अधिगम या सीखने को प्रभावित करने वाले कारक / factors affecting to learning in hindi

दोस्तों अगर आप बीटीसी, बीएड कोर्स या फिर uptet,ctet, supertet,dssb,btet,htet या अन्य किसी राज्य की शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इन सभी मे बाल मनोविज्ञान विषय का स्थान प्रमुख है। इसीलिए हम आपके लिए बाल मनोविज्ञान के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक की श्रृंखला लाये हैं। जिसमें हमारी साइट istudymaster.com का आज का टॉपिक अधिगम या सीखने को प्रभावित करने वाले कारक / factors affecting to learning in hindi है।

अधिगम या सीखने को प्रभावित करने वाले कारक / factors affecting to learning in hindi

अधिगम या सीखने को प्रभावित करने वाले कारक / factors affecting to learning in hindi

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सीखने (अधिगम) को प्रभावित करने वाले कारक / Factors Influencing Learning in hindi

सीखने की प्रक्रिया अनेक कारकों से प्रभावित होती है। अधिगम
को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारकों को पाँच वर्गों में विभाजित किया जा सकता है,जो निम्नलिखित प्रकार से है –

(1) विद्यार्थी से सम्बन्धित कारक

1. सीखने की इच्छा
2. शैक्षिक योग्यता या निष्पन्ति
3. आकांक्षा का स्तर
4. बुद्धि (Intelligence)
5. संवेगात्मक स्थिति

(2) अध्यापक से सम्बन्धित कारक

1. विषय का ज्ञान
2. अध्यापक का व्यवहार
3. शिक्षण विधि
4. अध्यापक का मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन स्तर
5. सिखाने की इच्छा

(3) विषय-वस्तु से सम्बन्धित कारक

1. विषय-वस्तु की प्रकृति
2. जीवन से सम्बन्धित उदाहरण
3. पूर्व अधिगम
4. विभिन्न विषयों में कठिनाई स्तर

(4) वातावरण से सम्बन्धित कारक

1. भौतिक वातावरण
2. परिवारिक वातावरण
3. सामाजिक एवं संवेगात्मक वातावरण
4. उचित सामग्री और सुविधाएँ

(5) अनुदेशन से सम्बन्धित कारक

1. अधिगम विधि
2. अभ्यास (Practice)
3. परिणाम का ज्ञान
4. नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित करना

इन कारकों का विस्तार से वर्णन करते हैं – चलिए अब पढ़ते है अधिगम या सीखने को प्रभावित करने कारक विस्तार से –

विद्यार्थी से सम्बन्धित कारक (Factors related to Learner)

1. सीखने की इच्छा (wish to Learn) – यदि बच्चे में सीखने की इच्छा है तो नया ज्ञान उसे सरल तरीके से सिखाया जा सकता है। बालक यदि सीखने के लिए तैयार नहीं है तो शिक्षक के सामने बहुत गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाती है। सीखने की इच्छा, रुचि तथा अभिप्रेरणा बहुत सीमा तक अधिगम को प्रभावित करते हैं।

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2. शैक्षिक योग्यता या निष्पन्ति (EducationalAchievement) – विद्यार्थी की शैक्षिक योग्यता का अधिगम पर बहुत प्रभाव पड़ता है। यदि विद्यार्थी किसी विषय में पिछड़ा है तो उस विषय से सम्बन्धित नवीन ज्ञान सीखने में उसे कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। यदि विद्यार्थी की किसी विषय में शैक्षिक योग्यता सामान्य से अधिक है तो विद्यार्थी नया ज्ञान सुगमता से सीख लेता।

3. आकांक्षा का स्तर (Level of Aspiation) – बालक की महत्वाकाक्षा पर अधिगम की सफलता काफी कुछ निर्भर करती है। जब तक विद्यार्थी में महत्वाकांक्षा नहीं होगी, वह सीखने के लिए प्रयत्नशील नहीं होगा।

4. बुद्धि (Intelligence) – सीखना बहुत कुछ सीखने वाले की बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है। तीव्र बृद्धि वाले बालक कम बुद्धि वाले
बालकों की अपेक्षा शीघ्र सीख लेते हैं।

