महापुरुष गुरुनानक देव पर निबंध / essay on Gurunanak Dev in hindi

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महापुरुष गुरुनानक देव पर निबंध / essay on Gurunanak Dev in hindi

रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) जीवन-परिचय, (3) उद्भुत घटना, (4) उपसंहार।

प्रस्तावना–

भारत भूमि पर समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार संत-महापुरुषों ने जन्म लिया है और अपने देश की दुःखद परिस्थितियों का मोचन करते हुए पूरे विश्व को सुखद संदेश दिया है। इससे हमारे देश की धरती गौरवान्वित और महिमावान हो उठी है। इनमें गुरुनानक देव का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।

जीवन-परिचय-

चमत्कारी महापुरुषों और महान् धर्म प्रवर्तकों में प्रमुख स्थान रखने वाले सिख धर्म प्रथम प्रवर्तक गुरुनानक देव का जन्म कार्तिक पूर्णिमा संवत् 1526 को लाहौर जिले के तलवंडी गाँव में हुआ था, जो आजकल ‘ननकाना साहब’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थान अब पाकिस्तान में है। आपके पिताश्री कालूचंद वेदी तलवंडी के पटवारी थे और आपकी माताश्री तृप्ता देवी बड़ी साध्वी और शांत स्वभाव की धर्म-परायण महिला थीं। गुरुनानक जी बचपन से ही होनहार प्रवृति के बालक थे। अतएव आप किसी विषय को शीघ्र समझ जाते थे। आप एकान्त प्रेमी और चिन्तनशील स्वभाव के बालक थे।

इसलिए आपका मन विद्याध्ययन और खेलकूद में न लगकर साधु-संतों की संगति में अधिक लगता था। यद्यपि घर पर ही आपको संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा-साहित्य का ज्ञान दिया गया। संसार के प्रति गुरुनानक जी का मन उपेक्षित रहता था। इस प्रकार की बैरागमयी प्रवृति को देखकर इनके पिताश्री ने इन्हें पशु चराने का काम सौंप दिया। जानक के लिए यह काम बहुत ही सुगम और आनन्ददायक सिद्ध हुआ। पशुओं की चिन्ता छोड़कर ईश्वर-ध्यान में डूब जाते थे और मन-ही-मन ईश्वर का भजन करते रहते थे। एक बार फिर इनके पिता ने इन्हें गृहस्थ जीवन में लगाने का प्रयास किया।

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इन्हें बीस रुपये देकर कहा कि बेटा इन रुपयों से ऐसा कोई काम करो जिससे कुछ आय और लाभ प्राप्त हो और मुझे कुछ सहारा मिले। पिता ने इसके लिए गुरुनानक के साथ में दो विश्वस्त नौकरों को भी लगा दिया। गुरुनानक लाहौर की ओर बढ़े। रास्ते में गुरुनानक ने देखा कि कुछ साधु तपस्या में लीन हैं। अब गुरुनानक कुछ समय तक उनके पास ही रुक गये। नानक जी ने मन-ही-मन विचार किया कि महात्माओं को कुछ खिलाना- पिलाना चाहिए।

इसी से इस पूँजी से बड़ा लाभ और आय प्राप्त हो सकती है। इसलिए गुरुनानक ने अपने पास के उन बीस रुपयों को उन साधु-महात्माओं के खान-पान में खर्च कर दिया। उनके पिता इस प्रकार के आचरण से अत्यधिक प्रभावित हुए थे। गुरुनानक देव का विवाह लगभग उन्नीस वर्ष की आयु में मूलाराम पटवारी की कन्या से हुआ। इससे आपके दो पुत्र श्रीचन्त और लक्ष्मीदास उत्पन्न हुए। इन दोनों ने गुरुनानक देव की मृत्यु के बाद उदासी मत को चलाया था।

अद्भुत घटना-

गुरुनानक के जीवन की एक अद्भुत घटना यह है कि आप रात के समय एक नदी में स्नान कर रहे थे; तभी आपको आकाशवाणी हुई कि “प्यारे नानक अपना कार्य कब करोगे। जिस कार्य के लिए तुम संसार में आये हुए हो, उसके लिए मोह ममता छोड़ो। भूले-भटकों को मार्ग पर लाओ।” इस आकाशवाणी से आप फिर घर लौटे नहीं और साधु-वेश में अपने मुसलमान शिष्य मरदाना के साथ इधर-उधर भ्रमण करते रहे। भ्रमण करते हुए आप एक बार मक्का भी गये। वहीं पर काबा के निकट सो गये।

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दैव योग से उनके पैर काबा की ओर थे। सबेरे जब मुसलमानों ने देखा, तो वे बिगड़कर गुरुनानक से कहने लगे “ऐ नादान मुसाफिर! तुझे शर्म नहीं आती; जो तू खुदा की ओर पैर पसारे है।” गुरुनानक ने कहा, “भाई बिगड़ते क्यों हो? मेरा पैर उधर कर दो, जिधर खुदा न हो।” कहा जाता है कि गुरुनानक का पैर जिधर घुमाया गया,उधर ही काबा दिखाई देता था। इससे मुसलमानों ने क्षमा माँगकर उनके प्रति श्रद्धा अर्पित की।

उपसंहार-

गुरुनानक देव की मृत्यु संवत् 1596 में मार्गशीर्ष माह की दशमी को 70 वर्ष की आयु में हुई। सांसारिक असारता के प्रति गुरुनानक देव ने कहा था- “रैन गबाइ सोइ कै, दिवसु गवाया खाय । हीरे जैसा जन्म है, कौड़ी बदले जाय ॥ “

गुरुनानक देव ने ईश्वर को सर्वव्यापी मानने पर बल दिया है। जाति-पाँति के बन्धन को तोड़ने को कहा। पूर्तिपूजा का विरोध करते हुए केवल ‘एक ओंकारा मत’ और सत गुरु प्रसाद के जप को स्वीकार किया है। आपके रचित धर्मग्रन्थ ‘गुरु-ग्रन्थ साहब’ पंजाबी भाषा में है, जिसमें मीरा, तुलसी, कबीर, रैदास, मलूकदास आदि भक्त कवियों की वाणियों का समावेश है। इन तत्त्वों से अमरत्व स्वरूप की सिद्धि हो जाती है।

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