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21 वीं सदी का भारत पर निबंध / essay on 21th century of India in hindi
रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) 21वीं सदी में प्रवेश, (3) विज्ञान एवं कम्प्यूटर, (4) आध्यात्मिकता, (5) शिक्षा-दीक्षा, (6) उपसंहार ।
प्रस्तावना-
21वीं सदी का भारत नवजात शिंशु की भाँति कुण्ठाओं से रहित, निरन्तर वृद्धिगत एवं विकासमान राष्ट्र होगा। वह एक ऐसा वट वृक्ष होगा, जिसकी जड़ें गहरी होंगी। वे गौरवशाली परम्पराओं से रस ग्रहण करती हुई नित्य नई शाखाओं को प्रस्फुटित करने में समर्थ होंगी। वह वट वृक्ष प्रत्येक पक्षी और पथिक को आश्रय एवं व्यवहार प्रदान करने वाला स्थायी स्रोत होगा ।
21वीं सदी में प्रवेश-
20वीं सदी नित्य नये उतार-चढ़ावों, परिवर्तनों एवं संघर्षों से परिपूर्ण रही है। इसके पूर्वार्द्ध में दो विश्व युद्ध हुए, जिनके कारण भगवान और विधान दोनों के प्रति जन सामान्य की आस्थाएँ डगमगा गयीं। वस्तुतः बीसवीं शताब्दी का वातावरण अनेकानेक कुण्ठाओं एवं विसंगतियों से पूर्ण रहा है। 21वीं सदी के कर्णधार नागरिक बीसवीं सदी की विषमताओं से विहीन एवं समस्त कुण्ठाओं, पूर्वाग्रहों आदि से मुक्त होंगे। वे नवभारत के निर्माण में प्राण-प्रण से संलग्न हो जायेंगे। यह नई पीढ़ी प्रगतिपथ पर अतीत के सुफल बटोरेगी, वर्तमान के फूल बिखेरेगी तथा भविष्य के बीज बोती हुई निरन्तर गतिमान रहेगी।
विज्ञान एवं कम्प्यूटर–
हमारे भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी ने नारा दिया था— “इक्कीसवीं सदी का भारत ।” इस नारे का अर्थ है हम शीघ्र ही इक्कीसवीं सदी में पहुँच रहे हैं। श्री राजीव गाँधी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तथा कम्प्यूटर के सहारे भारत को 21वीं शताब्दी में ले जाने को निरन्तर प्रयत्नशील थे। वे इसी मार्ग से 21वीं सदी में प्रवेश करना – कराना चाहते थे।
वस्तुतः तकनीकी उन्नति की माँग ही है कि हम ज्ञानेन्द्रियों की क्षमता में वृद्धि करने वाले उपकरणों का नित्य नया विकास करें। भारत में शक्ति कार्यों के लिए अणु क्षेत्र में जो तरह-तरह के प्रयोग एवं निर्माण कार्य चल रहे हैं, उनके कारण इक्कीसवीं सदी में पहुँचकर भारत संसार का उन्नत एवं समृद्धतम देश माना जाने लगेगा। वह इतना शक्तिशाली हो जायेगा, उसकी सीमाएँ इस तरह से सुदृढ़ और इतनी फौलादी हो जायेंगी कि किसी की हिम्मत आँख उठाकर इसकी स्वतन्त्र सत्ता की ओर बुरी नीयत से देख पाने की नहीं होगी।
आध्यात्मिकता—
हमारी परिकल्पना है कि 21वीं सदी के भारत में मनीषी,सन्त,श्रेष्ठ वैज्ञानिक तथा शक्ति-सम्पन्न राजपुरुष मानव होंगे। भारत की आत्मिक शक्ति नये रूप में प्रस्फुटित होगी और पूर्ण वेग के साथ प्रवाहमान होगी। 21वीं सदी के भारत के सम्मुख गौरवशाली परम्पराओं के वरदान के साथ परम्परागत समस्याओं के अभिशाप भी होंगे। सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक आदि सभी प्रकार की समस्याएँ अपना समाधान नये सिरे से चाहेंगी। 21वीं सदी का भारत गाँधीवादी जीवन दर्शन की उपेक्षा करके, करनी का वरण कर चुका होगा। तब बापू के सुख-स्वप्न को साकार करने वाला रामराज्य हमारा जीवनादर्श होगा। उसकी परम्पराएँ हमारा जीवन मूल्य होंगी। तब राजनीति का भी धर्म होगा और धर्म की राजनीति होगी। प्रत्येक भारतवासी अपने गुण-स्वभाव के अनुसार अपने जीवन का निर्माण करने के लिए स्वतंत्र होगा। भारत सदियों पुराने आध्यात्मिक गौरव को पुनः प्राप्त करेगा और आध्यात्मिक क्षेत्र में भारत का विश्व में एक विशेष स्थान होगा।
शिक्षा-दीक्षा—
अशिक्षा और विदेशी अन्धानुकरण हमारे देशवासियों की दूषित मनोवृत्ति है । इस दुष्प्रवृत्ति को हमें रोकना होगा । 21 वीं सदी की शिक्षा नीति भारत को नया मानव प्रदान करेगी। उस शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत बालक को भीड़ के अंग के रूप में नहीं, एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में शिक्षित प्रशिक्षित होने के अवसर प्रदान किये जायेंगे। उसको न तो कोरा कागज समझा जायेगा जिसमें चाहे जो कुछ लिखा जा सके और न उसको एक खाली बर्तन ही समझा जायेगा, जिसमें चाहे कुछ भर दिया जाये।
उसको एक विकासशील पौधे की तरह विकसित होने के लिए उन्मुक्त एवं उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराया जायेगा। इसका निर्माण समर्पित शिक्षकों के हाथों में होगा। प्रत्येक स्तर पर रोजगार परक शिक्षा की व्यवस्था होगी। 21वीं सदी के भारत की शिक्षा नीति का लक्ष्य ऐसे नागरिकों का निर्माण करना होगा जो अपने परिवार, समाज, देश और उसकी मिट्टी से प्यार करें, अपने आप को भारतीय कहने में आत्म-गौरव का अनुभव करें।
उपसंहार –
इस प्रकार 21वीं सदी का भारत सही अर्थों में भारतीय मानवों वाला देश होगा। इनमें अपनी जन्मभूमि, संस्कृति, भाषा आदि के प्रति अगाध आस्था होगी। छूआछूत, ऊँच-नीच, धनी-निर्धन, राजा-रंक का यहाँ नाम भी नहीं होगा। ईश्वर करे कि 21वीं सदी में भारत का स्वरूप हमारी कल्पना से भी अधिक समृद्ध एवं श्रेष्ठ हो ।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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