अभिप्रेरणा का अर्थ और परिभाषाएं / अभिप्रेरणा के प्रकार सिद्धांत एवं विधियां

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अभिप्रेरणा का अर्थ और परिभाषाएं / अभिप्रेरणा के प्रकार सिद्धांत एवं विधियां

अभिप्रेरणा का अर्थ और परिभाषाएं / अभिप्रेरणा के प्रकार सिद्धांत एवं विधियां

(motivation) अभिप्रेरणा का अर्थ

‘अभिप्रेरणा के शाब्दिक और मनोवैज्ञानिक अर्थों में अन्तर है। ‘प्रेरणा’ के शाब्दिक अर्थ में हमें किसी कार्य को करने का बोध होता है। इस अर्थ में हम किसी भी उत्तेजना (Stimulus) को प्रेरणा कह सकते हैं क्योंकि उत्तेजना के अभाव में किसी प्रकार की प्रतिक्रिया सम्भव नहीं है। हमारी हर-एक प्रतिक्रिया या व्यवहार का कारण कोई-न-कोई उत्तेजना अवश्य होती है। यह उत्तेजना आन्तरिक भी हो सकती है और बाह्य भी।

मनोवैज्ञानिक अर्थ में ‘प्रेरणा से हमारा अभिप्राय केवल आन्तरिक
उत्तेजनाओं से होता है, जिन पर हमारा व्यवहार आधारित होता है। इन अर्थ में बाह्य उत्तेजनाओं को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, प्रेरणा एक आन्तरिक शक्ति है, जो व्यक्ति को कार्य करने के लिये प्रेरित कर सकती है। यह एक अदृश्य शक्ति है, जिसको देखा नहीं जा सकता है। इस पर आधारित व्यवहार को देखकर केवल इसका अनुमान लगाया जा सकता है। अभिप्रेरणा एक ऐसी मानसिक शक्ति है, जो हमें किसी कार्य को करने के लिए अन्दर ही अन्दर सदैव प्रेरित करती रहती है जब तक कि हम उस लक्ष्य की प्राप्ति न कर लें।

अभिप्रेरणा का व्यापक अर्थ
Wide Meaning of Motivation

अभिप्रेरणा के लिये अनेक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अभिप्रेरणा के अनेक शब्द ऐसे हैं जो भिन्न-भिन्न अर्थ रखते हैं। इन सभी शब्दों की व्याख्या आगे दी गयी है-

1. प्रेरक (Motive) – प्रेरक व्यक्ति के अन्दर उपस्थित मनो-शारीरिक दशा को किसी कार्य विशेष के लिये प्रेरित करता है।

2. प्रणोदन (Drive) – प्रणोदन का सम्बन्ध शरीर की आवश्यकताओं से है। प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकताएँ उसे कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। मनुष्य को भूख एवं प्यास लगना इसी का संकेत है।

3. प्रोत्साहन (Incentive) – निश्चित वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति प्रयत्न करता है। इसका सम्बन्ध बाहरी वातावरण से माना जाता है।

4. उत्सुकता (Curiosity) – उत्सुकता के द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को सम्पन्न करने को अभिप्रेरित होता है। बिना उत्सुक हुए किसी कार्य की सम्पन्नता सम्भव नहीं है। उत्सुकता व्यक्ति में अन्वेषण वृत्ति तथा जानने के प्रयास को सफलता की ओर अग्रसर करती है।

5. रुचि (Interest) – प्रत्येक कार्य में प्रत्येक व्यक्ति की रुचि नहीं होती। रुचि सभी की पृथक्-पृथक् होती है। रुचि के अनुसार ही व्यक्ति अपने कार्य की सफलता निश्चित करता है। अतः रुचि प्रेरणा का पर्याय बन जाती है।

6, लक्ष्य (Goals) – लक्ष्य व्यक्ति को परिणाम के सम्बन्ध में सूचित करता है। इसे व्यक्ति चेतनावस्था में प्राप्त करता है।

अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ
Definitions of Motivation

अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ निम्नलिखित प्रकार से शिक्षाविदों द्वारा दी गयी हैं-

(1) फ्रेण्डसन (Frendson) के अनुसार-“सीखने में सफल अनुभव अधिक सीखने की प्रेरणा देते हैं।” “In learning, successful experiences motivates more for learning.

