नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर निबंध / essay on Netaji Subhash Chandra Bose in hindi

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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर निबंध / essay on Netaji Subhash Chandra Bose in hindi

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर निबंध / essay on Netaji Subhash Chandra Bose in hindi

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर निबंध / essay on Netaji Subhash Chandra Bose in hindi


रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) जन्म और शिक्षा, (3) क्रान्तिकारी जीवन, (4) उपसंहार।

प्रस्तावना – 

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस उन महान् विभूतियों में से एक थे, जिन्होंने अपने सुखमय जीवन की बलि देकर भारत माता के दुःखों को दूर करने का प्रयत्न किया था। इस महान् पुरुष का व्यक्तित्व प्रारम्भ से ही ओजस्वी और वीरतापूर्ण रहा। अन्याय और अत्याचार को सहन करना उनकी प्रकृति नहीं थी। दासता उनके लिए सबसे बड़ा अभिशाप था। देश को आजाद कराने के लिए वे सब कुछ बलिदान करने को तैयार रहते थे। आपने सन् 1857 के बाद पहली
बार भारतीयों की सेना संगठित करके देश से विदेशी सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया था। सुभाषचन्द्र बोस ने गर्जना की थी— “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” इससे उनका देश-प्रेम प्रकट होता है। उनकी देश पर मर मिटने की एक चाह थी।

जन्म और शिक्षा –

सुभाषचन्द्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक नगर में 23 जनवरी, 1897 को हुआ था। उनके पिता बाबू जानकीनाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील थे। सुभाषचन्द्र बचपन से ही बड़े मेधावी और स्वाभिमानी थे। एन्ट्रेन्स की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् वे कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कालेज में पढ़ने लगे। इस कालेज में भारतीय छात्रों को अंग्रेज शिक्षक एवं छात्र तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। इसे सहन करना सुभाषचन्द्र की प्रकृति के प्रतिकूल था। इस स्थिति का सामना करने के लिए उन्होंने भारतीय छात्रों का एक संगठन बनाया। उन्होंने उन अंग्रेज शिक्षकों का कड़ा विरोध किया। कॉलेज के उन अंग्रेज शिक्षकों ने सामूहिक रूप से सुभाषचन्द्र पर अनेक झूठे आरोप लगाये और उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया। बाद में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रवेश मिला । सुभाषचन्द्र ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।

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बाबू जानकीनाथ चाहते थे कि सुभाषचन्द्र बोस आई० सी० एस० होकर सरकारी नौकरी में उच्च पद प्राप्त करें, लेकिन सुभाषचन्द्र के मन में देश प्रेम हिलोरें ले रहा था । वे ब्रिटिश सरकार की नौकरी नहीं करना चाहते थे, लेकिन पिता की इच्छा के सम्मुख उन्हें झुकना पड़ा। वे परीक्षा देने के लिए इंग्लैण्ड गये और मात्र आठ महीने अध्ययन करके उन्होंने आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। पिता की इच्छा तो उन्होंने पूरी कर दी, लेकिन अपनी अन्तरात्मा की आवाज को वे दबा न सके। वे यह सोचते थे कि अंग्रेजों की नौकरी में रहकर पराधीन देश की जनता की भलाई नहीं की जा सकती। अतः उन्होंने आई० सी० एस० से इस्तीफा दे दिया और स्वदेश – भारत लौट आये।

क्रान्तिकारी जीवन—

जिस समय सुभाषचन्द्र भारत लौटे, उस समय गाँधी जी का सविनय अवज्ञा आन्दोलन चल रहा था। बंगाल में देशबन्धु चितरंजनदास का बहुत प्रभाव था। सुभाषचन्द्र ने उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बनाया। यद्यपि सुभाषचन्द्र गरम दल के नेता थे, फिर भी वे गाँधी जी का सम्मान करते थे। उन्होंने गाँधी जी के आन्दोलनों में भाग लिया। उन्होंने सन् 1921 में ‘असहयोग आन्दोलन तथा सन् 1929 में नमक कानून तोड़ो आन्दोलन का नेतृत्व भी किया। वे सन् 1938 और 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। विचारों में मतभेद होने के कारण कांग्रेस से उन्होंने त्याग पत्र दे दिया और फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की, जिसका लक्ष्य था- पूर्ण स्वराज्य ।

सन् 1940 में अंग्रेज सरकार ने उन्हें कैद कर लिया, लेकिन अस्वस्थ होने के कारण उन्हें जेल से निकालकर उन्हीं के घर में नजरबन्द कर दिया। एक दिन सुभाषचन्द्र पुलिस को धोखा देकर के रास्ते होकर जर्मनी जा पहुँचे। जर्मन नेता हिटलर ने उनका भरपूर स्वागत किया। सन् 1942 में वे जर्मन से टोकियो पहुँचे। वहाँ उन्होंने भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए ‘आजाद हिन्द फौज’ बनाई, जिसमें जाति-पाँति का कोई भेद-भाव नहीं था । साधनों की कमी होते हुए भी उन्होंने अंग्रेज सेना से डटकर मुकाबला किया, जिसमें जापान की हार हुई और मजबूर होकर ‘आजाद हिन्द फौज’ को हथियार डालने पड़े।

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उपसंहार-

23 अगस्त, 1945 को टोकियो रेडियो ने शोक समाचार प्रसारित किया कि सुभाषचन्द्र बोस विमान दुर्घटना में मारे गये। देशवासियों को इस पर विश्वास नहीं हुआ। उनकी मृत्यु अब तक रहस्य बनी हुई है। आज भी उनका दिया नारा ‘जयहिन्द’ तथा ‘कदम-कदम बढ़ाये जा’ का गीत जनमानस में गूंज रहा है।

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