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भारत-अमेरिका परमाणु समझौता पर निबंध / essay on Indo-US nuclear deal in hindi
रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) भारत में परमाणु कार्यक्रम, (3) भारत अमेरिका परमाणु सन्धि, (4) आई० ए० ई० ए०, (5) उपसंहार ।
प्रस्तावना –
देश में तमाम विरोधों को नजर अंदाज करते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2006 में अमेरिका के साथ जिस सहमति पर स्वीकृति की मुहर लगा दी है, वह एक रूप में चिर अभिलक्षित संधि ही कही जा सकती है। इस असैन्य परमाणु सहयोग पर द्विपक्षीय संधि जॉर्ज वॉकर बुश एवं डॉ० मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर से सम्पन्न हुई।
भारत में परमाणु कार्यक्रम –
1974 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका सहित विश्व के तमाम देशों के समक्ष यह तथ्य उभरा कि तीसरी दुनिया के देश भी परमाणु हथियार तकनीक विकसित करने की राह में हैं। परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों के बीच यह चिन्ता का विषय था। इसी के पश्चात् परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का 1975 में गठन किया गया। लन्दन में कई सामूहिक बैठकों के बाद यह सहमति बनी कि मात्र उन्हीं देशों को परमाणु पदार्थ, उपकरण यह प्रौद्योगिकी निर्यात की जा सकेगी जिन्हें IAEA के सुरक्षा नियम अनुमति देते हैं अथवा वर्तमान सुरक्षा से सम्बन्धित कोई विशिष्ट परिस्थितियाँ मौजूद हैं। भारत-अमेरिका परमाणु संधि को इसी सर्वमान्य सिद्धान्त के कारण परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह से स्वीकृति लेना अनिवार्य है। वर्ष 2005 तक परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के सदस्य राष्ट्रों की संख्या 45 थी।
भारत अमेरिका परमाणु सन्धि–
भारत-अमेरिका परमाणु संधि का यह दौर बिल क्लिंटन के सी० टी० बी० टी० पर हस्ताक्षर कराने के दबाव वाले दौर से कई कदम आगे का है। इस संधि को भारतीय पक्ष में झुकाने के लिए कई दौर की वार्ताएँ की गई और अन्ततः फौरी तौर पर भारतीय परमाणु कार्यक्रम को उसके प्रभाव से मुक्त रखने की कोशिश भी की गई। ऊर्जा ऐजेंसी की निगरानी में रहेंगे। इस प्रकार कुल 22 में से 14 रियेक्टर है। समझौते के अनुसार भारत के 65% परमाणु रियेक्टर, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ही इसके अन्तर्गत आएँगे, शेष 8 परमाणु रियेक्टरों का उपयोग सैन्य कार्यों के लिए हो सकेगा।
आई० ए० ई० ए० आई० ए० ई० ए० एक निगरानी करने वाली संस्था है जो रियक्टर्स के विकिरणमूलक सुरक्षा उपायों के मानक निर्धारित करने के सामान्य कामकाज के साथ-साथ इस बात की निशानदेही भी करती है कि नाभिकीय सामग्री का हस्तातरण गलत हाथों में, गलत उद्देश्यों के लिए नहीं हो। नाभिकीय हथियारों से सम्पन्न देशों के रिएक्टर्स की निगरानी नाममात्र की तथा विकिरणमूलक सुरक्षा के लिहाज से की जाती है। भारत-अमेरिका समझौते के अनुसार इस निगरानी प्रणाली में भारत को एक खास दर्जा मिलेगा। नाभिकीय हथियार रखने की उसकी माँग मंजूर कर ली गई है, तथा उसके सैन्य संयंत्रों को निगरानी के दायरे में नहीं लाया गया।
उपसंहार –
भारत में इस संधि को लेकर विपक्ष के जो स्वर उठे हैं, उनका कारण अमेरिका के सम्बन्ध में हमारा साठ वर्षों का कटु अनुभव है। आज भी या तो आप हमारे साथ हैं, नहीं तो खिलाफ जैसे सूत्र वाक्य पर आधारित अमेरिकी विदेशी नीति विरोध को और तीव्र करती है। विपक्ष का यह मानना है कि अमेरिका इस समझौते के माध्यम से भारत की परमाणु क्षमता को सीमित करना चाहता है।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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