अधिगम या सीखने के पठार का अर्थ एवं परिभाषाएं / Learning Plateaus in hindi

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अधिगम या सीखने के पठार का अर्थ एवं परिभाषाएं / Learning Plateaus in hindi

अधिगम या सीखने के पठार का अर्थ एवं परिभाषाएं / Learning Plateaus in hindi

अधिगम या सीखने के पठार का अर्थ / Meaning of Plateaus in Learning

जब भी हम कोई नई बात सीखते हैं तो प्रायः देखा जाता है कि हम अपने सीखने में लगातार प्रगति नहीं कर पाते हैं। सीखने की गति कभी कम तो कभी अधिक होती है। एक समय बाद ऐसी भी स्थिति (समय) आती है। जब हमारे सीखने की गति बिल्कुल रुक जाती है। सीखने में इस प्रकार की जो स्थिति उत्पन्न होती है। इसे ही ‘सीखने में पठार’ कहते हैं। ये पठार सीखने की गति में अवरोध उत्पन्न करते हैं।
उदाहरणार्थ- बालक प्रारम्भ में तीव्रता से वर्णमाला के अक्षरों को याद करता है. उसके बाद उसकी याद करने की गति थोड़ी धीमी पड़ जाती है। कुछ समय बाद वह कोई नया अक्षर नहीं पहचान पाता है। यह स्थिति कई दिनों तक बनी रहती है. सीखने के वक्र में यह भाग पठार के रूप में प्रदर्शित होता है।

अधिगम या सीखने के पठार की परिभाषाएं

रॉस के अनुसार,”सीखने की प्रक्रिया की मुख्य विशेषता पठार है। ये उस अवधि को बताते हैं जब सीखने की प्रक्रिया में कोई उन्नति नहीं होती है।”

स्किनर के अनुसार-“पठार एक क्षैतिज प्रसार है जिससे किसी प्रकार की प्रगति का बोध नहीं होता है।”

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रैक्स एवं नाइट के अनुसार,” सीखने में पठार तब आते हैं, जब व्यक्ति सीखने की एक अवस्था पर पहुँचकर दूसरी अवस्था मे प्रवेश करता है।”

अधिगम या सीखने के पठार का अर्थ एवं परिभाषाएं / Learning Plateaus in hindi

सीखने में पठार बनने के मुख्य कारण

(1) शारीरिक शक्ति कम होना
(2) सीखने में रूचि का अभाव
(3) समझने में कठिनाई व कमी
(4) थकान, निराशा, आलस्य एवं मानसिक कमजोरी
(5) जिज्ञासा का अभाव
(6) व्यक्ति की परिपक्वता का अभाव
(7) दूषित वातावरण
(8) पारिवारिक कठिनाइयाँ
(9) भविष्य में पुरस्कार की आशा न होना
(10) बीमारी व अस्वस्थता
(11) बुरी आदतें
(12) विशेष अंग पर ही जोर देना न कि सम्पूर्ण विषय पर
(13) अभिप्रेरणा की कमी
(14) बीच-बीच में ध्यान भंग होना
(15) सीखने की अनुचित विधि

कुछ प्रमुख कारणों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है –

1. ज्ञान की सीमा (Knowledge Limitation)-

बालक अपने ज्ञान की सीमा तक किसी कार्य को बड़ी गति और कुशलता के साथ करता है। परन्तु आगे की जानकारी न होने के बाद उसकी गति धीमी पड़ने लगती है और फिर पठार उत्पन्न हो जाता है।

2. प्रेरणा की कमी (Lack of Motivation)- 

यदि किसी कारण व्यक्ति का उत्साह कम हो जाता है या प्रेरणा प्रबल नहीं रहती तो भी उन्नति रुक जाती है। इस प्रकार उसके उत्साह में अवरोध उत्पन्न होने पर प्रगति में भी अवरोध आ सकता है। ऐसी दशा में अधिगम में पठार आ जाता है।