(2) गिलफोर्ड (Guilford) के अनुसार-“प्रेरणा एक आन्तरिक दशा या कारक है, जिसकी प्रवृत्ति क्रिया को आरम्भ करने या बनाये रखने की होती है।” “A motive is any particular internal factor or condition that leads to initiate and to sustain activity.”

(3) गुड (Good) के अनुसार– -“किसी कार्य को आरम्भ करने, जारी रखने और नियमित बनाने की प्रक्रिया को प्रेरणा कहते हैं।” “Motivation is the process to start any work, con and regulize.’

(4) लोवेल (Lovell) के अनुसार-“प्रेरणा एक ऐसी मनोशारीरिक अथवा आन्तरिक प्रक्रिया है, जो किसी आवश्यकता की उपस्थिति में प्रादुर्भूत होती है। यह ऐसी क्रिया की ओर गतिशील होती है, जो आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है।” “Motivation may be defined more for psychological or internal process intiated by some need, which leads to activity which will satisfy that need.”

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(5) जॉनसन (Johnson) के अनुसार-“प्रेरणा सामान्य क्रिया-कलापों का प्रभाव है, जो व्यक्ति के व्यवहार को एक उचित मार्ग पर ले जाती है।” “Motivation is be influence of general pattern of activities indicating and directing the behaviour of the organism.”

(6) वुडवर्थ ने प्रेरणा के सम्बन्ध में निम्नलिखित समीकरण प्रस्तुत किया है-निष्पत्ति (Achievement) – योग्यता (Ability) + प्रेरणा (Motivation)।

(7) स्किनर के अनुसार,“अभिप्रेरणा अधिगम का सर्वोच्च राजपथ है।”

(8) थामसन के अनुसार,“प्रेरणा विद्यार्थी में रुचि उत्पन्न करने की कला है। ऐसी रुचि जो हमें या तो है ही नहीं या इन रुचि का उसे आभास ही नहीं है।”

(9) क्रैच एवं क्रचफील्ड (Krech and Crutchfield) ने लिखा है-“प्रेरणा का प्रश्न, ‘क्यो’ का प्रश्न है ?” “The question of motivation is the question of ‘Why?” हम खाना क्यों खाते हैं, प्रेम क्यों करते हैं, धन क्यों चाहते हैं, काम क्यों करते हैं? इस प्रकार के सभी प्रश्नों का सम्बन्ध ‘प्रेरणा से है।”

(10) मैकड्यूगल (Dougall) के अनुसार, “अभिप्रेरणा वे शारीरिक या मानसिक दशाएँ हैं जो किसी कार्य को करने के लिये प्रेरित करती हैं।”

इस प्रकार से स्पष्ट है कि अभिप्रेरणा एक मनोशारीरिक प्रत्यय है अथवा आन्तरिक प्रक्रिया है, जो क्रियाओं को आरम्भ करती है, उन्हें दिशा प्रदान करती है तथा आगे बढाती है। अधिगम की यह प्राथमिक आवश्यकता होती है। अभिप्रेरणा के अनेक आन्तरिक कारक होते हैं, जो जीव को क्रियाओं के लिये प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें जारी रखते हैं परन्तु मानव अधिगम में आवश्यकताओं (needs) का विशेष महत्त्व होता है। लॉविल (Lovell) ने अभिप्रेरणा के लिये आन्तरिक कारक आवश्यकता का ही उल्लेख किया है। अभिप्रेरणा मनो-शारीरिक अथवा आन्तरिक प्रक्रिया है, जो आवश्यकताओं से आरम्भ होती है, जो किसी क्रिया को जारी रखती है और जिससे आवश्यकता की सन्तुष्टि होती है।

अभिप्रेरणा की प्रकृति
Nature of Motivation

अभिप्रेरणा की प्रकृति को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-

(1) अभिप्रेरणा एक मनो-शारीरिक तथा आन्तरिक प्रक्रिया है।

(2) यह आन्तरिक प्रक्रिया किसी आवश्यकता की उपस्थिति में उत्पन्न होती है।

(3) शरीर की यह आन्तरिक प्रक्रिया किसी कार्य-कलाप (Activity) की ओर उन्मुख होती है, जो आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है।

(4) ड्रेवर (Drever) के अनुसार अभिप्रेरणा एक चेतन अथवा अचेतन प्रभावशाली क्रियात्मक तत्त्व है, जो व्यक्ति के व्यवहार को किसी उद्देश्य की ओर चलायमान करती है।

(5) मॉर्गन (Morgan) ने अभिप्रेरणा को क्रिया का चयन करना बताया है अथवा निर्दिष्ट दिशा में कार्य करने की तत्परता।

