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स्वदेश-प्रेम अथवा देश-भक्ति पर निबंध / essay on patriotism in hindi
रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) देश-प्रेम स्वाभाविक है, (3) देश-प्रेम से तात्पर्य, (4) देश के प्रति हमारा कर्त्तव्य, (5) उपसंहार ।
प्रस्तावना –
हम उन वीरों के बच्चे हैं, जो धुन के पक्के सच्चे थे,
हम उनका मान बढ़ायेंगे, हम जग में नाम कमायेंगे ।
रोको मत, आगे बढ़ने दो, आजादी के दीवाने हैं,
हम मातृभूमि की सेवा में, अपना सर्वस्व लगायेंगे ।
अपना देश तो स्वर्ग से भी बढ़कर है। जिस भूमि की धूल में हम लोट-पोटकर बड़े हुए हैं, जिसके अन्न से हमारे शरीर का भरण-पोषण हुआ है, जिसके जल और वायु ने हमें जीवन-दान दिया है, उस स्वदेश को क्या कभी भुलाया जा सकता है ? स्वदेश की रक्षा हेतु हमें अपना जीवन भी अर्पण कर देना चाहिए। यदि हम उस पर सर्वस्व भी न्यौछावर कर दें तो भी हम उसके ऋण से कदापि उऋण नहीं हो सकते।
देश-प्रेम स्वाभाविक है—
स्वदेश प्रेम होना स्वाभाविक ही है। मनुष्य मे ही क्या, पशु-पक्षियों में, यहाँ तक कि पेड़-पौधों में भी अपने स्थान से प्रेम होता है। पक्षी दिन भर आकाश में उड़ते हैं, परन्तु सन्ध्या होते ही अपने घोंसलों में वापस आ जाते हैं। पशु कितना ही बाहर घूमे, परन्तु जो आनन्द उसे अपने निवास स्थान पर प्राप्त होता है, वह अन्यत्र कहाँ ? जो पेड़-पौधे जिस स्थान पर पनपते और विकसित होते हैं, उन्हें यदि दूसरे स्थान पर लगा दिया जाये तो वे सूख जायेंगे। अंगूर मरुस्थल में पैदा नहीं किये जा सकते। ऊँटों को यदि नन्दन वन भी रहने को दिया जाये तो भी वे अपने प्यारे मरुस्थल को नहीं त्याग सकते।
देश-प्रेम से तात्पर्य –
देश-प्रेम का स्वरूप क्या है या देश-प्रेम क्या होता है या देश-प्रेम किसे कहते हैं? इस पर विचार करने पर यही पाते हैं कि देश-प्रेम हृदय या मन की एक पवित्र धारा है, जिसमें गोता लगाकर हम अपने जीवन-कर्म को शुद्ध और सफल बनाते हैं। जिस देश में हम रहते हैं, उसके पशु-पक्षी, नदी-नाले, वन-पर्वत, बाग-बगीचे आदि के साथ रहते-रहते हम उससे परिचित हो जाते हैं। उसकी हर दशा से हम प्रभावित होते हैं और उसके साथ अपने जीवन व्यापार को जोड़ देते हैं। हमारा तन-मन तथा कार्य-व्यापार सभी कुछ जब देश के प्रत्येक स्वरूप से प्रभावित होने लगता है, तभी हम सच्चे देश-प्रेमी कहला सकते हैं। देश-प्रेम और देश-सेवा में घनिष्ठ सम्बन्ध है।
बिना देश सेवा के देश-प्रेम ढोंग है। अपने देश को प्रेम करने का तात्पर्य यह है कि हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों को देश के लिए त्याग दें, उसकी उन्नति करने में अपना पूर्ण योगदान दें। देश की उन्नति तभी सम्भव हो सकती है, जब उसके निवासी स्वयं उन्नतिशील बनें। व्यक्ति ही किसी देश की अविभाज्य इकाई होते हैं। बिना आत्मोन्नति के देश की उन्नति असम्भव है। संसार में उन महान् आत्माओं की कमी नहीं है, जिन्होंने स्वदेश के लिए असहनीय कष्टों का सामना किया। उन्होंने भयंकर दुःख सहे और अन्त में हँसते-हँसते अपने प्राण तक दे दिये। भारतीय स्वाधीनता के मुक्ति आन्दोलन में लाखों देशभक्तों ने अपने प्राणों की बलि दी एवं अंग्रेजी शासन के घोर अत्याचार सहे।
देश के प्रति हमारा कर्त्तत्य-
हमारा कर्त्तव्य है कि हम इन महान् आत्माओं के पद-चिह्नों पर चलें। इसी में हमारा और हमारे देश का गौरव है। वास्तव वही देश उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है, संसार में कुछ कर सकता है, जहाँ के निवासी देश की उन्नति में अपनी उन्नति और देश की अवनति में अपनी अवनति समझते हैं। पश्चिम के देश आज इसीलिए उन्नति के शिखर पर चढ़े हुए हैं, क्योंकि वहाँ के लोग स्वदेश भक्त हैं। वे सदैव अपने देश के हित को ध्यान में रखते हैं।
उपसंहार-
आज हमारा कर्त्तव्य है कि हम सच्चे स्वदेश-प्रेम का आदर्श स्थापित करें तथा अत्यन्त कठिनाइयों से प्राप्त स्वतंत्रता की रक्षा अपने प्राणों से भी अधिक करें। हम देश की भलाई के लिए एक होकर जुट जाएँ और देश की उन्नति में रोड़ा अटकाने वाले तथा देश-विरोधी तत्वों को शीघ्र नष्ट करने का प्रयत्न करें। हमारा एक ही संकल्प होना चाहिए- ‘जिएँ तो देश के लिए,मरें तो देश के लिए’ । क्योंकि —“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ॥”
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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