मौलाना अबुल कलाम आजाद पर निबंध / essay on Abul Kalam Azad in hindi

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मौलाना अबुल कलाम आजाद पर निबंध / essay on Abul Kalam Azad in hindi

मौलाना अबुल कलाम आजाद पर निबंध / essay on Abul Kalam Azad in hindi


रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) जन्म और शिक्षा, (3) देश सेवा,
(4) उपसंहार।

प्रस्तावना-

मौलाना अबुल कलाम आजाद भारत के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने बाल्यावस्था से ही देश के नव जागरण में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया और अपनी लेखनी, वाणी तथा संगठन शक्ति के सहारे देश की जनता के सभी वर्गों को स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। सन् 1942 में जब गाँधी जी के नेतृत्व में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन प्रारम्भ हुआ, उस समय मौलाना आजाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। भारत की स्वतन्त्रता के बाद भी नये राष्ट्र को धर्म-निरपेक्षता के आधार पर संगठित करने के कार्य में उनका योगदान बहुत ही महत्त्वपूर्ण था।

जन्म और शिक्षा—

मौलाना अबुल कलाम का जन्म सन् 1888 में मक्का में हुआ था। उनके पूर्वज शेख जमालुद्दीन मुगल सम्राट् अकबर के दरबार में सम्मानित हो चुके थे। सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के पश्चात् देश में जो दमनकारी वातावरण पैदा हो गया था, उसे देखते हुए अबुल कलाम के पिता मौलाना खैरुद्दीन भारत छोड़कर मक्का जा बसे थे। वहीं प्रसिद्ध विद्वान् शेख मुहम्मद जहूर की बेटी से अबुल कलाम का विवाह हुआ। अबुल कलाम के पिता आधुनिक शिक्षा को बहुत बुरा समझते थे। उनका विचार था कि इससे बालक में धार्मिक प्रवृत्ति नष्ट हो जाती है।

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अतः उन्होंने अबुल कलाम को स्वयं घर पर पढ़ाना शुरू कर दिया। अबुल कलाम बहुत परिश्रमी और मेहनती छात्र थे। उन्होंने 16 वर्ष की अवस्था में ही अध्ययन पूरा कर लिया था। इसी उम्र में उन्होंने विद्यार्थियों को गणित, तर्कशास्त्र और दशर्नशास्त्र।जैसे विषय पढ़ा कर अपनी योग्यता का परिचय दिया। उनकी सम्पूर्ण शिक्षा में धार्मिक वातावरण में पुरानी परम्परा के अनुसार हुई थी। इस बीच उन्होंने सर सैयद अहमद खाँ के कुछ लेख पढे । विद्वानों के सम्पर्क में आने के कारण उनके विचारों में संघर्ष आरम्भ हुआ। परिवार में चली आ रही परम्परा से वे असन्तुष्ट थे। इसी समय उन्होंने अपने नाम के साथ ‘आजाद’ लगाने का निश्चय किया और मौलाना ‘आजाद’ बन गये।

देश सेवा–

सन् 1892 में आपने आधुनिक तरीके की उर्दू साप्ताहिक पत्रिका ‘अल हिलाल’ प्रकाशित करना आरम्भ किया। देश का वातावरण ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध होता जा रहा था। असहयोग आन्दोलन जोर पकड़ता और अन्य नेताओं के साथ-साथ मौलाना अबुल कलाम आजाद भी जेल में बन्द कर दिये गये। सन् 1922 में 35 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। वे जीवन भर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए संघर्षरत रहे।

उपसंहार-

मौलाना अबुल कलाम आजाद में पुराने और नये विचारों का अनोखा सामंजस्य था । वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। वे देश सेवा और इस्लाम धर्म की सेवा दोनों को एक-दूसरे का पूरक मानते थे। जब बहुत व्यक्ति ब्रिटिश सरकार के दुष्चक्र के शिकार बनकर साम्प्रदायिकता की आग में जल रहे थे, मौलाना अबुल कलाम आजाद ने सदैव राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के संघर्ष राष्ट्रीय जीवन की मुख्य धारा का समर्थन किया। वे वास्तव मिली-जुली संस्कृति के सर्वोत्तम उदाहरण थे। 22 फरवरी, 1958 को यह महान्व्य क्तित्व नश्वर शरीर को त्यागकर सदैव के लिए अमर हो गया।



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