राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबंध / essay on Mahatma Gandhi in hindi

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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबंध / essay on Mahatma Gandhi in hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबंध / essay on Mahatma Gandhi in hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबंध / essay on Mahatma Gandhi in hindi


रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) जन्म, शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन,
(3) स्वतंत्रता आन्दोलन के नेता, (4) गाँधी जी के आदर्श, (5) उपसंहार।

प्रस्तावना –

तुम रक्तहीन, तुम माँसहीन, तुम अस्थिशेष, तुम अस्थिहीन ।
तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुराण है, हे चिर नवीन ||

-सुमित्रानन्दन पन्त

भारत भूमि महान् पुरुषों की जन्म स्थली रही है। प्राचीन काल से ही यहाँ ऐसे महापुरुष जन्म लेते रहे हैं, जिन्होंने मानव समाज की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, अशोक, कबीर, शंकराचार्य आदि आदर्श पुरुषों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। आधुनिक भारत में भी एक महापुरुष ने जन्म लिया। उनका नाम मोहनदास कर्मचन्द गाँधी था। आपने हिंसा और पशुबल को पराजित करने के लिए जो अहिंसारूपी शस्त्र प्रदान किया, वह वास्तव में आज ही क्या युग-युग तक अक्षुण्य रहेगा। आश्चर्य है कि इसी शस्त्र कभी भी सूरज न डूबने वाला साम्राज्य भी नतमस्तक हो गया। सारे संसार ने उसकी महत्ता के सम्मुख अपना शीश झुका दिया। भारतवासियों ने उसे ‘राष्ट्रपिता’ और ‘बापू’ कहकर पुकारा। विश्व उन्हें महात्मा गाँधी के नाम से जानता है।

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जन्म, शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन-

गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1869 को गुजरात राज्य के पोरबन्दर जिले के काठियाबाड़ नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गाँधी राजकोट के दीवान थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था, जिनकी धार्मिक भावनाओं का प्रभाव गाँधी जी पर विशेष रूप से पड़ा था। गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई थी। एण्ट्रेंस परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे इंग्लैण्ड बैरिस्टरी पढ़ने गये। वहाँ से सन् 1891 ई० में लौटने पर उन्होंने वकालत प्रारम्भ कर दी। बचपन से ही गाँधी जी को सत्य से गहरा प्रेम था। ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ नाटक पढ़ने और देखने के बाद तो वे सत्य के पुजारी ही बन गये। तेरह वर्ष। की आयु में ही उनका विवाह कस्तूरबा के साथ कर दिया गया।

स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेता—

एक मुकदमे के सम्बन्ध में गाँधी जी को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने भारतीयों की दुर्दशा देखी। अंग्रेजों ने अनेक अवसरों पर गाँधी जी को अपमानित भी किया। यह देखकर गाँधी जी की आत्मा छटपटा उठी और उन्होंने भारतीयों की दशा सुधारने की शपथ ली।यहीं से उनका सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन आरम्भ हो गया। भारत लौटने पर गाँधी जी ने स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व किया। सारा देश उनके पीछे चल पड़ा। सन् 1924 में देश में साम्प्रदायिक दंगों की आग को शान्त करने के लिए आपने इक्कीस दिन का उपवास रखा।

आपकी ही प्रेरणा से सन् 1929 में रावी नदी के किनारे होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी गयी। उनके अहिंसात्मक आन्दोलन से अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलने लगीं। गाँधी जी के नेतृत्व में देश में ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ हुआ । नमक कानून तोड़ने के लिए उन्होंने डाँडी यात्रा की और सन् 1942 में उन्होंने ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा दिया। नेहरू, पटेल, अनेक नेता उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अनेक नवयुवकों ने पढ़ाई-लिखाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में भाग लिया। अन्त में सत्य और अहिंसा की विजय हुई और 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया।

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राजेन्द्र प्रसाद गाँधी जी के आदर्श –

गाँधी जी के आदर्श महान् थे। वे सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनका जीवन अत्यन्त सादा और पवित्र था। वे मानव मात्र की सेवा को अपना धर्म मानते थे। दीन-दुःखी और पीड़ित लोगों की सेवा करना तथा उनका उत्थान करना उनका लक्ष्य था। उन्होंने हरिजनों तथा स्त्रियों के उद्धार के लिए अनेक कार्य किये। वे प्रेम, त्याग और करुणा की सजीव मूर्ति थे। गाँधी जी ने सदैव हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रयत्न किया। वे संकीर्ण धार्मिक भावना के विरोधी थे। उनके लिए सब धर्म समान थे। कुछ लोग उनकी इस उदार धार्मिक भावना के विरोधी थे। नाथूराम गोडसे नामक एक धर्मान्ध हिन्दू ने 30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा में गाँधी जी की हत्या कर दी और यह महापुरुष संसार से विदा हो गया।

उपसंहार-

आज़ द्वेष और हिंसा के वातावरण में गाँधी जी के आदर्श ही भटकते हुए मानव और राजनीति को सही राह दिखा सकते हैं। उस युग पुरुष के सिद्धान्त ही संसार के कल्याण के लिए मूल-मंत्र हैं। गाँधी जी नेता, विचारक और आध्यात्मिक पुरुष थे। वे हमें स्वतन्त्र कर गये, संसार को शान्ति और सत्मार्ग का मार्ग बता गये तथा भारत की शांति नीति को विश्व में फैला गये। उन्होंने शताब्दियों से सोये भारतवर्ष को जाग्रत किया तथा देश में आत्म-सम्मान की लहर दौड़ाई। उनका चरित्र न केवल भारतीयों के लिए, अपितु विश्व के लिए भी अनुकरणीय है। भारतीय युग-युग तक उन्हें याद रखेंगे।

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