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अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण
अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा
जहाँ किसी उक्ति के माध्यम से किसी अन्य को कोई बात कही जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। कथन कहीं,निशाना कहीं।
उदाहरण – फूलों के आसपास रहते हैं।
फिर भी काँटे उदास रहते हैं।
स्पष्टीकरण – इसमें ‘फूल’ सुख-सुविधा या प्रेमिका का प्रतीक है, ‘काँटे’ दुखी प्राणियों के प्रतीक हैं। अतः यहाँ सुख से घिरे दुखी प्राणियों को संबोधित किया गया है।
उदाहरण – नहि पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहिं काल
अली कली ही सौं बँध्यो, आगे कौन हवाल
स्पष्टीकरण – इसमें कली और भँवरे के माध्यम से नव-विवाहित राजा जयसिंह को कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा दी गई है।
उदाहरण – जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति बहार।
अब, अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार।।
स्पष्टीकरण – यहाँ गुलाब के सूखने के माध्यम से आश्रयदाता के उजड़ने की व्यथा कही गई है।
उदाहरण – को छूट्यो इहि जाल परि, कत कुरंग अकुलात
ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यो चहत, त्यों-त्यों उरझत जात
स्पष्टीकरण– यहाँ हिरण के बहाने से सांसारिक आकर्षणों के जाल का वर्णन किया गया है।
उदाहरण – करि फुलेल को आचमन मीठो कहत सिहाइ ।
ऐ गंधी मतिमंद तू इतर दिखावत काहि ।।
स्पष्टीकरण – यहाँ इत्र बेचने वाले के माध्यम से अयोग्य, अरसिक और कलाशून्य लोगों पर व्यंग्य किया गया है।
उदाहरण – स्वास्थ सुकृत न श्रमु वृथा, देखि बिहंग विचारि
बाज, पराए पानि परि तू पच्छीनु न मारि ।।
स्पष्टीकरण – यहाँ बाज द्वारा पक्षियों को मारने के बहाने से राजा जयसिंह को यह समझाया गया है कि वह व्यर्थ में हिंदुओं का नर-संहार न करे।
उदाहरण – माली आवत देख करि, कलियाँ करें पुकार
फूलि फूलि चुनि लई, काल हमारी बार।।
स्पष्टीकरण – यहाँ कलियों के टूटने के बहाने से मनुष्य की नश्वरता का बोध कराया गया है।
उदाहरण – जिन जिन देखे वे कुसुम, गई सुबीति बहार ।
अब अलि रही गुलाब में अपत कॅटीली डार ।।
स्पष्टीकरण :- यहाँ पर राजा और उस पर आश्रित कवि का वर्णन किया गया है कि अब उस राजा की स्थिति ऐसी हो गई है जैसे अलि (भौंरा) उस गुलाब पर बैठा है जिस पर पत्ते नही केवल कॉटे ही कॉटे हैं। ऐसे आश्रयदाता राजा धनहीन हो गया है।
उदाहरण – केरा तबहि न चेतिया, जब ढिंग लागी बेर |
अब के चेते का भयों, जब काटनि लीन्ही घेर ।।
स्पष्टीकरण :- यहाॅ पर अवगुणों से भरे हुए व्यक्ति के बारे में प्रत्यक्षतः न बताकर अप्रत्यक्ष रूप से कवि ने बताने का प्रयास किया है कि केले के वृक्ष ने अपने निकट लगी बेर की चिन्ता नहीं की। जब बेर के कॉटों ने चारों तरफ से घेर लिया तब उसे चिन्ता होने लगी। अर्थात प्रारंभ में व्यक्ति अपने अवगुणों को अनदेखा किया और वह पूरी तरह से जकड़ लिया तो वह परेशान हो गया है।
अन्योक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण
(1) करी फुलैल को आचमन मिठो कहत सराहि ।
रे गंधी मतिमंद तू, इतर दिखावत काहि ।। (imp)
(2) नही पराग नही मधौर मधु नही विकास इहि काल ।
अली कली ही सो बंध्यो, आगे कौन हवाल ।। (imp) •
(3) माली आवत देखकर कलियन करी पुकारी ।
फूले-फूले चुन लिए कली हमारी बारि ।। (imp)
(4)मानस सलिल सुधा प्रति पाली जिअइ कि लवण पयोधि मराली नव रसाल वन बिहरन सीला सोह कि कोकिल विपिन करीला ||
(5) स्वारथ सुकृत न श्रम वृथा, देखु विहंग विचार |
बाज पराये पानि पर, तू पच्छीनु न मार।
(6) को छूट्यो यहि जाल, परि कत कुरंग अकुलाय।
ज्यों-ज्यों सुरभि भज्यो चहै, त्यों-त्यों अरुझत जाय।।
(7) धन्य सेस सिर जगत हित, धारत भुव को भारि ।
बुरो बाघ अपराध बिन, मृग को डारत मारि।।
(8) मातु पितहिं जनि सोच बस, करसि महीप किसोर ।
(9) बड़े प्रबल सों बैर करि, करत न सोच विचार |
ते सोवत बारूद पर, कटि मैं बाँधि अंगारा ।।
(10) करी फुलैल को आचमन मिठो कहत सराहि ।
रे गंधी मतिमंद तू, इतर दिखावत काहि ।।
(11) माली आवत देखकर कलियन करी पुकारी ।
फूले-फूले चुन लिए कली हमारी बारि ।।
(12) को छूट्यो यहि जाल, परि कत कुरंग अकुलाय।
ज्यों-ज्यों सुरभि भज्यो चहै, त्यों-त्यों अरुझत जाय।।
(13) धन्य सेस सिर जगत हित, धारत भुव को भारि ।
बुरो बाघ अपराध बिन, मृग को डारत मारि।।
★★★ निवेदन ★★★
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