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हमारा पड़ोसी पर निबंध / essay on our neighbour in hindi
रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) परिचय, (3) विचित्रता, (4) उपसंहार।
प्रस्तावना —
विचित्र ! सचमुच विचित्र हैं हमारे पड़ोसी दीनदयाल जी। यद्यपि हमारे पड़ोसी के मकान में उन्हें आये अभी चार ही वर्ष हुए हैं, किन्तु पास-पड़ोस के सभी लोग उनसे परिचित हैं। गली के नुक्कड़ पर खड़े खोमचे वाले से भी यदि पूछा जाये कि दीनदयाल जी का मकान कौन-सा है तो वह तुरन्त उँगली उठाकर उनके घर की ओर संकेत कर देगा।
परिचय-
यद्यपि किसी व्यक्ति को या किसी परिवार को जान लेने के लिए चार वर्ष की अवधि छोटी होती है, किन्तु हम पड़ोसी के नाते दीनदयाल जी के परिवार से भली-भाँति परिचित हैं। पति-पत्नी, दो लड़के, एक लड़की और बूढ़ी माँ-यही परिवार है दीनदयाल जी का।
विचित्रता-
मैंने आरम्भ में ही इस परिवार को सामान्य न कहकर विचित्र कहा है! क्यों ? इसलिए कि अपने रहन-सहन, प्रकृति, व्यवहार और चरित्र सभी में इस परिवार का प्रत्येक सदस्य विचित्र है। दीनदयाल जी को कुछ गाने बजाने का शौक है। पर वे अपने को श्रेष्ठ गायक और जन्मजात संगीतज्ञ मानते हैं। यों कहिए कि दीनदयाल तानसेन का दूसरा रूप ही अपने आपको मानते हैं; वे किसी विद्यालय में संगीत शिक्षक हैं। माना कि उन्हें संगीत के बारे में ज्ञान होगा, तभी तो संगीत शिक्षक हैं लेकिन अपने बारे में उनका अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन बड़ा बेतुका सा लगता है। अपने मुँह मिया मिट्ठू बनने की बात याद आ जाती है।
विचित्रता तब पैदा हो जाती है, जब वे बातचीत के किसी प्रसंग को संगीत पर ही खींच ले जाते हैं और जोर-शोर से इस बात को सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि कलाकार अति विशिष्ट प्राणी होता है। अपनी विद्या, बुद्धि और प्रतिभा को ही नहीं वरन हर रुचि को औरों से अधिक श्रेष्ठ और विशिष्ट सिद्ध करने में ऐसे जुट जाते हैं कि उनका ध्यान तभी भंग होता है, जब श्रीमती दीनदयाल आकर उन्हें लताड़ पिलाती हैं। वे उन्हें इतनी बुरी तरह डाँटती हैं कि बेचारे दीनदायल की सारी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। उच्च श्रेणी का प्राणी कलाकार अत्यन्त दयनीय प्राणी बन जाता है। पति को डाँटने के बाद वे विजय के गर्व से आस-पास खड़े हम सरीखे लोगों पर नजरें डालती हैं, मानो हमें जता रही हों कि घर में उनका कैसा प्रचण्ड शासन है।
विचित्र बात यह है कि उनका यह तीखा व्यवहार केवल अपने पति दीनदयाल तक ही सीमित है, पास-पड़ोस के लोगों के साथ उनका व्यवहार इतना शालीन मधुर और शिष्ट है कि आश्चर्य होता है, यह सोचकर कि अमृतवर्षा करने वाला बादल दीनदयाल जी पर ही क्यों विष की वर्षा करता है। उनका बड़ा लड़का भोलाशंकर आँखें नीची करके हर समय तेजहीन बना रहता है। दो बार पुकारने पर कहीं एक बार घर के बाहर इधर-उधर देखता भी नहीं। उनका छोटा लड़का भगवान शंकर वास्तव में ही विचित्र है। अभी मात्र 10 वर्ष का है, उसे सारी रामायण कंठस्थ है। कदाचित पूर्व जन्म का ही संस्कार है कि इतना मेधावी बच्चा उनके यहाँ पुत्र रूप में उपस्थित हैं।
उनकी लड़की का नाम अन्नपूर्णा है। वह हर समय रसोई में घुसी रहती है। खाना बनाने का उसे विशेष चाव है। भाँति-भाँति के स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर पास-पड़ोसियों को खिलाती है और अपनी प्रशंसा सुनकर मन्द-मन्द मुस्कराया करती है। पाक कला में नित्य नये-नये प्रयोग करना और बाहर की दुनिया से अनजान बने रहना-उसकी विचित्रता का प्रमाण है। दीनदयाल जी की बूढ़ी माँ सचमुच विचित्र हैं। उनके चेहरे से अभी भी राजसी शान-शौकत और गरिमा फूंटी पड़ती है। वे सभी के साथ दबंग और गम्भीर आवाज में बोलती हैं, मानो किसी रियासत की भूतपूर्व महारानी हों।
उपसंहार-
ठीक है कि हमारे पड़ोसी दीनदयाल जी का परिवार विचित्र है, किन्तु विचित्र होकर भी बड़ा प्यारा परिवार है। हर व्यक्ति के दुःख-सुख में सदैव तैयार खड़ा रहता है। मेरे पापा तो दीनदयाल के पास अक्सर बैठे रहते हैं। दीनदयाल जी पापाजी के पहुँचने पर बहुत ही गर्म जोशी से स्वागत करते हैं। फिर चाय की चुस्कियों के साथ शुरू होता है, दीनदयाल का वही घिसा पुराना रिकार्ड, जिसे पापाजी इसलिए सुनते रहते हैं कि इससे दीनदयाल जी को अपार सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे पड़ोसी बड़े भाग्य से मिलते हैं। ईश्वर उन्हें लम्बी आयु प्रदान करे।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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