5. संवेगात्मक स्थिति (Emotional Condition) – सीखने में संवेगात्मक स्थिति एक महत्वपूर्ण कारक है। संवेगात्मक रूप से स्वस्थ विद्यार्थी शीघ्रता से सीखता है।

अध्यापक से सम्बन्धित कारक (Factars related to Teacher)

1. विषय का ज्ञान (Knowledge of the Subject) – अध्यापक का किसी विषय का ज्ञान, अनुभव तथा योग्यता आदि के सीखने पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं। यदि अध्यापकों को अपने विषय का ज्ञान नहीं है तो वे विद्यार्थी को सीखने के लिए उत्साहित नहीं कर सकेंगे।

2. अध्यापक का व्यवहार (Behaviour of the Teacher) – अधिगम प्रक्रिया में अध्यापक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। अध्यापक के आचार-विचार और व्यवहार को बालकों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है तथा वह उनका अनुकरण करने का भी प्रयास करता है।

3. शिक्षण विधि (Method of Teaching) – शिक्षण विधि का सीधा सम्बन्ध अधिगस प्रक्रिया से है। सभी बालक एक-सी विधि से नहीं सीख सकते। शिक्षण की विधि जितनी अधिक प्रभावशाली तथा वैज्ञानिक होगी, उतनी ही सीखने के लिए लाभदायक सिद्ध होगी। करके सीखना, निरीक्षण द्वारा सीखना, प्रयोग द्वारा सीखना, खेल विधि आदि का अपना अलग-अलग महत्व है।

4. अध्यापक का मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन स्तर (Level of Adjustment and Mentel Health of the Teacher) – वे अध्यापक जो मानसिक रूप से अशान्त तथा अस्वस्थ रहते है। अथवा जो अपने आपको अध्यापक के रूप में समायोजित नहीं कर पाते, वे शिक्षण के क्षेत्र में सदैव ही अपना संतुलन खोये रहते हैं और उनसे जितना अहित बालकों का हो सकता है उसकी कोई सीमा नहीं। इसके विपरीत भली-भाँति समायोजित और मानसिक रूप से स्वस्थ अध्यापक, अध्यापन और विद्यार्थियों के लिए वरदान सिद्ध होते हैं।

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5. सिखाने की इच्छा (Will to Teach) – जिन अध्यापकों में सिखाने की इच्छा होती है वही सफलतापूर्वक बालकों को सिखा पाते हैं। इच्छा न रखने वाले व्यक्ति सिखाने के लिए विविध प्रयास नहीं करते। वे विद्याथियों में सीखने की रुचि और जिज्ञासा जाग्रत नहीं कर सकते।

विषय-वस्तु से सम्बन्धित कारक (Factors related to Subject-Matter)

1. विषय-वस्तु की प्रकृति (Nature of Subject-Matter) – विषय वस्तु का स्वरूप भी अधिगम-प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। कठिन, उबाऊ एवं अरुचिकर विषय-वस्तु की अपेक्षा सरल एवं रोचक विषय-वस्तु जल्दी सीख ली जाती है।

2. जीवन से सम्बन्धित उदाहरण (Examples Related to Life) – विषय-वस्तु में यदि उदाहरण ऐसे हैं जो बालक के जीवन से सम्बन्धित हैं, बालक उनसे भली-भांति परिचित हैं तो उन्हें याद करने में सरलता होती है और वे अधिक समय तक याद रहते हैं।

3. पूर्व अधिगम (Previous Learning) – बालक किसी विषय-वस्तु को कितनी शीघता या कितनी अच्छी तरह से सीखता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह पहले क्या सीख चुका है। नवीन अधिगम की प्रक्रिया शून्य से प्रारम्भ नहीं होती है वरन् बालक द्वारा पूर्व अर्जित ज्ञान से प्रारम्भ होती है।

4. विभिन्न विषयों में कठिनाई स्तर (Difficulty level of Different Subject) – विभिन्न विषयों में कठिनाई स्तर भिन्न होता है। एक विषय में विद्यार्थी बहुत अच्छा सीखता है जबकि किसी अन्य विषय में उसके सीखने की गति बहुत धीमी हो सकती है। लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा गणित में पीछे रह जाती है। भाषा, साहित्य, सामाजिक विज्ञान, ललित कलाओं में कठिनाई का स्तर अलग-अलग होने से सभी विद्यार्थी एक-सा नहीं सीख पाते।

