अभिसारी और अपसारी चिंतन में अंतर / difference between divergent and convergent thinking in hindi

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अपसारी चिंतन-

इसमें व्यक्ति उत्तर की खोज में चिंतन मनन करने लगता है तथा विस्तृत उत्तर देता है।
उदाहरण:-
प्रश्न- लकड़ी की छड़ के क्या-क्या उपयोग है
उत्तर- विस्तृत उत्तर उत्पन्न
प्रश्न- यदि मनुष्य पक्षियों की भाँति उड़ने लग जाये तो
उत्तर- विस्तृत उत्तर उत्पन्न

अभिसारी चिंतन-

इस चिंतन में व्यक्ति यांत्रिक तरीके से सोचता हुआ एक निश्चित उत्तर पर पहुँच जाता है।
उदाहरण
प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति कौन है-
उत्तर- रामनाथ कोविन्द
प्रश्न- उत्तर प्रदेश की राजधानी कहाँ है।
उत्तर-लखनऊ

नोट
1- सृजनात्मकता अपसारी चिंतन पर आधारित होता है, जबकि बुद्धि अभिसारी चिंतन पर आधारित होती है।
2- अपसारी व अभिसारी शब्दों का सर्वप्रथम प्रयोग गिलफोर्ड ने किया था।

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अपसारी एवं अभिसारी चिन्तन
Divergent and Convergent Thinking


चिन्तन की प्रक्रिया में अपसारी एवं अभिसारी चिन्तन की प्रक्रिया भी सम्पन्न होती है। इन दोनों प्रकार के चिन्तनों का अध्ययन एक साथ करना इनके अप्रत्यक्ष सम्बन्ध को प्रकट करता।है। दोनों प्रकार के चिन्तनों में पर्याप्त अन्तर भी देखा जाता है। इस प्रकार के चिन्तनों का वर्णन। निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-


1. अपसारी चिन्तन (Divergent thinking) –

अपसारी चिन्तन के अन्तर्गत व्यक्ति एक ही व्यवस्था का भिन्न-भिन्न रूपों में चिन्तन करता है। दूसरे शब्दों में, इस चिन्तन के माध्यम से व्यक्ति एक ही समस्या का समाधान भिन्न-भिन्न विधियों से करने पर विचार करता है। इसमें एक प्रकार की मस्तिष्क उद्वेलन की प्रक्रिया सम्पन्न होती जिसके आधार में एक विषय पर अनेक विचार उत्पन्न किये जा सकते हैं; जैसे-ईश्वर की प्राप्ति के विषय में यदि अपसारी चिन्तन किया जाय तो अनेक विचार हमारे समक्ष उपस्थित हो सकेंगे जैसे ईश्वर को दान से प्राप्त किया जा सकता है, ईश्वर को कर्म के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है तथा ईश्वर को भक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है आदि। इसी प्रकार के अनेक विषयों पर विविधता युक्त चिन्तन या चुनौतियों का विभिन्न प्रकार समाधान अपसारी चिन्तन प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है।

2. अभिसारी चिन्तन (Convergent thinking) –

इस प्रकार के चिन्तन की प्रक्रिया में किसी भी विषय पर एकांगी चिन्तम किया जाता है जो कि उसके लिये आवश्यक होता है। इस प्रकार के चिन्तन में व्यक्ति किसी समस्या का समाधान श्रेष्ठ विचार या तरीके से करता है: जैसे-ईश्वर प्राप्ति के विषय में विचार करने के लिये व्यक्ति के सामने अनेक विकल्प होते हैं परन्तु वह यह मानता है कि भक्ति सर्वश्रेष्ठ विकल्प है जिससे ईश्वर की प्राप्ति होती है। इस प्रकार वह अन्य विकल्पों को इसलिये छोड़ देता है कि सभी विचार ईश्वर की प्राप्ति में सहायक हैं। इसलिये वह सर्वश्रेष्ठ उपाय भक्ति को अपने चिन्तन का आधार बनाता है। इस प्रकार अभिसारी चिन्तन में किसी समस्या का समाधान किसी एक विचार, एक विधि या एक उपाय द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

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                                        निवेदन

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