insight Theory of Kohler in hindi
कोहलर का सूझ या अन्तदृष्टि का सिद्धान्त / गेस्टाल्टवादियों का सिद्धांत / Insight Theory of Kohler in hindi
प्रतिपादक-कोहलर
कोहलर की पुस्तक – Mentality of Apes
प्रयोग- वनमानुष या सुल्तान नामक ‘चिम्पाजी’
सूझ के सिद्धान्त का प्रतिपादक गेस्टाल्टवादियों को माना जाता है। प्रमुख गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिक Max-Werthiemer (मैक्स वर्वाइमर) ने सर्वप्रथम इस तरह के सीखने की बात की। बाद में उनके शिष्य Kohler (कोहलर) और Kotka (कोपका) ने इस सिद्धान्त को आगे बढ़ाने का काम किया। सबसे उच्चकोटि का सीखना-अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखना है। इस प्रकार के सीखने में समझ तथा सूक्ष्मता की आवश्यकता होती है। इन सिद्धान्तवादियों के मतानुसार व्यक्ति सम्बन्ध अथवा प्रयल और भूल द्वारा न सीखकर सूझ (Insight) द्वारा सीखते हैं। हम कुछ कार्यों को करके सीखते हैं। कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें हम बिना बताए सीख लेते हैं। अर्थात् अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर सीखते है।
अंतर्दृष्टि मनुष्य या प्राणी की वह शक्ति है जो क्रिया करते-करते एकाएक प्राप्त होती है। सूझ का सम्बन्ध बुद्धि, चिन्तन और कल्पना से है। अर्थात सूझ एक ऐसी प्रतिक्रिया है, जो समस्त परिस्थिति के निरीक्षण के फलस्वरूप एकाएक उत्पन्न होती है। तथा लक्ष्य की प्राप्ति तक अविराम गति से चलती रहती है।
नोट- कोहलर का विचार है कि व्यक्ति प्रयत्न और भूल द्वारा नहीं सीखता बल्कि वह अपनी मानसिक शक्ति, सूझ और बुद्धि के अनुसार समस्यापूर्ण परिस्थिति का प्रत्यक्ष निरीक्षण करता है।
कोहलर का प्रयोग
कोहलर के प्रयोग में चिम्पाजी (सुल्तान नामक) एक कमरे में बन्द रखा गया छत में एक रस्सी बांधकर कुछ केले लटकाए जो उसके पहुंच से ऊपर था। कमरे में बॉक्स इधर-उधर रखे थे। कई प्रयास किया पर प्राप्त नहीं हुआ। इधर- उधर देखने पर उसे बॉक्स का ध्यान आया। झट से उसने एक बाक्स रखा पर प्राप्त नहीं कर सका। फिर दूसरे बॉक्स को रखकर प्रयत्न किया लेकिन फिर भी केले न मिले। अन्त में उसने तीसरा बॉक्स भी रखा और इस बार सफलता प्राप्त कर लिया केला मिल गया। यहाँ उसकी सूझ/अन्तर्दृष्टि से ही उसको सफलता मिली
अमेरिका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ऑलपोर्ट ने 19 माह से 49 माह तक के बच्चों पर परीक्षण किया जिसमें खिलौने को शिशुओं की पहुँच से ऊपर रख दिया गया। पास में चारपाई या कुर्सी को रख दिया, पहले शिशु ने उछलकूद कर खिलौने को पाने का प्रयास किया परन्तु नहीं प्राप्त कर सकने पर उन्होंने कुछ सोचा और कुर्सी पर चढ़कर खिलौना प्राप्त कर लिया।
इन प्रयोगों से सिद्ध होता है कि बालक भी सूझ द्वारा सीखते हैं। सूझ का आधार कल्पना है। जिस व्यक्ति में जितनी अधिक कल्पनाशक्ति होगी वह उतनी ही जल्दी किसी काम को सीख पायेगा। बड़े-बड़े दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की सफलता का रहस्य उनकी सूझ ही है।
सूझ के सिद्धांत या गेस्टाल्टवादियों के सिद्धांत की विशेषताएं
1. स्थिति की व्यवस्था (Arrangement of situation)- सूझ उत्पन्न होने में सरलता सभी होती है, जब हम समस्या से सम्बन्धित सभी अंगों को इस प्रकार से व्यवस्थित कर लेते हैं। कि उनमें सम्बन्ध देखा जा सके; जैसे-डण्डा और केला एक ही सीध में रखे जायें।
2. पुनरावृत्ति (Repetition) – सूझ में कार्य की पुनरावृत्ति सही तरीके से होती है, उसमें गलती की सम्भावना नहीं रहती है। अतः सीखने का स्थायित्त्व होता है।