(6) अभिप्रेरणा जन्मजात तथा अर्जित होती है।

(7) अभिप्रेरणा के अन्तर्गत सभी तरह के भीतरी और बाहरी उद्दीपक सम्मिलित होते हैं, जो प्राणी के व्यवहार को परिचालित करते हैं।

(8) अभिप्रेरणा के अन्तर्गत चालक का भी समावेश हो जाता है।

(9) चालक अथवा प्रोत्साहन से अभिप्रेरणा का अधिकाधिक प्रभाव पड़ता है, फलस्वरूप व्यक्ति सफलता की ओर अग्रसर होता है।

(10) यह शक्ति भीतर से जाग्रत होती है।

(11) अभिप्रेरणा व्यक्ति की वह अवस्था होती है, जो किन्हीं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये निर्देशित करती है।

अभिप्रेरणा की विशेषताएँ
(Characteristics of Motivation)

उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से निम्नांकित महत्वपूर्ण विशेषताएँ सामने आती हैं-

(1) अभिप्रेरणा शिक्षार्थी की एक काल्पनिक आन्तरिक अवस्था है।

(2) अभिप्रेरणा के माध्यम से बालक का व्यवहार एक खास दिशा में निर्देशित होता है।

(3) शिक्षार्थी में उत्पन्न व्यवहार उद्देश्य या लक्ष्य (goal) की प्राप्ति तक जारी रहता है।

(4) यह अधिगम की क्रियाओं को प्रोत्साहित करती है।

(5) यह व्यक्तियों को समाजकल्याण के कार्य करने को प्रेरित करती है।

(6) इसके माध्यम से छात्रों का ध्यान पाठ्यवस्तु की ओर आकृष्ट किया जा सकता है।

(7) यह छात्रों में अनुशासन बनाये रखती है तथा इसकी सहायता से छात्रों से अधिक से अधिक व्यवहार कराया जा सकता है।

अभिप्रेरणा के प्रकार / प्रेरणा के प्रकार / types of motivation

कुछ प्रमुख अभिप्रेरणा के प्रकार के विभाजनों की यहाँ हम चर्चा करेंगे–

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(1) मैस्लो के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार

(i) जन्मजात अभिप्रेरक-ऐसे अभिप्रेरक को कहते हैं जो बालक में जन्म के समय से ही विद्यमान रहता है कहीं बाहर से नहीं दिया जाता।
जैसे-भूख, प्यास, सेक्स, सुरक्षा की आवश्यकता, नींद आदि।

(ii) अर्जित अभिप्रेरक-इसके अन्र्तगत वे सभी अभिप्रेरक आते हैं जिन्हें व्यक्ति वातावरण से अर्जित करता है। आदत, अभिवृत्ति, रुचि, ढंग आदि । व्यक्तिगत अभिप्रेरक हैं तथा सामाजिकता, सहानुभूति आदि सामाजिक अभिप्रेरणा कहलाते हैं।

(2) थॉमसन के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार

(i) प्राकृतिक अभिप्रेरक-प्रकृति प्रदत्त अभिप्रेरक प्राकृतिक अभिप्रेरक कहलाते हैं जो बालक में जन्म के समय से ही उपस्थित होते हैं। भूख, प्यास, नींद, सुरक्षा आदि प्राकृतिक अभिप्रेरक कहलाते है।

(ii) कृत्रिम अभिप्रेरक-प्राकृतिक अभिप्रेरक के अतिरिक्त वह अभिप्रेरक जो वातावरण के प्रभाव से व्यक्ति में उत्पन्न होता है, कृत्रिम अभिप्रेरक कहलाता है। प्राकृतिक अभिप्रेरक की सन्तुष्टि हो जाने के पश्चात् व्यक्ति में सामाजिक प्रतिष्ठा, सामाजिक पहचान आदि की अभिप्रेरणा उत्पन्न होती है।

(3) अन्य मनोवैज्ञानिक के अनुसार अभिप्रेरणा के प्रकार

(i) आन्तरिक या सकारात्मक अभिप्रेरणा-इस प्रेरणा को आन्तरिक प्रेरणा भी कहते हैं। इसमें बालक किसी कार्य को अपने खुद की इच्छा से करता है तथा सुख और सन्तोष की अनुभूति को प्राप्त करता है।

