ब्रूनर का संज्ञानात्मक अधिगम का सिद्धांत / Bruner’s Cognitive theory in hindi

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Bruner’s Cognitive theory in hindi / ब्रूनर का संज्ञानात्मक अधिगम का सिद्धांत /

ब्रूनर का संज्ञानात्मक अधिगम का सिद्धांत / Bruner’s Cognitive theory in hindi

ब्रूनर का संज्ञानात्मक अधिगम सिद्धान्त / Brunerian Cognitive Learning Theory

ब्रूनर के सीखने के सिद्धान्त के अनुसार पाठ योजना में सूचना प्रक्रिया एवं मॉडल का उद्दीपन तथा समुचित वातावरण को उत्पन्न किया जाता है। सीखने हेतु ब्रूनर द्वारा विकसित लेखा-जोखा होता है। इसमें सीखने की समस्या का समाधान तथा तथ्यों एवं प्रत्ययों के बोध हेतु प्रतिमान (मॉडल) 1956 में प्रस्तुत किया गया था। इसका प्रयोग पाठ योजना सम्प्रेषण प्रत्यय-निष्पत्ति प्रतिमान सूचना प्रकरण (Information processing) में प्रमुख स्रोत के रूप में किया जाता है। आगमत तर्क के विकास हेतु यह प्रतिमान विशेष उपयोगी है। ब्रूनर तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों ने अपने शोधों के द्वारा यह जानने का प्रयत्न किया कि मानव अपने प्रत्ययों की रचना कैसे करता है और उसके अनुसार पर्यावरण में वस्तुओं के परस्पर सम्बन्धों तथा सादृश्य को किस प्रकार देखता है ? लूनर के सीखने के सिद्धान्त में प्रमुख रूप से चार प्रतिमान के अवयवों का प्रयोग किया जाता है-

1. वस्तुओं, व्यक्तियों एवं घटनाओं की पहचान (Recognition of events, things and pupils) – इस प्रतिमान का पहला अवयव है आधार सामग्री को प्रस्तुत कर प्रत्ययों का बोध कराने के उद्देश्य से रोचक क्रियाओं के द्वारा वस्तुओं, व्यक्तियों या घटनाओं की पहचान करना।

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2. उचित रचना कौशलों का विश्लेषण करना (Analysis of proper creative skills)- पाठ योजना में प्रयुक्त इस प्रतिमान का दूसरा अवयव है आधार सामग्री का विशेष अध्ययन करने के लिये प्रयुक्त किये जाने योग्य रचना कौशलों का विश्लेषण करना।

3. प्रत्ययों का विश्लेषण करना (Analysis of concepts) – तीसरा अवयव है विवरण, वार्ता तथा लिखित सामग्री में मिलने वाले प्रत्ययों का विश्लेषण करना ।

4. अभ्यास (Drilling) – इसका चौथा अवयव है अभ्यास। अभ्यास में छात्रों को प्रत्ययों की रचना करने के लिये कहा जाता है। छात्रों को यह अवसर दिया जाता है कि वे इन प्रत्ययों को परिभाषित तथा परिष्कृत करें।

ब्रूनर के अधिगम सिद्धान्त की उपयोगगिता (Utility of learning theory of Bruner)

ब्रूनर का यह अधिगम का सिद्धान्त अध्यापक एवं अधिगमकत्तों के लिये निम्नलिखित रूप से उपयोगी है-

(1) शिक्षण में सम्प्रत्ययों के अधिगम को विशेष महत्त्व दिया गया है। कक्षा में शिक्षक को एक कुशल नियन्त्रक की भूमिका निभानी पड़ती है। विषयवस्तु के चयन से लेकर उसके प्रस्तुतीकरण एवं विश्लेषण तक उसका सजग रहना छात्रों के प्रभावशाली अधिगम के लिये आवश्यक है।

(2) आत्मसातीकरण हेतु शिक्षक को अधिकाधिक उदाहरण देने पड़ते हैं। उदाहरणों का विश्लेषण एवं अवबोध कराना भी आवश्यक है।

(3) कक्षा-शिक्षण में अनुक्रियात्मक एवं सामाजिक सन्दर्भ का अपना महत्त्व होता है। छात्र अपने प्रत्ययों तथा व्यूह रचना का विश्लेषण आरम्भ कर देते हैं। छात्र सबसे सरल एवं प्रभावशाली रचना कौशलों को प्रयुक्त करते हैं ताकि नवीन प्रत्ययों का बोध हो सके।

(4) इस प्रकार पाठ योजना में ब्रूनर द्वारा निर्मित ये सिद्धान्त प्रतिमान के रूप में अधिक उपयोगी है। ब्रूनर ने अपने कार्यपरक उपागम का निर्माण उपरोक्त मॉडल के प्रयोग के साथ निम्नलिखित सिद्धान्तों को पाठ योजना का प्रमुख बिन्दु माना-

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(1) अभिप्रेरणा (Motivation)। (2) संरचना (Structure) । (3) अनुक्रम (Seq-uence) । (4) पुनर्बलन (Reinforcement)।

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