भारत में हरित क्रान्ति पर निबंध / essay on green Revolution in India in hindi

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भारत में हरित क्रान्ति पर निबंध / essay on green Revolution in India in hindi

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रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) क्रान्ति का प्रारम्भ, (3) घटक, (4) लाभ, (5) असफलताएं, (6) सुझाव, (7) उपसंहार ।

प्रस्तावना— 

भोजन, कपड़ा और मकान प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। इनमें भी भोजन पहले स्थान पर है। ‘हर पेट को रोटी’ का जो स्वप्न हमारे देश के कर्णधारों ने देखा था वह आजादी के बाद भी लम्बी अवधि तक अधूरा रहा। साठ के दशक तक भी देश के बड़े भाग में भूख थी, अकाल था। साठ के दशक में हमारे देश में ‘हरित क्रान्ति आई, जिसके फलस्वरूप सरकारी गोदाम अनाज से लबालब भर गये ।

हरित क्रान्ति का प्रारम्भ–

भारत मे हरित क्रान्ति के सूत्र निर्धारित करने एवं सफलता प्राप्त करने का श्रेय हमारे कृषि वैज्ञानिकों को जाता है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत सरकार ने फोर्ड फाउण्डेशन के विशेषज्ञों का एक दल भारत बुलाया था। भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने के उपाय सुझाने के लिए 1 अप्रैल, 1959 में इस दल ने अपनी रिपोर्ट ‘भारत की खाद्य समस्या तथा इससे निबटने के उपाय’ प्रस्तुत कर दी। इस दल द्वारा दिये गये सुझावों के आधार पर भारत सरकार ने 1960 में ‘हरित क्रान्ति’ प्रोग्राम प्रारम्भ किया।

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हरित क्रान्ति घटक –  

भारत में हरित क्रान्ति में जहाँ एक ओर कृषि उत्पादकता वृद्धि को लक्ष्य बनाया गया, वहीं कृषि क्षेत्र की परम्परागत उत्पादन तकनीक में संरचनात्मक परिवर्तन करने के प्रयास भी सम्मिलित हैं। उत्पादन तकनीक के इन संरचनात्मक परिवर्तनों नवीन कृषि उपकरणों, सिंचाई सुविधाओं, रासायनिक खादों, कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग सम्मिलित किया गया। पौध संरक्षण, उन्नत बीज आदि के प्रयोग पर भी इस कार्यक्रम में विशेष ध्यान दिया गया। इसके अतिरिक्त उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए बहुफसलीय कार्यक्रम अपनाकर एक वर्ष में कई फसलें उगाने का प्रयास इस हरित क्रान्ति में किया गया ।

हरित क्रान्ति के लाभ-

भारत मे हरित क्रान्ति के कारण होने वाली उत्पादन वृद्धि के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय तथ्य है कि अनेक फसलों के उत्पादन में जो आरम्भिक वृद्धि हुई थी वह निरन्तर स्थायी न रह सकी। इस वृद्धि दर में उतार-चढ़ाव आते रहे और गेहूं का उत्पादन भी इससे प्रभावित हुआ किन्तु हरित क्रान्ति से देश के कृषि क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है। उत्पादन में वृद्धि हुई है, भारत खाद्यान्नों में आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ रहा है। कृषि मन्त्रालय के नवीनतम् आंकलन के अनुसार देश में खाद्यान्नों का उत्पादन वर्ष 1998-99 में बढ़कर 200.8 मिलियन टन के रिकार्ड स्तर तक पहुँच गया है।

हरित क्रान्ति की असफलताएँ – 

हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अपनाये गये तकनीकी सुधारों एवं उत्पादन विधियों के परिवर्तन के फलस्वरूप कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में वृद्धि हुई है, लेकिन इस कार्यक्रम से अनेक समस्याएँ भी उत्पन्न हो गई हैं। हरित क्रान्ति की असफलताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-

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(1) गेहूं की फसल तक ही सीमित रही।

(2) असन्तुलित कृषि विकास हुआ।

(3) सिंचित भूमि तक ही सीमित रही।

(4) बड़े किसानों को ही लाभ हुआ।

(5) कृषि मजदूरों की बेरोजगारी में वृद्धि हुई।

(6) आय की असमानताओं में वृद्धि हुई।

सुझाव–

हरित क्रान्ति की सफलता के लिए निम्नलिखित सुझाव उपयोगी सिद्ध होंगे-

(1) हरित क्रान्ति का सन्तुलित क्षेत्रीय विस्तार किया जाय।

(2) सिंचाई की सुविधाओं का पर्याप्त विकास किया जाय।

(3) छोटे किसानों तक हरित क्रान्ति का विस्तार किया जाय।

(4) सभी फसलों को हरित क्रान्ति के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाए।

(5) भूमि सुधार कार्यक्रमों को कड़ाई से लागू किया जाय ।

(6) पर्याप्त मात्रा में साख सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।

(7) सहकारी कृषि को प्रोत्साहित किया जाय ।

(8) कृषि उपज के विपणन की उचित व्यवस्था की जाय।

(9) उर्वरक, खाद एवं कीटनाशी के वितरण की उचित व्यवस्था की जाए।

(10) प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार किया जाय।

उपसंहार-

भारत सरकार ने समयानुसार हरित क्रान्ति कार्यक्रम चलाकर देश को विकसित देशों की श्रेणी में लाने का सराहनीय प्रयास किया है लेकिन इस कार्यक्रम की सफलता के लिए जन-सहयोग अति आवश्यक है। इसके लिए कृषकों में जागृति उत्पन्न करनी होगी, तभी सही मायने में हरित क्रान्ति सफल हो सकती है।

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                         ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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