शहरी जीवन पर निबंध / essay on Urban Life in hindi

आपको अक्सर स्कूलों में निबंध लिखने को दिया जाता है। ऐसे में हम आपके लिए कई मुख्य विषयों पर निबंध लेकर आये हैं। हम अपनी वेबसाइट istudymaster.com के माध्यम से आपकी निबंध लेखन में सहायता करेंगे । दोस्तों निबंध लेखन की श्रृंखला में हमारे आज के निबन्ध का टॉपिक शहरी जीवन पर निबंध / essay on Urban Life in hindi है। आपको पसंद आये तो हमे कॉमेंट जरूर करें।

शहरी जीवन पर निबंध / essay on Urban Life in hindi

शहरी जीवन par nibandh,शहरी जीवन पर निबंध,shahri jivan pr nibandh hindi me,essay on Urban Life  in hindi,Urban Life essay in hindi,शहरी जीवन पर निबंध / essay on Urban Life in hindi,

रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) वरदान, (3) अभिशाप, (4) ग्रामीण जीवन, (5) उपसंहार।

प्रस्तावना –

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। उसे सामूहिक रूप से परस्पर मिल-जुल कर ही रहना पड़ता है, भले ही वह किसी शहर में रहे अथवा गाँव में। प्रायः मनुष्य उसी स्थान पर रहना पसन्द करता जहाँ उसके जीवन की आबश्यकताएँ आसानी से पूरी हो सकें। यही कारण है कि शहर में रहना अधिक अच्छा समझते हैं।

वरदान–

शहरों में पक्के गगनचुम्बी मकान हैं। चिकित्सा, रोजगार, शिक्षा,परिवहन, मनोरंजन आदि प्रत्येक सुविधा सुलभ है। शहर में बिजली एवं का व्यवस्था चौबीस घण्टे होती है। यहाँ रोजगार के अवसर तो इतने व्यापक हैं कि प्रत्येक शिक्षित, अर्द्धशिक्षित, अशिक्षित किसी-न-किसी कार्य में लगकर अपने जीवन की गाड़ी सरलता से खींच सकता है। शहरों में व्यापारिक केन्द्र,औद्योगिक संस्थान, सरकारी कार्यालय, अर्द्ध-सरकारी अथवा व्यक्तिगत कार्यालय लोगों की रोजगार की समस्या को सुलझाने के लिए उपस्थित रहते हैं। शहरों में रोगग्रस्त होने पर चिकित्सा के लिए सुयोग्य डॉक्टर, नर्से मिल जाते हैं, जो मनुष्य को काल का ग्रास बनने से बचा लेते हैं।

See also  महात्मा गौतम बुद्ध पर निबंध / essay on Mahatma Buddha in hindi

आधुनिकतम मशीनें मानव के लिए जीवनदायिनी शक्ति को धारण किये हुए उसे यमराज के चंगुल से छुड़ा लाती हैं। शिक्षा मानव-जीवन के लिए प्रकाश-स्तम्भ हैं। शिक्षाविहीन मनुष्य को पशु समान कहा गया है। शिक्षा प्राप्ति के लिए विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय शहरों में ही होते हैं। ये मानव को ज्ञानचक्षु प्रदान करके विश्व में सभ्य नागरिक कहलाने के योग्य बनाते हैं। शहरों में जीवन की नीरसता को सरसता में परिवर्तित करने वाले मनोरंजन केन्द्र, सिनेमा घर, प्रदर्शनियाँ, नाटक मण्डल आदि जगह-जगह दृष्टिगोचर होते हैं। शहरों में पक्की सड़कों का जाल बिछा होता है, जो देश के विभिन्न हिस्सों “को एक-दूसरे से जोड़ देते हैं।

इन सड़कों पर दौड़ते हुयी साइकिल, स्कूटर, मोटर गाड़ियाँ, बसें, ताँगे, जीवन की गतिशीलता का आभास कराते हैं। रेल की पटिरयों को रौंदती हुई रेलगाड़ियाँ एक कोने में रहने वाले व्यक्ति को कुछ ही घण्टों में दूसरे कोने में स्थित प्रिय सम्बन्धी तक पहुँचा देती हैं। रात्रि में विद्युती चकाचौंध ऐसा आभास देती है मानो आकाश धरती पर उतर आया हो । शहर की ऐसी जगमग, सुविधाएँ, रौनक जनमानस को सहज ही आकर्षित कर लेती हैं। इसे स्वर्ग का प्रतिरूप मानने को प्रेरित करती हैं।

