गार्डनर का बहुबुद्धि सिद्धांत / Gardner theory of multiple intteligence in hindi

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गार्डनर का बहुबुद्धि सिद्धांत / Gardner theory of multiple intteligence in hindi

गार्डनर का बहुबुद्धि सिद्धांत / Gardner theory of multiple intteligence in hindi

Gardner theory of multiple intteligence in hindi / गार्डनर का बहुबुद्धि सिद्धांत

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गार्डनर का बहुबुद्धि सिद्धान्त (Gardner’s Theory of Multiple Intelligence)

Gardner’s गार्डनर का यह सिद्धान्त बहुबुद्धि सिद्धान्त (Multiple Intelligence Theory) के नाम से जाना जाता है। गार्डनर ने सर्वप्रथम 1983 ई0 में बहुबुद्धि सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त के प्रतिपादन में गार्डनर ने यह स्थापित किया है कि बुद्धि एकाकी (Singular) न होकर बहुकारकीय (Multifactor) होती है। उनकी यह मान्यता उनके द्वारा न्यूरो मनोविज्ञान (Neuropsychology) तथा मनोमितिक विधियों (Psychometric methods) में किए गए शोध हैं। अपने पहले सिद्धांत (1983) में  गार्डनर ने  मुख्यत 7 प्रकार की बुद्धि का वर्णन किया है। पुनः इसके बाद 1998 में  8 प्रकार की बुद्धि का वर्णन किया । और इसके दो साल बाद सन 2000 में 9 प्रकार की बुद्धि का वर्णन किया ।

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गार्डनर के अनुसार बुद्धि के प्रकार

1. भाषाई बुद्धि- भाषा बोध क्षमता
2. तार्किक बुद्धि व गणितीय बुद्धि
3. स्थानीय बुद्धि (स्थानिक बुद्धि) लेखक
4. शारीरिक गतिक बुद्धि
5. सांगीतिक बुद्धि
6. व्यक्तिगत बुद्धि
7. व्यक्तिगत अन्य बुद्धि
8. प्रकृतिवादी बुद्धि (1998) किसान जैव विज्ञान
9. अस्तित्ववादी बुद्धि (2000)

बहुबुद्धि सिद्धांत /  गार्डनर का सिद्धांत

गार्डनर के बहुवादी दृष्टिकोण के अनुसार सब लोगों के पास कम से कम सात भिन्न-भिन्न बुद्धियाँ होती हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के बुद्धि पार्श्व चित्र के आधार पर अलग-अलग मात्रा में कार्य करती हैं। गार्डनर द्वारा अभिनिर्धारित ये सात बुद्धियाँ हैं- भाषाई बुद्धि, तार्किक बुद्धि, गणितीय बुद्धि, स्थानिक बुद्धि, शारीरिक -गतिसंवेदी बुद्धि, सांगीतिक बुद्धि, अंतवैयक्तिक बुद्धि और आंतर वैयक्तिक बुद्धि ।

(1) भाषाई बुद्धि

अभिव्यक्ति और संप्रेषण की वाहिका के रूप में भाषा का प्रभावी प्रयोग करने की क्षमता व्यक्ति की भाषाई बुद्धि है (उदाहरण: कवि और लेखक)।

(2) तार्किक -गणितीय बुद्धि

किसी व्यक्ति द्वारा तर्कसंगत रूप से सोचने, संख्याओं का प्रभावी ढंग से प्रयोग करने, समस्याओं को वैज्ञानिक रूप से हल करने और संकल्पनाओं और वस्तुओं के बीच संबंध और संरूप को देख पाने की क्षमता तार्किक-गणितीय बुद्धि होती है। (उदाहरणः गणितज्ञ और वैज्ञानिक)

(3) स्थानिक बुद्धि

चाक्षुष रूप से चिंतन और स्थानिक रूप से स्वयं को अनुस्थापित करने की क्षमता। इसके अतिरिक्त स्थानिक रूप से बुद्धिमान व्यक्तियों में अपने चाक्षुष और स्थानिक विचारों/धारणाओं को आलेखीय रूप में निरूपित करने की योग्यता होती है। (उदाहरण कलाकार, सज्जाकार, वास्तुविद, सर्वेक्षक, आविष्कारक, मार्गदर्शक )

(4) सांगीतिक बुद्धि

इसमें संगीत का अभिव्यक्ति के एक माध्यम के रूप में प्रयोग करने की क्षमता के अतिरिक्त विविध प्रकार के संगीत रूपों को सराहने की क्षमता भी आती है। सांगीतिक बुद्धि वाले व्यक्ति लय, धुन और तारत्व के प्रति संवेदनशील होते हैं (उदाहरण: गायक, संगीतज्ञ, रचनाकार ) ।