वातावरण से सम्बन्धित कारक (Factor related to Environment)

1. भौतिक वातावरण (Physical Environment) – अधिगम के लिए अनुकूल वातावरण का होना आवश्यक है। प्रतिकूल परिस्थितियों में सीखने की प्रक्रिया ठीक प्रकार से सम्पन्न नहीं हो सकती है। पढ़ने के लिए उचित भौतिक वातावरण, जैसे स्वच्छ वायु एवं प्रकाश, सफाई तथा बैठने आदि की व्यवस्था भी सीखने पर प्रभाव डालती है।

2. परिवारिक वातावरण (Family Environment) – बालक के सीखने में उनके परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिन परिवारों में शांतिपूर्ण और सौहार्द का वातावरण होता है, बालक शीघ सीखने में सक्षम होते हैं। कलहपूर्ण वातावरण अधिगम में बाधक होता है।

3. सामाजिक एवं संवेगात्मक वातावरण (The Socio-emotional Environment) – सीखने का समय जिस प्रकार का सामाजिक संवेगात्मक वातावरण शिक्षण-अधिगम कार्य को ठीक प्रकार से सम्पन्न करने के लिए कक्षा, विद्यालय तथा अन्य सीखने की परिस्थितियों में प्राप्त होता उतनी ही अच्छी तरह से अधिगम प्रक्रिया को संचालित किया जा सकेगा।

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4. उचित सामग्री और सुविधाएँ (Appropriate Learning Material and Facilities) – जब बालकों को उपयुक्त अध्ययन सामग्री और सुविधाएँ प्राप्त होती है तो आशाजनक सफलता प्राप्त होती है। इसके विपरीत दे विद्यार्थी, जिन्हें सीखने में सहायक आवश्यक साज-सज्जा, अधिक सामग्री और सुविधाएँ (पाठ्य-पुस्तक, लिखने-पढ़ने के अन्य सामग्री पुस्तकालय, प्रयोगशाला सम्बन्धी सुविधाएँ, गृहकार्य करने के लिए आवश्यक समय एवं सुविधाएँ आदि) नहीं प्राप्त होती, वे पिछड़ जाते हैं।

अनुदेशन से सम्बन्धित कारक (Factors related to Instruction)

1. अधिगम विधि (Learning Method) – अध्यापक द्वारा अपनाई गई अधिगम विधि का प्रभाव विद्यार्थी के अधिगम पर पड़ता है। किसी प्रकरण को पढ़ाने की एक विधि से सभी बालक प्रभावित नहीं होते हैं यदि कोई अध्यापक अपने विषय को दबाव के साथ अवैज्ञानिक और अगनोवैज्ञानिक तरीके से बालक को पढ़ाता है तो बालक उसमें रुचि नहीं लेते हैं। मगर जो अध्यापक बालकों की रुचि, योग्यता और आवश्यकता के अनुरूप अधिगम विधि का चुनाव करते हैं, बालक उनकी कक्षा में उत्साहित रहते हैं ।

2. अभ्यास (Practice) – सीखने की क्रिया के ऊपर अभ्यास का काफी प्रभाव पड़ता है। किसी कार्य को बार-बार करने से कार्य की गति बढ़ती है तथा त्रुटियाँ कम हो जाती हैं। अभ्यास द्वारा सीख हुआ शान स्थायी होता है।

3. परिणाम का ज्ञान (Knowledge ofAchievement) – सीखने के दौरान यदि समय-समय पर सीखने की प्रगति का ज्ञान होता रहता है तो सीखने वाले में उत्साह बना रहता है। उसे अपनी त्रुटियों का ज्ञान होता रहता है जिससे वह उन्हें सुधार लेता है। अधिगम के परिणाम का ज्ञान पुनर्बलन का कार्य करता है।

4. नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित करना (Learning of the ney Learning) – नए ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित कर पढ़ाने पर बालक शीघ्रता से सीखता है।


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