कर्त्तव्य पालन पर निबंध / essay on perform duty in hindi

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कर्त्तव्य पालन पर निबंध / essay on perform duty in hindi

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रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) हमारा कर्त्तव्य, (3) कर्त्तव्य पालन या धर्म पालन, (4) उपसंहार।

प्रस्तावना –

कर्त्तव्य वह कर्म है जिसे करना हमारा परम धर्म है और जिसके न करने से हम अन्य लोगों की दृष्टि से गिर जाते हैं। इसलिए हमें अपने कर्त्तव्य का पालन यथा शक्ति अवश्य करना चाहिए।

हमारा कर्त्तव्य-

प्रारम्भिक अवस्था में कर्त्तव्य पालन बिना दबाव के नहीं हो सकता, क्योंकि पहले-पहल मन अपने आप उसे करना नहीं चाहता। इसका प्रारम्भ सर्वप्रथम घर से ही होता है, क्योंकि यहाँ लड़कों का कर्त्तव्य माता-पिता के प्रति, माता-पिता का कर्त्तव्य लड़कों के प्रति दिखाई देता है। इनके अतिरिक्त पति-पत्नी, स्वामी-सेवक और स्त्री-पुरुष के परस्पर अनेक कर्त्तव्य हैं। घर के बाहर हम मित्रों, पड़ोसियों और अन्य लोगों के परस्पर कर्त्तव्य को देखते हैं। संसार में मनुष्य का जीवन कर्त्तव्यों से भरा पड़ा है। जिधर देखो कर्त्तव्य ही कर्त्तव्य दिखाई पड़ते हैं। बस, इसी कर्त्तव्य का पूरा-पूरा पालन करना हमारा धर्म है और इसी से हमारी शोभा बढ़ती है। 

कर्त्तव्य पालन या धर्म पालन –

हमारे मन में एक ऐसी शक्ति है जो हमें सभी बुरे कामों को करने से रोकती है और अच्छे कामों की ओर प्रवृत्त करती है। प्रायः देखा गया है कि जब कोई व्यक्ति कोई गलत कार्य करता बिना किसी के कहे अपने आप ही शर्मिन्दा होता है और मन में दुःखी होता है। दृढ़ विश्वास रखो कि जब हमारा मन किसी काम के करने से हिचकिचाये और दूर भागे तब कभी भी उस काम को नहीं करना चाहिए। धर्म पालन करने में सबसे बड़ी बाधा चित्त की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है।

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मनुष्य के कर्त्तव्य मार्ग में एक ओर तो आत्मा के भले-बुरे कर्मों का ज्ञान हो और दूसरी ओर आलस्य और स्वार्थपरता। बस, मनुष्य इन्हीं दोनों के बीच में पड़ा रहता है और अन्त में यदि उसका मन पक्का हुआ तो वह आत्मा की आवाज सुनकर अपना धर्मपालन करता है। यदि उसका मन कुछ समय तक संघर्ष में पड़ा रहे तो स्वार्थपरता निश्चय उसे घेरेगी और उसका पतन हो जायेगा। इसलिए यह अति आवश्यक है कि आत्मा जिस बात के करने की आज्ञा दे उसे बिना अपना स्वार्थ सोचे,तुरन्त कर डालना चाहिए। ऐसा करते-करते जब धर्म पालन करने की आदत पड़ जायेगी तब फिर किसी भी बात का भय नहीं रहेगा।

उपसंहार —

हमारा जीवन सदैव अनेक कार्यों में व्यस्त रहता है। हमारा अधिकांश समय काम करते ही व्यतीत होता है। इसलिए हमको इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि सदा धर्म के अनुसार कार्य करें और कभी उसके पथ से विचलित न हों, चाहे उसके करने में हमारे प्राण ही क्यों न चले जायें।

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