अभिशाप—

किन्तु यह तो तस्वीर का केवल एक ही रूप है। इसका दूसरा रूप उतना ही मलिन है, जितना पहला उज्ज्वल है। शहर कृत्रिमता की खान हैं। गन्दगी तथा प्रदूषण के भण्डार हैं। शहरी-जीवन की भागमभाग में किसी के पास इतना समय ही नहीं होता कि दूसरे के सुख-दुःख में साथ निभाए। हाँ, औपचारिकताएँ अवश्य निभा दी जाती हैं। शहर में प्रत्येक व्यक्ति अपने असली चेहरे पर एक मुखौटा चढ़ाए रहता है। उसकी वास्तविकता को जानना कठिन हो जाता है। शुद्धता की तो कल्पना ही की जा सकती है। शहर में मिलने वाली हर वस्तु में मिलावट का होना एक साधारण बात है। आवागमन की सुविधाएँ भी वातावरण में प्रदूषण का जहर उगलती हैं।

See also  भारतीय वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध / essay on Maharani Lakshmi Bai in hindi

ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण यहाँ की प्रमुख विशेषताएँ हैं, जो लोगों के शरीर को रोगी बना दे । भले ही यह सही है कि शहरों में बड़े-बड़े भवन, अट्टालिकाएँ होती हैं, किन्तु वे नसीब कितने लोगों को होती हैं? शहरों में रहते हुए कई लोगों को तो झोंपड़ी तक नहीं मिल पाती; क्योंकि आवास अत्यन्त महँगे होते हैं, जिनका व्यय वहन करना साधारण व्यक्ति के लिए दुष्कर होता है। दुर्घटनाओं के जितने भी समाचार सुनने में आते हैं, उनमें से अधिकांश तो शहरों में ही घटित होते हैं। यह शहरी जीवन का अभिशापमय रूप है। इस विषय में प्रसाद की ये पंक्तियाँ पूर्णतः सत्य प्रतीत होती हैं—

“यहाँ सतत् संघर्ष विफलता, कोलाहल का यहाँ राज है।

अन्धकार में दौड़ लग रही, मतवाला यहाँ सब समाज है |”

ग्रामीण जीवन-

अब आइए, ग्रामीण जीवन की ओर भी दृष्टिपात करें। गाँवों में स्थिति प्रायः शहरों के विपरीत ही है। गाँव में बड़े-बड़े कच्चे मकान दिखाई देते हैं, जिन्हें मकान कम और मिट्टी की घेराबन्दी कहना अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू, हरे-हरे पौधों के बीच में अपने सिर उठाए सरसों के पीले फूल एवं पलाश के फूलों की लाली देखकर लगता है, मानो धरती माँ ने हरे वस्त्रों पर पीली चुनरिया ओढ़कर माँग में लाल सिन्दूर भर लिया हो। मन्द-मन्द बहती हुई स्वच्छ वायु हृदय को प्रफुल्लित कर देती है। गाँव के नैसर्गिक सौन्दर्य पर रीझकर सहृदय बरबस कह उठता है-

अहा ! ग्राम्य जीवन भी क्या है,

ऐसी सुख शान्ति व सुन्दरता और कहाँ है ?

उपसंहार —

See also  नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर निबंध / essay on Netaji Subhash Chandra Bose in hindi

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि शहरी जीवन एक वरदान है अथवा अभिशाप, यह निर्णय करना तो व्यक्ति के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। ‘दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।’ वास्तविकता यह है कि शहर देश का तन है तो गाँव उसकी आत्मा ।

👉 इन निबंधों के बारे में भी पढ़िए

                         ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

आपको यह निबंध कैसा लगा । क्या हमारे इस निबंध ने आपके निबंध लेखन में सहायता की हमें कॉमेंट करके जरूर बताएं । दोस्तों अगर आपको शहरी जीवन पर निबंध / essay on Urban Life in hindi अच्छा और उपयोगी लगा हो तो इसे अपने मित्रों के साथ जरूर शेयर करें।

tags – शहरी जीवन par nibandh,शहरी जीवन पर निबंध,shahri jivan pr nibandh hindi me,essay on Urban Life  in hindi,Urban Life essay in hindi,शहरी जीवन पर निबंध / essay on Urban Life in hindi,

Leave a Comment