उत्कृष्ट प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी पर निबंध / essay on Indira Gandhi in hindi

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उत्कृष्ट प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी पर निबंध / essay on Indira Gandhi in hindi

उत्कृष्ट प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी पर निबंध / essay on Indira Gandhi in hindi

उत्कृष्ट प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी पर निबंध / essay on Indira Gandhi in hindi


रूपरेखा—(1) प्रस्तावना, (2) जीवन-परिचय, (3) राजनीति में प्रवेश, (4) प्रधानमंत्री के रूप में, (5) बलिदान, (6) उपसंहार।

प्रस्तावना —

प्राचीन काल से लेकर अब तक अनेक विदुषियों ने भारत-भूमि को अपने चारित्रिक प्रकाश से प्रकाशित किया है। उन्हीं में एक श्रीमती इन्दिरा गाँधी हैं, जिन्होंने भारत विशाल जनतंत्र पर सोलह वर्ष तक अबाध शासन किया। इनको ‘प्रियदर्शिनी’ के नाम से भी पुकारा जाता रहा है।

जीवन-परिचय–

श्रीमती इन्दिरा गाँधी का जन्म 19 नवम्बर, 1917 को इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता पण्डित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। इनकी माता श्रीमती कमला नेहरू थीं तथा पितामह श्री मोतीलाल नेहरू एक प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित वकील थे। इन्दिरा गाँधी ने शान्ति-निकेतन में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का अमिट प्रभाव इन पर पड़ा। इस प्रकार क्रमश: महात्मा गाँधी, पिता श्री जवाहरलाल नेहरू तथा टैगोर के समन्वित प्रभाव से इन्दिरा का व्यक्तित्व एक विशेष प्रकार से विकसित हुआ।
भारतीय परम्पराओं को तिलांजलि देकर इन्होंने एक पारसी युवक श्री फीरोज गाँधी से विवाह किया ।

राजनीति में प्रवेश –

इन्दिरा गाँधी अपने बचपन से ही राजनीतिक गतिविधियों में रुचि लेने लगी थीं। उन्होंने बचपन में ही ‘वानर-सेना’ का संगठन करके अपनी देश-भक्ति और राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया। स्वतंत्र भारत में वे अपने पिता श्री जवाहरलाल जी को, उनके साथ रहकर सहयोग देती रहीं। उन्होंने सन् 1955 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और सन् 1959 में उन्हें सर्व सम्मति से दल का अध्यक्ष चुना गया। श्री लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रित्व काल में इनको सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में मंत्रिमण्डल में सम्मिलित किया गया ।

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प्रधानमंत्री के रूप में—

श्री लालबहादुर शास्त्री का सन् 1966 में आकस्मिक निधन हो जाने पर पुराने कांग्रेसियों ने अपनी सहानुभूति और अपने इशारे पर ही कार्य कराने की दृष्टि से श्रीमती इन्दिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बना दिया। आपको भारत की सर्वप्रथम महिला प्रधानमन्त्री पद की शपथ 48 वर्ष की आयु में 24 जनवरी, 1966 को तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ० राधाकृष्णन् ने दिलाई थी। सन् 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस कई राज्यों में अपनी सरकार नहीं बना सकी। इस प्रकार अपने साहस से, अपने ही दल के विरोध करने पर भी आपने राष्ट्रपति के पद के लिए श्री वी० वी० गिरि का समर्थन किया और उन्हें जिता दिया। कांग्रेस दल का विभाजन हुआ।

आपने बैकों का राष्ट्रीयकरण किया, प्रीवीपर्स की समाप्ति की और बंगला देश के मामले में अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। सन् 1971 में मध्यावधि चुनाव कराने पर आपको प्रचण्ड बहुमत प्राप्त हुआ और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आपके तेजस्वी नेतृत्व ने अपार मान्यता प्राप्त की। देश के चौदह बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने न केवल कांग्रेस की कथनी और करनी को एक कर दिया और न केवल कांग्रेस के प्रति जनता के विश्वास को पुनः प्रतिष्ठित किया, बल्कि समाजवादी मार्ग पर देश को साहसपूर्ण आगे ले जाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई।

देश के जन-सामान्य ने जिस उत्साहपूर्वक उनके कार्यों का समर्थन किया, वह कदाचित्ने हरू और गाँधी जी को भी प्राप्त न हुआ था। श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सन् 1975 में आन्तरिक परिस्थितियों को ठीक करने के उद्देश्य से आपातकाल की घोषणा की। इस काल में उन्होंने विपक्ष के विभिन्न नेताओं को जेलों में डाल दिया। इस स्थिति में प्रशासनिक अधिकारियों ने जनता के साथ हठधर्मी की। सन् 1977 में आपातकाल की समाप्ति पर होने वाले चुनावों में इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व को यहाँ की जागरूक दिया और जनता पार्टी ने शासन सूत्र अपने हाथों में सम्भाला।

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अपनी इस विशेष हार और पराभव की स्थिति में श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने बड़े धैर्य, साहस, दृढ़ता और सूझ-बूझ तथा देश-सेवा की अटूट लगन का परिचय दिया। परिणामस्वरूप सन् 1980 में जनता पार्टी की सरकार गिर गयी और चुनावों में श्रीमती इन्दिरा गाँधी पुनः प्रचण्ड बहुमत से जीतकर आयीं और भारत की प्रधानमंत्री बनीं।

अपनी दीर्घकालीन प्रशासनिक क्षमता के कारण श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के क्षेत्र में विरोध और विषमताओं के होने पर भी विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। आपके ही शासन काल में परमाणु परीक्षण तथा भारत का अन्तरिक्ष में प्रवेश हुआ। एशियाड और निर्गुट सम्मेलन ने तो विश्व में भारत की छवि को चार चाँद लगा दिये। इस प्रकार आपको लन्दन सुप्रसिद्ध समाचार-पत्र ने ‘विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली महिला’ बताया । अपने अद्भुत गुणों के कारण ही विश्व राजनीति में आपने पदार्पण किया।

बलिदान –

अपने प्रिय देश भारत की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए अनेकानेक कदम उठाते हुए, पंजाब में बढ़ते आतंकवाद को समाप्त करने के लिए अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में सेना का प्रवेश कराया। इससे सिखों में रोष फैल गया और श्रीमती इन्दिरा गाँधी के सुरक्षा कर्मचारियों में से दो सिख युवकों ने 31 अक्टूबर, 1984 को गोलियों की बौछार से उन्हें चिर निद्रा में सुला दिया। उन्होंने एक दिन पूर्व ही उड़ीसा की एक जनसभा में कहा था- “अगर राष्ट्र के लिए मैं अपनी जान भी दे दूँ, तो मुझे गर्व होगा। मेरे खून का एक-एक
कतरा राष्ट्र की प्रगति और देश को मजबूत बनाने में मदद देगा।” इस प्रकार श्रीमती इन्दिरा गाँधी का बलिदान अनुपम है। उनके बलिदान से प्रभावित देश-वासियों की यही श्रद्धांजली है –
जब तक सूरज चाँद रहेगा।
इन्दिरा तेरा नाम रहेगा |

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उपसंहार —

श्रीमती इन्दिरा गाँधी का जीवन अदम्य साहस के साथ प्रगति की ओर बढ़ने के लिए प्रकाश स्तम्भ है। वे देश की महान नारी थीं। उन पर देश को गर्व है।

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                         ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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