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अभिप्रेरणा के सिद्धांत / principles of motivation in hindi
अभिप्रेरणा के सिद्धान्त (Theory of Motivation)
मानव-व्यवहार को जन्म देने अथवा उसे प्रेरित करने के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों ने अनेकों दृष्टिकोण से अपने विचार प्रस्तुत किए हैं, जिससे अभिप्रेरणा के सम्बन्ध में हम अनेक अवधारणाओं एवं सिद्धान्तों का अवलोकन करते हैं। ये सिद्धान्त एक दूसरे से भिन्न दृष्टिकोण से अभिप्रेरणा का विवेचन करते हैं, फिर भी उनके दृष्टिकोणों में मनोवैज्ञानिक यथार्थ दृष्टिगोचर होता है, तथा उनसे व्यापक अवधारणा की प्राप्ति की जा सकती है। अभिप्रेरणा की अनेक अवधारणाओं तथा सिद्धान्तों में से कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों की विवेचनाएँ नीचे दी गई हैं-
1. वातावरणीय सिद्धान्त (Environmental Theory)
वातावरणीय सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोविज्ञान के व्यवहारवादियों ने प्रस्तुत किए हैं। उनके अनुसार वातावरण में स्थिति उत्तेजनाएँ शरीर के ज्ञानवाही इन्द्रियों में संवेदनाएँ उत्पन्न करती हैं और अभिवाही (Afferent) स्नायु तंत्र के द्वारा संवेदना को मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं। तथा मस्तिक तुरन्त अपवाही (Efferent) स्नायु तंत्र के द्वारा कर्मेन्द्रियों को अनुक्रिया करने का आदेश देता है। व्यवहारवादियों के अनुसार वातावरण में सक्रिय उत्तेजना ही अनुक्रिया अथवा व्यवहार करने की प्रेरणा देती है, जो व्यवहार का कारण बन जाता है। इसे उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त भी कह सकते हैं, क्योंकि उद्दीपन के परिणामस्वरूप ही अनुक्रिया होती है।
2. शरीर क्रिया सिद्धान्त (Physiological Theory)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मार्गन (Morgan) ने किया है। मार्गन के अनुसार समस्त व्यवहार एवं क्रियाओं का आधार केन्द्रीय प्रेरक स्थिति (Central motive state) होती है। प्राणी की प्रतिक्रियाएँ किसी बाह्य उद्दीपन पर निर्भर न रहकर शरीर-संरचना-प्रेरक स्थिति पर निर्भर रहती हैं अर्थात् शरीर में प्रेरक स्थिति बनती है। जैसे रक्त कारक के द्वारा क्रिया का होना, शरीर में स्नायु तंत्र, रक्त संचार, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों आदि शारीरिक तंत्रों में परिवर्तन होते रहते हैं, जिसके प्रभावस्वरूप प्राणी या व्यक्ति क्रियाएँ करता है। शारीरिक तंत्रों पर नियंत्रण लगाने तथा उत्तेजित करने के द्वारा अपेक्षित व्यवहार होने की दशा बनाने की दृष्टि से यह सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण है।
3. मूल-प्रवृत्ति सिद्धान्त (Instinct Theory)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन विलियम मैक्डूगल (William MeDougall) ने किया है। मैक्डूगल के अनुसार प्राणी का व्यवहार जन्मजात मूल प्रवृत्तियों द्वारा संचालित होता है। व्यवहार के कारणों में ये मूल-प्रवृत्तियाँ मानव तथा पशुओं में समान रूप में महत्त्वपूर्ण होती हैं। किसी प्रयोजन को पूर्ण करने के लिए किया गया व्यवहार किसी जन्मजात प्रवृत्ति से प्रेरित होता है- यही मूल प्रवृत्ति है। इस सिद्धान्त से व्यवहार को नहीं समझा जा सकता, क्योंकि मूल प्रवृत्ति को जन्मजात मानकर व्यवहार के कारण को जानना अपेक्षित नहीं रह जाता। अतः इस सिद्धान्त के अधूरा रह जाने के कारण अब व्यवहार को अभिप्रेरणा के रूप में स्वीकार न करते हुए अन्य व्याख्याओं का मार्ग प्रशस्त हुआ।
4. अन्तर्नोद सिद्धान्त-(Drive Theory)
प्रेरणा में अन्तर्नोद सिद्धान्त का प्रतिपादन हल ( Hull ) ने किया है। इस सिद्धान्त को स्पेन्सर (Spencer) तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों ने मान्यता प्रदान की है। अन्तर्वोद सिद्धान्त को मनोवैज्ञानिकों ने मूल-प्रवृत्ति के स्थान पर प्रतिपादित किया। डेशियल (Dashiel) के अनुसार-“अन्तर्नोद आदि शक्ति का मूल स्रोत है, जो मानव प्राणी को क्रियाशील बनाता है।” भोजन-पानी जैसी आवश्यकताओं की स्थिति व्यक्ति में तनाव उत्पन्न कर देती है, जो व्यवहार को व्यक्त करने के लिए शक्ति प्रदान करती है। यही बढ़ी हुई शक्ति भोजन या पानी के लिए प्रेरित करती है। संक्षेप में शारीरिक तनाव उत्पन्न कर आवश्यकता की लक्ष्य-पूर्ति के लिए उत्पन्न शक्ति का प्रवाही अन्तर्नोद (Drive) है। इस शक्ति के रूप में भूख,प्यास और काम (Hunger thirst and sex) को जाना जाता है।
5. मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त (Psyco-analytical Theory)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन फ्रायड महोदय ने किया है। फ्रायड (Freud) के अनुसार व्यक्ति में जन्मजात रूप से शक्ति का स्रोत अन्तर्निहित होता है, जिसे उसने लिबिडो (Libido) की संज्ञा दी है।
फ्रायड के बाद के विचारों से ज्ञात होता है कि व्यवहार के कारण मुख्य रूप से दो मूल प्रवृत्तियाँ हैं-1. जीवन मूल प्रवृत्तियाँ तथा 2. मृत्यु मूल प्रवृत्तियाँ जीवन-मूल प्रवृत्ति आनन्द (Eros)द्वारा निर्देशित होती हैं, जिसमें स्व-रक्षण, सन्तानोत्पत्ति, आत्म-प्रेम, पर-प्रेम तथा स्वयं की योग्यता को बढ़ाने तथा समझने की प्रवृत्ति सम्मिलित होती है, जबकि मृत्यु मूल प्रवृत्ति कष्ट (Thanatos) द्वारा व्यक्ति दूसरों तथा स्वयं के ‘आत्म’ को क्षति पहुँचाता है। जीवन मूल प्रवृत्ति-आनन्द की स्थिति के दो स्तर हैं-इदम् (Id)तथा अहम् (Ego), जबकि कष्ट मूल प्रवृत्ति की स्थिति इदम् (ld) स्तर पर ही रहती है। फ्रायड के अनुसार अचेतन तथा अर्द्धचेतन मन, जो कि इदम् एवं अहम् में स्थिति होती हैं तथा आनन्द एवं कष्ट (Eros and Thanatos) और इनके संयोग से जनित इच्छा, मानव व्यवहार को अभिप्रेरित करते हैं।
6. स्व- यथार्थातिकरण सिद्धान्त (SelfActualisation Theory)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मैस्लो (Maslow) ने किया है। मैस्लो ने अपने इस अभिप्रेरणा सिद्धान्त में आवश्यकताओं के वर्गीकरण तथा क्रम (Hierarchy) की व्याख्या की है। इनका विचार है कि अभिप्रेरणा में आवश्यकताओं की अनुभूति तथा सन्तुष्टि निहित होती है। वे मानते हैं कि मानवीय प्रेरक एक क्रम में व्यवस्थित होते हैं तथा ये संख्या में पाँच होते हैं। जिस समय, विशेष में जो प्रेरक सबसे अधिक उत्तेजना रखता है, वह पूरे व्यवहार पर छा जाता है। इस प्रेरक के शान्त होने पर दूसरी श्रेणी का प्रेरक जागृत होता है और फिर वह हमारे पूरे व्यवहार पर छा जाता है। इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है। सबसे अन्त में पाँचवाँ प्रेरक प्रभावी होता है।
मैस्लो के अनुसार पाँचों प्रेरकों का वर्णन किया गया है जो निम्न प्रकार हैं-
(क) मनोदैहिक प्रेरक (Physiological Motives)
(ख) सुरक्षा प्रेरक (Sefety Motives)।
(ग) प्रेम एवं लगाव प्रेरक (Love and Affection Motive)।
(घ) आत्म-सम्मान प्रेरक (Self-esteem Motive) |
(ङ) आत्मानुभूति (स्वीकृति) प्रेरक (Self-Actualisation Motive)।
7. निष्पत्ति प्रेरणा सिद्धान्त (Achievement Motivation Theory)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मैक क्लेलैण्ड (M.C. Clalland) तथा उनके सहयोगियों ने गहन अध्ययन के पश्चात् किया। इन लोगों ने पूर्व के अभिप्रेरणा-सिद्धान्तों को नकारते हुए यह स्थापित किया कि सभी मानव अभिप्रेरणाएँ बिना उसके स्वभाव को ध्यान में रखे, वातावरण में अधिगमित या अर्जित की जाती हैं तथा संवेगात्मक दशा में परिवर्तन के प्रेरक प्रकट होते हैं।
8. आन्तरिक प्रेरणा सिद्धान्त (Intrinsic Motivition Theory)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन हालों (Harlaw) ने अनेक प्रयोगों के उपरान्त किया। बन्दरों पर किये गये प्रयोगों में हालों ने पाया कि बन्दरों ने बिना किसी बाह्य पुरस्कार (reward) दिए जाने की दशा में सभी समस्याओं का समाधान किया। यह भी देखा गया कि बाह्य पुरस्कार प्रस्तुत करने की दशा में भी अधिगम कम प्रभावशाली रहा। उत्सुकता, सम्भावनाओं को खोजने तथा दशाओं को अपने अनुकूल बनाने सम्बन्धी व्यवहार आन्तरिक प्रेरक के रूप में व्यवहार को जन्म देते हैं। इस सिद्धान्त को अनेक प्रयोगों द्वारा सिद्ध तो किया गया है, किन्तु उन्हें वास्तविक प्रेरक मानने में सन्देह भी व्यक्त किया गया है।
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