अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा

जहाँ किसी गुण या स्थिति का बढ़ा-चढ़ा कर अथवा सीमा के बाहर वर्णन किया जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

अथवा

अतिशयोक्ति का अर्थ होता है, उक्ति में अतिशयता का समावेश । काव्य में जहाँ किसी का वर्णन इतना बढ़ा-चढ़ाकर किया जाय कि सामान्य सीमा या मर्यादा का उल्लंघन हो जाय, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस प्रकार उपमेय को उपमान जहाँ बिलकुल ग्रस ले, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण – देख लो साकेत नगरी है यही
               स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही ।।

स्पष्टीकरण – यहाँ साकेत नगरी के ऊँचे भवन को आकाश की ऊँचाई छूते हुए दिखाया गया है। अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।

उदाहरण –  बाँधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से
             मणि वाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ हीरों से ॥

स्पष्टीकरण – यहाँ मोतियों से भरी प्रिया की माँग का वर्णन है। चन्द्र से मुख का, काली जंजीरों से केश का, फणियों से मोती भरी माँग का बोध होता है।

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उदाहरण –  बालों को खोलकर मत चला करो,
                 दिन में रास्ता भूल जाएगा सूरज!

स्पष्टीकरण –  यहाँ नायिका के काले घने केशों का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है। अन्यथा बालों की घनी कालिमा के कारण सूरज रास्ता कैसे भूल सकता है?

उदाहरण – जुग उरोज तेरे अली ! नित-नित अधिक बढ़ायँ ।
अब इन भुज लतिकान में, एरी ये न समायँ ।

स्पष्टीकरण – यहाँ उरोजों (स्तनों) का दोनों भुजाओं के बीच में अँटने का सम्बन्ध प्रत्यक्ष है। उरोज कितने भी बड़े क्यों न हों, वे आखिर भुज मध्य में ही अँटते हैं फिर भी उनका न अँटना कहकर संम्बन्ध में असम्बन्ध प्रदर्शित किया गया है। अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।

उदाहरण –  हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग।
               लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग

स्पष्टीकरण – पूँछ में आग लगने से पहले लंका का जलना अतिशयोक्ति है।

उदाहरण – कढ़त साथ ही म्यान तें, असि रिपु तन ते प्रान

स्पष्टीकरण – म्यान से निकलते ही शत्रुओं के प्राणों का निकलना अतिशयोक्ति है।

उदाहरण –  आगे नदिया पड़ी अपार, धोड़ा कैसे उतरे पार
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ।।

स्पष्टीकरण – सोचते ही घोड़े द्वारा नदी को पार करना अतिशयोक्ति है।

अतिशयोक्ति अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण-

(1) जिस वीरता से शत्रुओं का सामना उसने किया।
असमर्थ हो उसके कथन में मौन वाणी ने लिया ।।

(2) तारा सो तरनि धूरि धारा मैं लगत जिमि,
धारा पर पारा पारावार यों हलत है।।

(3) लेवत मुख में घास मृग, मोर तजत नृत जात।
      आँसू गिरियत जर लता, पीरे-पीरे पात ।।

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(4) अब जीवन की कपि, आस न कोय ।
      कनगुरिया की मुंदरी कँगना होय ॥

(5) आगे नदियां पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार ।
      राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ।।

(6) राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था ।
     पर चेतक की शक्ति को बढ़ा चढ़ा कर कहा गया है।

(7) इति आवत चलि जात उत चली छ सातक हाथ ।

(8) पत्राहि तिथि पाइये वा घर के चहुँ पास।

(9) नित्य प्रति पुन्यौई रहै आनन ओप उजास ।

(10) बांधा था विधु को किसने, इन काली जंजीरों से।
      मणि वाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ है हीरों से ।।

(11) अनियारे दीरघ नयनि, किती न तरुनि समान ।
      वह चितवनि औरें कछू, जिहि बस होत सुजान ।।

(12) वह सजीव रचना थी युग की, पल में आकर झलकी ।
     नहीं समायी जड़ जंगम, छबि उनकी जो छलकी ।।

(13) छाले परिबे के उरनि, सकै न हाथ छुवाई |
     झिझकति हिया गुलाब कै, झंझावत पाय ।।



                          ★★★ निवेदन ★★★

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