(ii) बाह्य या नकारात्मक अभिप्रेरणा- इस प्रेरणा को बाह्य प्रेरणा भी कहते हैं। इसमें बालक किसी दत्त कार्य को स्वयं न करके किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रेरणा के कारण करता है। जिसे निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। इसमें शिक्षक निन्दा, पुरस्कार, प्रशंसा आदि नकारात्मक प्रेरणा प्रदत्त करता है।

(4) गैरेट (Garrett) के अनुसार

गैरेट ने प्रेरणा का निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया है-

(i) जैविक (Biological)
(ii) मनोवैज्ञानिक (Psychological)
(iii) सामाजिक (Social)

(5) शेफर (Shaffer) के अनुसार

शेफर के अनुसार प्रेरणा का विभाजन निम्नलिखित हैं-

(i) पुष्टिकरण (Confirmity)
(ii) विशिष्टता (Mastery)
(iii) आदत (Habit)
(iv) संवेग (Emotion)

(6) थामस (Thomas) के अनुसार

थॉमस ने प्रेरणा का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया है-

(i) सुरक्षा (Security)
(ii) प्रतिक्रिया (Reaction)
(iii) नवीन अनुभव (New Experiences)

प्रेरणा से सम्बन्धित पद (स्रोत)

यह मुख्य रूप से 4 होते हैं-
(1) आवश्यकता(need)
(2) चालक(drive)
(3) क्रिया(activity)
(4) (उद्दीपन) प्रोत्साहन (Ensentive)
(5) आवश्यकता की पूर्ति

अभिप्रेरणा की प्रविधियाँ (Techniques of Motivation)

(1) पुरस्कार एवं दण्ड
(2) प्रशंसा एवं निन्दा
(3) सफलता एव असफलता
(4) प्रतियोगिता एवं सहयोग
(5) प्रगति का ज्ञान
(6) नवीनता
(7) आकाक्षा का स्तर
(8) अवधान एवं रुचि
(9) कक्षा का वातावरण
(10) आवश्यकता का ज्ञान
(11) परिचर्चायें एवं सम्मेलन

अभिप्रेरणा का महत्व व उपयोग / अधिगम या शिक्षण में अभिप्रेरणा का महत्व और उपयोग

1. सीखने की इच्छा जाग्रत करने हेतु
2. सीखने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु
3. सीखने में निरन्तरता बनाये रखने में सहायक
4. बाल व्यवहार में परिवर्तन
5. मानसिक विकास में सहायता
6. चरित्र निर्माण में सहायता
7. विद्यार्थियों में ऊर्जा भरकर उन्हें कार्य के प्रति प्रोत्साहन करने में सहायक
8. छात्र को निरंतर सक्रिय बनाने में सहायक
9. कौशलों के विकास में सहायक
10. छात्रों में अच्छी आदतों का निर्माण करने हेतु
11. राष्ट्र सेवा एवं समाजहित के कार्यों में भाग लेने के लिये उन्हें अभिप्रेरित करने में ।
12.छात्र में रुचि उत्पन्न करने में सहायक

अभिप्रेरणा की विधियाँ
Methods of Motivating

कक्षा शिक्षण में अभिप्रेरणा का अत्यन्त महत्त्व है। कक्षा में पढ़ने के लिये विद्यार्थियों को निरन्तर अभिप्रेरित किया जाना चाहिये। अभिप्रेरणा की प्रक्रिया में वे अनेक तत्त्व कार्य करते हैं, जिसके फलस्वरूप विभिन्न छात्रों का व्यवहार भिन्न होता जाता है; उदाहरणार्थ-सामाजिक तथा आर्थिक अवस्थाएँ, पूर्व अनुभव, आयु तथा कक्षा का वातावरण आदि सभी तत्त्व प्रेरणा की प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करते हैं। अध्यापक विद्यार्थियों को सीखने तथा अभिप्रेरित करने के लिये निम्नलिखित विधियों का प्रयोग कर सकते हैं-

1. रुचि (Interest) – विद्यार्थी जिस कार्य में अधिक रुचि लेता है, उसमें उसकी अधिक अभिप्रेरणा होगी और अभिप्रेरणा से वह कार्य शीघ्र एवं भली-भाँति सीखा जा सकेगा।

2. सफलता (Success) – सफलता अभिप्रेरणा को बढ़ाने का एक उत्तम माध्यम है। सफलता प्राप्त करने वाले छात्र आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिये अत्यन्त प्रोत्साहित होते हैं।