3. स्थानान्तरण (Transfer) –सूझ के द्वारा सीखा गया ज्ञान स्थानान्तरण में उपयोगी होता है। इसमें साधन और साध्य के बीच संज्ञानात्मक सम्बन्ध होता है।
4. अनुभव (Experience) – सूझ व्यक्ति के अनुभव पर निर्भर होती है। जितना अधिक अनुभव सीखने वाले को होगा, उतनी ही सूझ का प्रयोग वह सीखने में कर लेगा।
कोहलर के अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त का शिक्षण में महत्व और प्रयोग
(1) तत्परता का विकास- छात्रों को सीखने की सफलता के लिए आवश्यक है कि वह मानसिक और संवेगात्मक रूप से तत्पर रहे। इस प्रकार के सीखने में तत्परता का काफी महत्त्व है अत: शिक्षकों को ऐसा माहौल बनाना चाहिए ताकि छात्र सीखने को तत्पर रहें।
(2) प्रेरणा का महत्त्व – अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने में प्रेरणा का काफी योगदान है। अन्तर्दृष्टि का विकास तभी होगा जब बालक सीखने के उद्देश्य को जानता हो । अतः इस प्रकार के सीखने में शिक्षक को चाहिए कि बालक के सामने उद्देश्य स्पष्ट कर दें।
(3) जिज्ञासा का विकास – बिना जिज्ञासा के सूझ द्वारा सीखना सम्भव हो नहीं है। अतः बालकों की सूझ का समुचित उपयोग करने के लिए आवश्यक है कि अध्यापक बालकों की जिज्ञासा को बनाये रखे।
(4) विषय संगठन –अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने में विषय संगठन का काफी महत्त्व है। अध्यापक को विषयवस्तु इस रूप में प्रकट करनी चाहिए कि बालक समस्या को समग्र रूप से समझ सके।
(5) पूर्ण समस्या का प्रस्तुतीकरण – अध्यापक द्वारा समस्या को छात्रों के समक्ष पूर्ण रूप से प्रस्तुत करना चाहिए खण्डों या टुकड़ों में बाँटकर नहीं। ऐसे में छात्र समस्या का हल नहीं ढूँढ़ पायेंगे। किसी भी समस्या में प्रस्तुत किया जाएगा।
(6) दैनिक जीवन में महत्त्व (Importance in daily life) – छोटे बच्चे टॉर्च में बैटरी,चैन में स्याही भरना आदि को सूझ के द्वारा ही सीखते हैं।
(7) सृजन में उपयोगी (Usefull in creativity) – संसार की सभी उपादेयताएँ सूझ के ऊपर निर्भर करती हैं। खोज कार्य सूझ के ही परिणाम हैं।
(8) सौन्दर्यानुभूति (Asthetic) – सूझ के द्वारा ही कला, साहित्य, संगीत आदि विधाओं का विकास हुआ है।
(9) आदत निर्माण (Habit formation) – स्किनर ने सूझ का प्रयोग आदतों के निर्माण के लिये उत्तम माना है।
(10) समस्या समाधान (Problem solving) – शिक्षा के क्षेत्र में बालकों के सामने समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, सूझ के द्वारा उनका हल बालक स्वयं ही निकाल सकता है।
(11) लक्ष्य प्राप्ति (Object realisation) – ड्रेवर ने लक्ष्य प्राप्ति में सूझ का महत्त्व माना है।
अतः शिक्षा के क्षेत्र में सूझ की उपयोगिता बहुत अधिक है जैसा कि गैरिसन एवं अन्य ने लिखा है-“विद्यालय में बालक के समस्या समाधान पर आधारित अधिकांश सीखने की इस सिद्धान्त के द्वारा व्याख्या की जा सकती है।”
अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of Insight Theory)
गेस्टाल्टवाद ने मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में नवीन मान्यताओं को जन्म दिया, परन्तु फिर भी कुछ आधारों पर इसकी आलोचना की जाती है-
(1) यह मनोविज्ञान तथा शिक्षादर्शन का सम्मिलित रूप है।
(2) सभी तरह का सीखना इस आधार पर सम्भव नहीं है।
(3) इसमें भी प्रयल और भूल किसी न किसी मात्रा में विद्यमान रहती है।
(4) विद्वानों का विश्वास है कि सूझ पशुओं और बालकों पर लागू नहीं होती क्योंकि उनमें चिन्तन का अभाव होता है।
निवेदन
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