राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी पर निबंध / essay on Shri Pranab Mukherjee in hindi

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राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी पर निबंध / essay on Shri Pranab Mukherjee in hindi

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राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी पर निबंध

रूपरेखा–(1) प्रस्तावना, (2) जीवन-परिचय, (3) राजनैतिक जीवन,
(4) राष्ट्रपति के रूप में, (5) उपसंहार ।

प्रस्तावना –

शस्य श्यामला ऐतिहासिक प्रकृति की दुलारी, सौन्दर्य में
रची-बसी बंग भूमि का कोई सानी नहीं है। बंगाल भूमि हमेशा ही गौरवों से मंडित रही है। इस धरा ने कई अनमोल रत्न पैदा किये जिन्होंने विश्व में भारत का नाम रोशन किया है। यहीं से हमें पहला नोबेल पदक, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय गीत और अब राष्ट्रपति भी मिले हैं।

जीवन-परिचय–

प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसम्बर, 1935 को
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी एवं माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था। प्रणब मुखर्जी का विवाह 13 जुलाई, 1957 को शुभ्रा मुखर्जी के साथ हुआ था। इनके दो पुत्र एवं एक पुत्री हैं। प्रणब मुखर्जी ने प्रारम्भिक शिक्षा वीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज में प्राप्त की। कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास एवं राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ-साथ एल-एल० बी० की डिग्री प्राप्त की। प्रणब मुखर्जी को डी० लिट् उपाधि भी प्राप्त है उन्होंने अपना कैरियर एक कॉलेज अध्यापक के
रूप में प्रारम्भ किया। बाद में एक पत्रकार के रूप में भी कार्य किया।

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राजनैतिक जीवन–

प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक जीवन सन् 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्य सभा सदस्य के रूप में शुरू हुआ। इंदिरा गाँधी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। 39 साल की उम्र में जुलाई, 1973 में पहली बार मन्त्री बने। सन् 1984 में भारत के वित्त मन्त्री बने। कुछ समय के लिए उन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़कर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया। सन् 1989 में राजीव गाँधी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। सन् 1991 से लेकर सन् 1995 तक वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। वह नरसिंह राव की सरकार में प्रथम बार सन् 1995 से 1996 तक विदेश मन्त्री रहे। जब कांग्रेस की गठबन्धन सरकार सन् 2004 में आई तो उन्हें भारत के रक्षामन्त्री का पद प्रदान किया गया। जब सोनिया गाँधी अनच्छिा के साथ राजनीति में शामिल होने को राजी हुईं तब उनका मार्गदर्शन प्रणब मुखर्जी ने ही किया। उनके द्वारा वही मार्ग सोनिया गाँधी को दिखाया गया जो इंदिरा गाँधी कठिन वक्त में अपनाया करती थीं। प्रणब मुखर्जी सदैव कांग्रेस पार्टी के लिए संकटमोचक सिद्ध हुए। कई वर्षों के राजनीतिक अनुभव होने के कारण प्रणब मुखर्जी पार्टी की प्रत्येक समस्या का समाधान ढूँढने में सफल रहे। यू० पी० ए० सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी भारत के वित्त मंत्री बने। 16 जुलाई, 2009 को उन्होंने वार्षिक बजट पेश किया। इस बजट में उन्होंने फ्रिंज बेनिफिट टैक्स एवं कमोडिटीज ट्रांसक्शन टैक्स को हटाने सहित कई प्रकार के कर सुधारों की घोषणा की। प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी अधिनियम, कन्या साक्षरता एवं स्वास्थ्य जैसी सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए समुचित धन का प्रावधान किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, विद्युतीकरण का विस्तार एवं जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन जैसे बुनियादी सुविधाओं वाले कार्यक्रमों का विस्तार किया। उनके नेतृत्व में ही भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण 1.1 अरब अमरीकी डॉलर की अन्तिम किस्त न लेने का गौरव प्राप्त किया। सन् 2008 के दौरान उन्हें उनके सार्वजनिक जीवन में योगदान के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

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राष्ट्रपति के रूप में –

प्रणब मुखर्जी को यू० पी० ए० गठबंधन द्वारा 15 जून, 2012 को नामांकित किया गया। 81 उम्मीदवारों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन भरा लेकिन चुनाव आयोग ने केवल भाजपा तथा एन० डी० ए० समर्थित पी० ए० संगमा और यू० पी० ए० समर्थित प्रणब मुखर्जी को स्वीकृति प्रदान की। नामांकन भरने से पूर्व प्रणब मुखर्जी ने 26 जून, 2012 को केन्द्रीय वित्तमन्त्री और कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दिया। चुनाव में प्रणब मुखर्जी को 7,13,763 वोट एवं पी० ए० संगमा को 3, 15, 987 वोट मिले। वह बहुमत से विजयी हुए। उनका अगला कदम राष्ट्रपति भवन के लिए पक्का हो चुका था। नव निर्वाचित राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 25 जुलाई, 2012 को सुबह साढ़े ग्यारह बजे सर्वोच्च संवैधानिक पद की शपथ ली। देश के प्रधान न्यायाधीश एच० एस० कपाड़िया ने प्रणब मुखर्जी को 13वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलायी। इस अवसर पर संसद के सेण्ट्रल हॉल में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह, यू० पी० ए० प्रमुख सोनिया गाँधी, लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार तथा कई प्रमुख देशों के राजनयिक सेना के उच्च अधिकारी उपस्थित थे।

उपसंहार–

निश्चय ही भारतीय प्रजातन्त्र के लिए यह सर्वाधिक गौरव
की बात है कि उसने इतिहास में पहली बार बंग भूमि में जन्मे प्रणब मुखर्जी को भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति पद पर आसीन होने का अवसर दिया। भारत की जनता को पूर्ण विश्वास है कि देश इनके नेतृत्व में बहुत प्रगति करेगा। सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश अपनी पूर्ण गरिमा को पुनः प्राप्त कर सकेगा।


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