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(5) शारीरिक गतिसंवेदी बुद्धि

व्यक्ति की अपने शरीर को अभिव्यक्ति के एक साधन के रूप में कौशलपूर्ण उपयोग करने की क्षमता अथवा वस्तुओं के निर्माण या संचालन के लिए कौशलपूर्ण कार्य करने की क्षमता शारीरिक -गतिसंवेदी बुद्धि होती है (उदाहरण: नर्तक, अभिनेता, खिलाड़ी, मूर्तिकार, शल्य चिकित्सक, मैकेनिक, दस्तकार) ।

(6) अंतर्वैयक्तिक बुद्धि

अन्य व्यक्तियों के प्रति उपयुक्त तथा प्रभावी ढंग से अनुक्रिया करने तथा उनकी भावनाओं को समझने की क्षमता अंतर्वैयक्तिक बुद्धि होती है (उदाहरण: बिक्रीकर्ता, सामाजिक निदेशक, यात्रा-एजेंट)।

(7) आंतर-वैयक्तिक बुद्धि


स्वयं को सही सही जानने की क्षमता। इसमें स्वयं की निजी शक्तियां, अभिप्रेरण, भावनाएं और लक्ष्य सम्मिलित हो) होते हैं। (उदाहरण उद्यमकर्ता, चिकित्सक) ।

थर्स्टन तथा गिलफोर्ड के सिद्धांत

थर्स्टन के प्राथमिक मानसिक योग्यताओं के सिद्धांत जिसके अनुसार बुद्धि के अंतर्गत 9 कारक होते हैं और प्रत्येक कई बौद्धिक संक्रियाओं में विद्यमान होते हैं जैसे-


1.सांख्यिक कारक (गणित कार्य योग्यता)
2. शाब्दिक अवबोध कारक (वाचिक अवबोध की क्षमता)
3. स्थानिक कारक (वस्तुओं को स्थान (दिक्) में परिचालित
करने की क्षमता)
4.भाषा प्रवाह कारक (चिंतन क्षमता या नियमन क्षमता)
5.प्रत्यक्ष ज्ञान बोधक गतिक्षमता
6.आगमन कारक (विशिष्ट से सामान्य)
7 .निगमन कारक (सामान्य से विशिष्ट)
8.सामान्य तर्कणा कारक तथा
9. तात्कालिक स्मृति कारक (स्मृति योग्यता)

गिलफोर्ड ने बुद्धि के तीन स्वतंत्र आयाम बताए हैं– ये हैं विषयवस्तु, संक्रिया तथा उत्पाद। उन्होंने बताया कि संक्रिया के पाँच रूप हैं- संज्ञान, स्मरण, अभिसारी चिंतन, अपसारी चिंतन, मूल्यांकन। जब विषयवस्तु के चार रूप- आकृतिक, प्रतीकात्मक,अर्थात्मक तथा व्यवहार परक के साथ संक्रिया करते हैं तो उत्पाद के छह रूप- इकाइयां, वर्ग, संबंध, प्रणाली, रूपांतरण, तथा निहितार्थ प्रकट होते हैं। ये सभी एक साथ मिलकर (4x5x6)120 कारक उत्पन्न करते हैं।

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गिलफोर्ड का त्रि-आयामी सिद्धान्त

संक्रिया
1. संज्ञान-अधिगम का प्रथम चरण 1. आकृतिक-चित्रों से
2. स्मरण-ध्यान
2. सांकेतिक-संकेतों
3. अभिसारी चिन्तन-रूढ़िगत ढंग से चिंतन 3. शाब्दिक-शब्दों से
4. अपसारी चिन्तन-नवीन चिंतन 4. व्यावहारिक-वाह्य एवं
5. मूल्यांकन-निष्कर्ष

विषय वस्तु
1. आकृतिक-चित्रों से
2. सांकेतिक-संकेतों
3.शाब्दिक-शब्दों से
4. व्यावहारिक-वाह्य एवं आन्तरिक व्यवहार से

उत्पाद
1.इकाई-सूचना
2. वर्ग- वर्ग
3. सम्बन्ध- सम्बन्ध
4. सूचना प्रणाली- सूचना प्रक्रिया
5. प्रत्यावर्तन (रूपान्तरण)-स्थानान्तरण
6. निहितार्थ- आशय

                                        निवेदन

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