स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पर निबंध / essay on Rajendra Prasad in hindi

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स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति  डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पर निबंध / essay on Rajendra Prasad in hindi

स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पर निबंध / essay on Dr. Rajendra Prasad in hindi

स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति  डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पर निबंध / essay on Rajendra Prasad in hindi


रूपरेखा (1) प्रस्तावना (2) जन्म और शिक्षा, (3) कार्य क्षेत्र,
(4) उपसंहार ।

प्रस्तावना – 

स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद गाँधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक तथा जनता के सच्चे प्रतिनिधि थे। वे सादगी की साक्षात मूर्ति थे । स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में उनको पाकर देशवासी धन्य हो गये। देशवासी उन्हें सदैव याद रखेंगे।

जन्म और शिक्षा-

डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कालेज से एम० ए० और एल-एल० बी० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। वे बड़े मेधावी छात्र थे। सभी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया ।

कार्य-क्षेत्र–

पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात् डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने मुजफ्फरपुर के एक कालेज में कुछ दिनों तक अध्यापन कार्य किया। उन्होंने सन् 1911 में कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत प्रारम्भ कर दी। पटना हाई कोर्ट स्थापित होने पर सन् 1916 में डॉ० राजेन्द्र प्रसाद वहाँ चले गये। कुछ ही दिनों में उनकी गणना प्रथम श्रेणी के वकीलों में होने लगी। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी गाँधी जी के सम्पर्क में आये और सन् 1920 में उन्होनें वकालत छोड़ दी। वकालत छोड़कर, कांग्रेस में सम्मिलित होकर वे देश सेवा के कार्य में लग गये। वे तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सर्वसम्मति से सभापति चुने गये।

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जब देश स्वतन्त्र हुआ तो 12 वर्ष तक सन् 1950 से 1962 तक भारत गणराज्य के राष्ट्रपति रहे। राजेन्द्र प्रसाद के व्यक्तित्व की मुख्य विशेषता यह थी कि वे राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ अजातशत्रु बने रहे और राष्ट्रपति का वैभवशाली पद प्राप्त होने पर भी सीधे-साधे ग्रामवासी रहे। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़े रहे तथा अनेक बार जेल गये। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ दो टुकड़ों में विभाजित हुआ। भारत के साथ पाकिस्तान का भी अभ्युदय हुआ। स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमन्त्रित्व में राजेन्द्र प्रसाद ने खाद्य मन्त्री के रूप में शपथ ग्रहण की और जब भारत गणराज्य घोषित हुआ तो आप
सर्वसम्मति से इसके अध्यक्ष चुने गये। जिस संविधान का निर्माण डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुआ था, बाद में उसी ने सर्वसम्मति से उन्हें सम्प्रभुता सम्पन्न भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति,पद पर आसीन किया।

उन्होंने 26 जनवरी, 1950 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली और लगातार 12 वर्षों तक लगन से कार्य करके 14 मई, 1962 को अवकाश ग्रहण किया। जब राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करके डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पटना के सदाकत आश्रम में आकर रहने लगे, तब भी राष्ट्रीय समस्याओं पर प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू उनसे सलाह-मशवरा किया करते थे। सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक विषयों पर हिन्दी, अंग्रेजी दोनों में ही डॉ० राजेन्द्र प्रसाद बराबर पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे। वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी रहे। ‘भारतीय शिक्षा’, ‘गाँधी जी की देन’, ‘साहित्य, शिक्षा और संस्कृति’, ‘आत्मकथा’ आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।

उपसंहार-

राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद डॉ० राजेन्द्र प्रसाद बहुत कम समय तक जीवित रहे। 28 फरवरी, 1965 को उनका निधन हो गया। निःसन्देह उनके दिवंगत होने से गाँधीवादी विचारधारा का एक प्रबल समर्थक, जनता का सच्चा प्रतिनिधि और देश का कर्मठ और ईमानदार नेता उठ गया। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सम्बन्धों की उन्होंने जो स्वस्थ और सौहार्द्रपूर्ण परम्परा डाली, वह आज भी अनुकरणीय है।

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