मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर / difference between concrete and abstruct thinking in hindi

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मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर / difference between concrete and abstruct thinking in hindi

मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर / difference between concrete and abstruct thinking in hindi

Concrete and Abstruct Thinking / मूर्त एवं अमूर्त चिन्तन


सामान्य रूप से चिन्तन की ये दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से पृथक्-पृथक् हैं परन्तु अनेक अर्थों में इनका वर्णन एक साथ किया जाता है क्योंकि जब हम किसी मूर्त वस्तु को देखते हैं तभी उसके बारे में अमूर्त चिन्तन करते हैं; जैसे-हम एक महिला को बुर्का पहले देखते हैं तो यह मानते हैं कि एक महिला हमारे सामने बुर्के से मुँह ढककर जा रही है। इसके बाद आगे के चिन्तन की प्रक्रिया अमूर्त चिन्तन से सम्बन्धित हो जाती है। जब हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि यह महिला बुर्के से अपना मुँह क्यों ढक रही है? इस परम्परा के मूल में कौन-से कारण हैं।

यह परम्परा कब से भारतीय समाज में प्रारम्भ है। वर्तमान समय में इसकी क्या प्रासंगिकता है ? इन चारों प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करना अमूर्त चिन्तन की प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है। अमूर्त चिन्तन के द्वारा हम जान लेते हैं कि बुर्के में मुँह ढककर महिला अपने सौन्दर्य को छिपाती है। जिससे उनको व्यक्ति बुरी दृष्टि से न देखें तथा उनके अपहरण की सम्भावना न हो। यह प्रथा मुस्लिम राजतन्त्र के समय से चली आ रही है।

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इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि मूर्त चिन्तन ही अमूर्त चिन्तन का आधार बनता है क्योंकि जब तक हम किसी घटना या वस्तु का अवलोकन नहीं करते तब तक उसके बारे में विचार नहीं करते। मूर्त एवं अमूर्त चिन्तन के मध्य विशेषताओं एवं अन्तर को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है जो कि इन दोनों के स्वरूप एवं प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।

difference between concrete and abstruct thinking in hindi / मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर

क्र०सं०मूर्त चिंतनअमूर्त चिंतन
1मूर्त चिन्तन का सम्बन्ध किसी वस्तु के बाहरी आवरण तक भाग से होता है तथा उसके स्वरूप एवं आकार के ज्ञान को प्रकट करता है।अमूर्त चिन्तन का सम्बन्ध वस्तु के भीतरी सीमित होता है जो कि वस्तु के मूल कारण एवं मूल तत्त्वों से सम्बन्धित होता है।
2मूर्त चिन्तन में किसी वस्तु की ऊपरी सतह के बारे में विचार किया जाता है।अमूर्त चिन्तन में किसी भी वस्तु को भीतरी सतह के बारे में पूर्ण रूप से विचार किया जाता है।
3मूर्त चिन्तन केवल वस्तु के तथ्यों तक सीमित रह जाता है, जानने का कार्य जैसे-
महात्मा गाँधी के चित्र को चित्र समझकर विचार करना।
अमूर्त चिन्तन वस्तु के तथ्यों के अन्दर करता है; जैसे-महात्मा गाँधी के चित्र
को देखकर उनके गुण तथा कार्य व्यवहार के बारे में विचार करना।
4मूर्त चिन्तन किसी वस्तु के आकार एवं प्रकार के बारे में विचार करता है।अमूर्त चिन्तन आकार, प्रकार के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में विचार करता है।
5मूर्त चिन्तन की प्रक्रिया मूर्त वस्तुओं एवं मूर्त विचारों से सम्बन्धित होती है, जैसे-
किसी चित्र का वर्णन करना एवं उसका स्वरूप बताना आदि।
अमूर्त चिन्तन का सम्बन्ध चित्र वर्णन से नहीं होता वरन् वह चित्र के मूल
उद्देश्य एवं उसके निर्माण के कारणों से होता है।
6मूर्त चिन्तन का सम्बन्ध भौतिक जगत से होता है।अमूर्त चिन्तन का सम्बन्ध मानसिक प्रक्रिया एवं मानसिक जगत् से होता है।
7मूर्त चिन्तन द्वारा वस्तु के आकार एवं प्रकार से अलग विचार नहीं करता।अमूर्त चिन्तन वस्तु के आकार प्रकार के अतिरिक्त विषयों पर विचार करता है।
8मूर्त चिन्तन का क्षेत्र सीमित होता है।अमूर्त चिन्तन का क्षेत्र असीमित होता है।
9मूर्त चिन्तन दृश्य जगत एवं दृश्य वस्तुओं से सम्बन्धित होता है।अमूर्त चिन्तन विचारों से सम्बन्धित होता है।

                                        निवेदन

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