दीपक अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / दीपक अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

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दीपक अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / दीपक अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

दीपक अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण / दीपक अलंकार के उदाहरण व स्पष्टीकरण

दीपक अलंकार की परिभाषा

जहाँ उपमेय और उपमान दोनों का एक धर्म कहा जाय, वहाँ दीपक अलंकार होता है।

अर्थात जहाँ प्रस्तुत और अप्रस्तुत में एकधर्मसंबंध वर्णित हो वहाँ दीपक अलंकार होता है। जिस प्रकार दीपक जलकर घर-बाहर सर्वत्र प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार दीपक अलंकार निकटस्थ पदार्थों एवं दूरस्थ पदार्थों का एकधर्म-संबंध वर्णित करता है।

उदाहरण – संग ते जती, कुमंत्र ते राजा,
                 मान ते ज्ञान, पान ते लाजा।
                प्रीति प्रनय बिनु, मद ते गुनी,
                नासहिं बेगि, नीति अस सुनी ॥

स्पष्टीकरण – यहाँ पर यति, राजा, ज्ञान, लज्जा, प्रीति तथा गुणी मनुष्य सभी उपमेय और उपमानों का ही एक धर्म ‘नासहिं’ कहा जाने से दीपक अलंकार है।

उदाहरण –  रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
                    पानी गये न ऊबरे, मोती मानुस चून।

स्पष्टीकरण –  इस दोहे में पानी को बनाए रखने का आग्रह किया गया। यह आग्रह मनुष्य से किया गया है। इसलिए यहाँ मानुस (प्रस्तुत ) और मोती तथा चून (अप्रस्तुत) का एक ही धर्म पानी राखिए बताया है।

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उदाहरणकामिनी कन्त सों, जामिनी चन्द सों,दामिनी पावस मेघ  घटा सों जाहिर चारिहु ओर जहान लसै, हिन्दवान खुमान शिवा सों।

स्पष्टीकरण – यहाँ हिन्दू सम्राट शिवाजी से शोभित संसार उपमेय तथा कामिनी, यामिनी, दामिनी, मेघ उपमान के लिए एक ही साधारण धर्म (लसै-सुशोभित होना) का प्रयोग हुआ है,अतः यहाँ दीपक अलंकार है।

उदाहरण – भूपति सोहत दान सों, फल फूलन उद्यान।

स्पष्टीकरण –  यहाँ भूपति (प्रस्तुत) और उद्यान (अप्रस्तुत) दोनों के लिए एक ही साधारण धर्म (सोहत) का प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ दीपक अलंकार है।

उदाहरण –  देखैं तें मन भरै, तन की मिटे न भूख।
               बिन चाखै रस नहीं मिले, आम कामिनी ऊख।।

स्पष्टीकरण –  यहाँ उपमेय (कामिनी) तथा उपमान (आम व ईख) के लिए एक ही साधारण धर्म (बिन चाखे रस नहिं मिले) का प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ दीपक अलंकार है।

दीपक अलंकार के अन्य उदाहरण –

1. चंचल निशि उदवस रहें,करत प्रात वसिराज।
अरविंदन में इंदिरा,सुंदरि नैनन लाज ।।

2. सुर, महिसुर हरिजन अरु गाई।
हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।

3. फल से सोहत तीर्थ थल, जल से सोहत कूप।
रस से सोहत सुमन जल, बल से सोहत भूप।।

4. सरसिज से है सर की शोभा, नयनों से तेरे आनन की।।




                            ★★★ निवेदन ★★★

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