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बाल साहित्य पर निबंध / essay on Bal Sahitya in hindi
रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) बाल साहित्य से जुड़ी समस्याएँ, (3) बाल साहित्य के स्रोत, (4) उपसंहार।
प्रस्तावना-
मानव की मूल प्रवृत्तियों का शोधन साहित्य द्वारा होता है। और बालकों तथा भावी नागरिकों का निर्माण बाल साहित्य के द्वारा होता है। हमारे देश में अच्छे बाल साहित्य का नितान्त अभाव है। फिर साहित्य के अभाव में बालकों में अपेक्षित गुणों का विकास किस प्रकार हो? यह कार्य बाल साहित्य ही सरलता से कर सकता है, अतः बाल साहित्य के विभिन्न पक्षों पर विचार करना आवश्यक है।
साहित्य की परिभाषाएँ विभिन्न प्रकार से दी गई हैं। जैसे—“ज्ञान राशि के संचित कोष का नाम ही साहित्य है,” “प्रगतिशील अनुभूतशील मानव की भावनाओं का लिपिबद्ध रूप साहित्य है” एवं “सामाजिक मस्तिष्क अपने पोषण के लिए जो भाव सामग्री निकाल कर समाज को सौंपता है, उसी के संचित भण्डार का नाम साहित्य है।” ‘साहित्य भाव इति साहित्यम्’ जिसमें हित की भावना निहित हो, उसे साहित्य की संज्ञा दी जाती है। जिस साहित्य में बालकों के हित की भावना निहित हो, उसे बाल साहित्य की संज्ञा दी जा सकती है।
बाल साहित्य से जुड़ी समस्याएँ-
बाल साहित्य के विभिन्न अंगों का सन्तुलित विकास नहीं हो पाया है। इस क्षेत्र के कविता, कहानी, लेख, गीत,नाटक, एकांकी, संस्मरण, रेडियो एकांकी, विज्ञान साहित्य आदि का समान रूप से विकास नहीं हो पा रहा है। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में एक पत्रिका ‘बाल भारती’ एक लम्बे समय से प्रकाशित हो रही है। परन्तु इस पत्रिका ने कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं की है। कुछ उच्च स्तरीय युवा वर्ग की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में मुख्यतः धर्मयुग तथा साप्ताहिक हिन्दुस्तान में बाल साहित्य को स्थान दिया जाता है, परन्तु यह दिया जाने वाला स्थान लेश मात्र ही होता है। यह भी बाल साहित्य के लेखकों के साथ अन्याय है कि धर्मयुग अन्य लेखकों की अपेक्षा बाल साहित्य के लेखकों को बहुत कम पारिश्रमिक देता है।
कुछ दैनिक पत्रों के रविवारीय अंकों में भी ऐसी सामग्री होती है। फलतः बाल साहित्य के लेखन, सृजन और प्रकाशन में अनेक कठिनाइयाँ हैं। बाल साहित्य की माँग कम होने से प्रकाशक कम प्रतियाँ छापते हैं। परिणाम-स्वरूप उत्पादन लागत अधिक आती है। वे पुस्तकों में आवश्यक चित्रों को समाविष्ट नहीं करते और बाल साहित्य में चित्रों की कमी खटकती रहती है, जबकि बाल साहित्य में बहरंगे चित्र समाविष्ट किये जाने चाहिए।
प्रकाशक चित्रों के ब्लाक्स बनवाने के भारी खर्चे के कारण चित्रों के प्रति उदासीन रहते हैं क्योंकि सम्पादकों तथा प्रकाशकों के समक्ष लाभ का दृष्टिकोण ही प्रमुख रहता बच्चों के मन को छूने वाले चित्र बनाने वालों को कोई नहीं पूछता तथा चित्रकला के पारखियों की प्रतिभा दबी रह जाती है। प्रकाशक भी लेखकों का पूरा-पूरा शोषण करते हैं। वे लेखकों को उचित पारिश्रमिक नहीं देते। वे लेखक को जानकारी दिये बिना पुस्तक की अधिक प्रतिया छपवा लेते हैं तथा लाभ उठाते हैं। श्रेष्ठ बाल साहित्य अधिकाधिक बच्चों के हाथों में पहुँच सके, इसके लिए आवश्यक है कि श्रेष्ठ कृतियों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद हो ।
बाल साहित्य के स्रोत-
बाल साहित्य कहाँ प्राप्त होगा? इससे भी बालक और अभिभावक अनभिज्ञ हैं। पुस्तकालयाध्यक्ष पुस्तक खोने के डर से आलमारियों के ताले ही नहीं खोलते हैं। भारी मूल्य के कारण कई संस्था प्रधान चाहते भी कई बार बाल साहित्य नहीं खरीद पाते। पुस्तकालयाध्यक्षों को इस डर से मुक्त किया जाना चाहिए कि पुस्तक खोने पर उनसे पुस्तक की कीमत वसूल की जायेगी। अपने देश में उत्कृष्ट और सस्ते बाल साहित्य का प्रकाशन अभी विकसित नहीं हुआ है। हिन्दी में पिछले तीन दसकों में कुछ प्रगति हुई है। उसमें पर्याप्त नवीनता और मौलिकता आयी है। आज बाल साहित्य सम्बन्धी उपलब्ध पत्रिकाओं में प्रमुख हैं—पराग, नन्दन, बाल भारती, चन्दामामा, बालक, वानर, अमर चित्रकथा,चम्पक, किशोर, चुन्नू-मुन्नू, राजा भैया, मिलिन्द, लोट-पोट, मुकुल, वैज्ञानिक बालक आदि।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि स्वतन्त्रता के बाद बाल साहित्य के सृजन पर केन्द्रीय सरकार तथा कुछ राज्यों की सरकारों ने ध्यान दिया है। पर इस क्षेत्र में मौलिक चिन्तन तथा कल्पना का अभाव पाया जाता है। सरकार ने चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट को इस उद्देश्य से ऋण दिया कि बच्चे के लिए उपयोगी साहित्य प्रकाश में आयेगा, पर चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट भी अन्य प्रकाशकों की ही दृष्टि से सोचे तो क्या लाभ ? इसने भी प्रायः अंग्रेजी की ही बालोपयोगी पुस्तकें छापी हैं, जिसका लाभ मुट्ठीभर बालक ही उठा पाते हैं। भारत के लाखों करोड़ों बालकों के हाथों में पुस्तकें कैसे पहुँचे? इस पर भी चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट को विचार करना चाहिए।
उपसंहार –
बाल साहित्य के लिए सरकारी संरक्षण ही महत्त्वपूर्ण नहीं है। वरन् महत्त्वपूर्ण तो है बाल साहित्य रचनाकारों की समर्पित भावना, लेखकों को इसे गम्भीरता सं. लेना चाहिए।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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