3. शारीरिक सीमा (Physical Limitations)-

शारीरिक क्षमताएँ भी अधिगम में पठार उत्पन्न करने का कारण होती हैं। जैसे-तेज चलने में या लिखने में एक सीमा ऐसी आ जाती है, जिससे अधिक तेज चलना या तेज लिखना सम्भव नहीं होता है। इसलिए शारीरिक सीमा के बिन्दु से पठार आरम्भ हो जाता है।

4. मानसिक क्षमतावरोध (Mental Limit)-

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति एक निश्चित मानसिक क्षमता तक ही सीख सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक क्षमता अलग होती है। व्यक्ति में चाहे जितना उत्साह हो या वह सीखने की श्रेष्ठतम पद्धति को ही क्यों न अपनाए वह अपनी मानसिक क्षमता से अधिक उन्नति नहीं कर पाते क्षमता की सीमा पर पहुँच कर उन्नति करने का प्रयास व्यर्थ हो जाता है और तब अधिगम में पठार बन जाता है।

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5. अधिगम की अनुपयुक्त विधि (Improper Method of Learning)-


अधिगम की अनुचित विधियाँ सीखने की उन्नति को रोक कर पठार बना देती है। अनुपयुक्त विधि से कार्य करने से उसमें त्रुटि की सम्भावना अधिक होती है। जिससे कार्य करने से कार्य सम्पन्न नहीं हो पाता है जिससे सीखने वाले को हताशा हो जाती है। अतः सीखने की प्रगति रुक जाती है अर्थात् पठार आ जाते हैं।

6. कार्य की जटिलता (Complication in Work)-

पूर्व ज्ञान से जोड़ कर सीखी जाने वाली सामग्री जटिल नहीं होती है, क्योंकि व्यक्ति उस सामग्री को पहले अर्जित किए गए ज्ञान से सरलतापूर्वक सीखने का प्रयास करता है। जब उसे कार्य या अधिगम से सम्बन्धित कोई पूर्व ज्ञान नहीं होता है तो जटिलता महसूस होती है। जटिलता पठार उत्पन्न करती है।

7. उद्देश्य का अभाव (Lack of Aims)-

पठार बनने का एक कारण उद्देश्यों का पता न होना भी है। व्यक्ति निरुद्देश्य कोई कार्य नहीं करता है। उद्देश्य की जानकारी व्यक्ति की कार्य में रुचि पैदा करती है। उद्देश्यों के अभाव में रुचि पैदा नहीं होती और रुचि के अभाव में ध्यान नहीं लगता है। ध्यान न लगने से सीखने में पठार आना स्वाभाविक है।

सीखने में पठार का निवारण (समाप्त करने के उपाय)

सोरेन्सन के अनुसार,”शायद ऐसी कोई विधि नहीं है, जिससे पठारों को बिल्कुल समाप्त किया जा सके। उनकी संख्या तथा अवधि को कम किया जा सकता है।”
परंतु कुछ उपाय है जो निम्नलिखित है –

(1) सीखने में रुचि उत्पन्न करना
(2) पाठ को रोचक बनाकर नवीनता लाना
(3) अभिप्रेरणा देना
(4) थकान दूर करना (शारीरिक व मानसिक)
(5) क्रिया में समन्वय एवं व्यवस्थित होना
(6) रोचक, मनोरंजक व उत्साहवर्धक नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग करना
(7) अनुकूलित कार्यों को करना
(8) स्वच्छ एवं अनुकूल वातावरण में रहना
(9) बुरी आदतों को त्यागना एवं काम करने की इच्छा जागृत करना
(10) निरोग रहना।
(11) बालक को प्रेरणा देने और बार-बार प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
(12) बालकों को सीखने लक्ष्य और शिक्षण की व्यावहारिक उपयोगिता से अवगत करा दिया जाना चाहिए।
(13) सीखने की उत्तम व रोचक विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(14) बालकों की क्षमता और व्यक्तिगत विभिन्नता का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
(15) किसी कार्य को कुछ समय तक सीखने के बाद विश्राम देना चाहिए।

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