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भारतीय संस्कृति पर निबंध / essay on Indian culture in hindi
रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) विभिन्नता में एकता, (3) मानवता का सन्देश, (4) भारतीय संस्कृति की विश्व को देन, (5) उपसंहार ।
प्रस्तावना—
व्यक्ति संस्कृति का निर्माता है। उसने अपने चिन्तन, मनन, अनुभव और प्रयासों के आधार पर संस्कृति का विकास किया है। इस संस्कृति के लोगों का सीखा हुआ व्यवहार और संचित ज्ञान, विश्वास, प्रथाएँ, परम्पराएँ, धर्म, सामाजिक मूल्य और मानव निर्मित समस्त भौतिक वस्तुएँ आती हैं। भारतीय संस्कृति जितनी विशाल है, उतनी ही वह प्राचीन और सुदृढ़ भी है, यही कारण है कि आज भी भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में से एक होकर ज्यों की त्यों है, जबकि अन्य संस्कृतियों का पतन हो गया है। हमारी सभ्यता और संस्कृति को मिटाने के लिए बार-बार विदेशी आक्रमण होते रहे हैं, तब भी यह नहीं मिट पाई है। इस विषय में किसी शायर का यह कहना
कितना सत्य प्रतीत होता है-
यूनान, मिस्र, रोमा, सब मिट गये जहाँ से,
लेकिन अभी है बाकी, नामों निशां हमारा ।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
गोकि रहा है, दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा ॥
विभिन्नता में एकता –
भारतीय संस्कृति का अमर वट वृक्ष प्राचीनतम वैदिक काल से लेकर आज तक फल-फूल रहा है तथा अपने मंगलकारी रूप में विद्यमान है। भारत एक विशाल देश है। इसमें अनेक जातियाँ हैं। अनेक धर्म हैं, अनेक प्रान्त हैं, अनेक ऋतुएँ हैं। एक प्राकृतिक भाग की पूर्ति के रूप में यहाँ की अनेकता में एक सम्पूर्णता के दर्शन होते हैं। ऐसा मालूम होता है कि भारतीय संस्कृति ने समस्त सृष्टि के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया है। यह सत्य है कि भारतीय संस्कृति मूलतः आर्य संस्कृति ही है, किन्तु यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि इस संस्कृति में जो कुछ उपयोगी समझा उसे तत्काल ग्रहण कर लिया। आर्य संस्कृति ने आदि जातियों से दुर्गा पूजा, द्रविणों से शिव पूजा, जैनों से मूर्ति पूजा आदि के तत्व ग्रहण किये। समय-समय पर यूनानी, शक, कुषाण, हूण, मुसलमान आदि आक्रमणकारी यहाँ आते रहे। उनकी संस्कृति की अनेक बातें भारतीय संस्कृति में समाहित हो गयीं। भारत में ऊपरी भिन्नता होते हुए भी भीतरी एकता विद्यमान है। यह भिन्नता वातावरण और परिस्थितियों की भिन्नता के कारण है। अलग-अलग वातावरण में रहने के कारण यहाँ के निवासियों की वेश-भूषा, खान-पान, भाषा तथा रीति-रिवाजों में अन्तर होते हुए भी यहाँ के निवासी अपने आपको भारतवासी कहते हैं। इसका कारण यह है कि यहाँ के लोग धर्म, कर्म, लोक-परलोक तथा सभी देवी-देवताओं में समान रूप से विश्वास करते हैं। यह विश्वास सभी भारतवासियों को एक-दूसरे समीप लाता है। भारतीय संस्कृति समानता तथा अपनत्व का सन्देश देती है। हमारे प्राचीन सन्त-महापुरुषों ने भी समानता के पथ पर आगे बढ़ने का सन्देश दिया है। मानवता का सन्देश मानवता का सन्देश भारतीय संस्कृति की एक अन्य प्रमुख विशेषता है। इसका मूल सिद्धान्त है ‘जियो और जीने दो’। यह सिद्धान्त मानवीय सम्बन्धों के आधार पर सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में बाँध लेना चाहता है। सहनशीलता, परोपकार, अहिंसा, क्षमा, दया, उदारता आदि मानवीय गुणों की देन में भारतीय संस्कृति का प्रमुख हाथ रहा है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत आज भी विश्व के मंच पर अपनी गरिमा बनाये हुए है।
भारतीय संस्कृति की विश्व को देन-
भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति के मनीषियों ने विश्व को गणित के अंक दिये, दशमलव प्रणाली दी,शून्य का विचार दिया, बीजगणित दिया और ज्यामिति का जन्म भी भारत में ही हुआ। विश्व में साहित्य का प्रथम रूप ऋग्वेद को माना जाता है, जो भारतीय संस्कृति का मूल है। संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति की अमर देन है। इसी का विकसित रूप ‘भारतीय परिवार’ की सभी भाषाओं का मूल रूप है। आध्यात्मिक क्षेत्र में जन्म-मरण की विद्या, प्राण विद्या, दर्शन विद्या एवं गम्भीर अनुभूति तथा जीव मुक्ति का सिद्धान्त भारतीय संस्कृति की देन है। खगोल विद्या में जो प्रगति विश्व में हुई है, वह भारतीय संस्कृति की ही देन है।
उपसंहार-
आज के बढ़ते भौतिकवाद ने विश्व में अशान्ति पैदा कर दी है। स्वार्थ की भावना चरम सीमा पर पहुँच गयी है। आज लगता है कि विश्व पतन के कगार पर खड़ा है ऐसी भयानक स्थिति में उबारने वाला एक मात्र साधन भारतीय संस्कृति है क्योंकि भारतीय संस्कृति विश्व शान्ति का सन्देश देती है।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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