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3. प्रतियोगिता या प्रतिद्वन्दिता (Competition)– पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में प्रतियोगिता अभिप्रेरणा एक विशिष्ट साधन है।

4. सामूहिक कार्य (Group work) – सामूहिक कार्य भी अभिप्रेरणा का महत्त्वपूर्ण साधन है। सामूहिक कार्य की भावना पर ही समूहों का निर्माण होता है। सामूहिक कार्य द्वारा सम्पूर्ण कक्षा को अध्ययन में व्यस्त रखा जा सकता है।

5. प्रशंसा (Praise) – विद्यार्थियों को अभिप्रेरित करने में प्रशंसा अधिक प्रभावशाली होती है।

6. पुरस्कार (Prize) – शिक्षक को विद्याथियों को अभिप्रेरित करने के लिये उनकी सफलता पर पुरस्कार प्रदान करने चाहिये।

7. ध्यान (Meditation) – ध्यान की सर्वोत्तम स्थिति संज्ञानात्मक विकास में सहयोग देती है।

8. खेल (Game) – खेलकूद का बालक के व्यक्तित्व विकास में बहुत महत्त्व है।  इनके द्वारा छात्रों में टीम भावना, शीघ्रता से निर्णय लेने की क्षमता, तत्परता, कार्य के प्रति उत्साह, नेतृत्व की भावना तथा सहयोग आदि गुणों का विकास किया जाता है।

9. सामाजिक कार्यक्रम (Social events) – छात्रों के सीखने पर उसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः सांस्कृतिक वातावरण का आशय व्यक्ति द्वारा निर्मित या प्रभावित उन समस्त नियमों, विचारों, विश्वासों एवं भौतिक वस्तुओं की पूर्णता से है, जो जीवन को चारों ओर से घेरे रहते हैं। सामाजिक वातावरण के अन्तर्गत समाज में प्रर्चा तत रीति-रिवाज, मान्यताएँ, आदर्श, मूल्य एवं स्वयं व्यक्ति की समाज में स्थिति आती है, जो उसके अधिगम को निश्चित रूप से प्रभावित करती है।

9. कक्षा का वातावरण (Classroom teaching) – कक्षा का वातावरण अभिप्रेरणा के सन्दर्भ में सीखने की प्रक्रिया को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

अभिप्रेरणा के सिद्धान्त
Principles of Motivation

अभिप्रेरणा के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित प्रकार हैं-

1. सांस्कृतिक प्रतिमानों का सिद्धान्त (Principle of cultural models)

2. व्यवहार और सीखने का सिद्धान्त (Principle of learning and behaviour) 

3. क्षेत्रीयता सिद्धान्त Principle of field) – यह सिद्धान्त कर्ट लेविन (अमेरिका) की देन है।

4. मूल प्रवृत्ति का सिद्धान्त ( Principle of intrinic) – इस सिद्धांत के प्रतिपादक मैक्डूगल है।

5. मनोविश्लेषण का सिद्धान्त (Principle of psycho-analysis) -इस सिद्धान्त के प्रवर्तक फ्राइड, एडलर तथा युंग हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार मन की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ मानी गयी हैं-

(1) चेतन मन (Conscious mind), (2) अचेतन मन (Unconscious mind), (3) उपचेतन मन (Sub-conscious mind) ।

सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा की भूमिका

अभिप्रेरणा सीखने की प्रक्रिया का एक सशक्त माध्यम है। अधिगम प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति जीवन के सामाजिक, प्राकृतिक एवं वैयक्तिक क्षेत्र में अभिप्रेरणा द्वारा ही सफलता की सीढ़ी तक पहुँच पाता है। सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा की भूमिका का अध्ययन भी अति आवश्यक है, जिसका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया गया है-

1. निश्चित उद्देश्य (Definite object)
2. आत्म-अभिप्रेरणा (Self-motivation)
3. प्रशंसा और निन्दा (Praise and reproof)
4. अभिप्रेरणा से ध्यान, रुचि और उत्साहप्राप्त करना (Securing attention, interest and enthusiasm by motivation)
5. परिपक्वता (Maturation)
6. अभिप्रेरणा में दृष्टिकोण का महत्त्व (Importance of attitude in motivation)
7. प्रतियोगिताएँ (Competitions)
8. सीखने की इच्छा (Curiosity or will to learn )
9. सीखने में अभिप्रेरणा हेतु आवश्यकताएँ (Needs for motivation in learning)

                                   निवेदन

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