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कारक या परसर्ग की परिभाषा एवं प्रकार / कारक के प्रयोग एवं नियम
परसर्ग किसे कहते हैं / कारक की परिभाषा
कारक का अर्थ है- ‘क्रिया को करने वाला’ । कारक विभिन्न संज्ञाओं सर्वनामों को क्रिया के साथ किसी-न-किसी भूमिका में जोड़ते हैं। जैसे- राम ने सत्य को पाने के लिए रावण से युद्ध किया।
यहाँ ‘ने’, ‘को’, ‘के लिए’, ‘से’ आदि कारक क्रमशः राम, सत्य, पाने, रावण को युद्ध करने की क्रिया से जोड़ रहे हैं। अतः ये कारक हैं। ये क्रिया कराने में संज्ञा, सर्वनाम आदि की भूमिका निश्चित कर रहे हैं। संक्षेप में, कारक संज्ञा आदि शब्दों को क्रिया के साथ किसी-न-किसी भूमिका में जोड़ने का कार्य करते हैं। दूसरे शब्दों में संज्ञा या सर्वनाम की क्रिया के साथ भूमिका निश्चित करने वाले कारक कहलाते हैं।
कारक के प्रकार (Kinds of Case)
हिंदी में मुख्य रूप से छः प्रकार के कारक होते हैं। प्रायः इन कारकों के चिह्न साथ लगते हैं। इन चिह्नों को परसर्ग या विभक्ति कहा जाता है। कुछ स्थलों पर विभक्ति-चिह्न नहीं लगते। जैसे-कर्ता कारक में।
नीचे कारक तथा उनके विभक्ति-चिह्न दिए जा रहे हैं-
कारक कार्य विभक्तियाँ
1. कर्ता (क्रिया को करने वाला) ने या (बिना चिह्न)
2. कर्म (जिस पर क्रिया का प्रभाव या फल पड़े) को, या (बिना चिह्न)
3. करण (जिस साधन से क्रिया हो) से, के द्वारा, के साथ, के कारण
4. सप्रदान (जिसके लिए क्रिया की गई हो) के लिए,को,के निमित्त,के वास्ते
5. अपादान (जिससे पृथकता हो) से (पृथकता सूचक)
6. अधिकरण (क्रिया करने का स्थान/ आधार) में, पर,पे
इनके अतिरिक्त दो कारक और भी माने जाते हैं-संबंध तथा संबोधन। इन पर विद्वानों में मतभेद है। इनका संबंध क्रिया के साथ सीधा नहीं होता, इसलिए कुछ विद्वान इन्हें कारक नहीं मानते।
7. संबंध (क्रिया के अतिरिक्त अन्य पदों से संबंध बताने वाला) का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी
8. संबोधन (जिस संज्ञा को पुकारा जाए) अरे, रे, ओ, अरी, हे !
विभक्तियाँ लिखने की व्यवस्था
(i) संज्ञा शब्दों के साथ विभक्तियाँ अलग-से लिखी जाती हैं। जैसे-
मोहन को, सोहन ने, फुटबाल के लिए, दुकान पर, हे सुमन !
परंतु सर्वनाम के साथ विभक्तियाँ संयुक्त रूप से लिखी जाती हैं।
जैसे-
मैं + ने = मैंने
उस + को = उसको
उन + ने = उन्होंने
हम + से = हमसे
(ii) संबोधन के चिह्न आरंभ में लगते हैं। शेष सभी विभक्तियाँ बाद में प्रयुक्त होती हैं।
कारक के प्रकार
1. कर्ता कारक (Nominative Case)
क्रिया करने वाले को कर्ता कहते हैं। बिना कर्ता के क्रिया संभव नहीं है। यह कर्ता प्रायः चेतन रहता है। जैसे- मोहन लिख रहा है। हाथी झूम रहा है।
प्राकृतिक शक्ति या पदार्थ भी कर्ता के रूप में हो सकते हैं। जैसे-
सूर्य चमकता है, बादल गरजते हैं आदि।
विभक्तियाँ-कर्ता का कारक-चिह्न शून्य (०) अथवा ‘ने’ है। ‘ने’ का प्रयोग भूतकालीन सकर्मक क्रियाओं में होता है।
उदाहरणतया– माया ने अध्ययन किया।
मृणाल ने यात्रा की।
वर्तमानकालीन और भविष्यकालीन क्रियाओं वाले वाक्यों में किसी परसर्ग का प्रयोग नहीं होता। यथा-
मोहन व्यायाम करता है। (वर्तमानकाल)
मोहिनी खेल खेलेगी। (भविष्यकाल)
भूतकालीन अकर्मक क्रिया वाले वाक्यों में भी परसर्ग का प्रयोग नहीं होता। यथा- सोहन गया था। (भूतकालीन अकर्मक क्रिया)
अपवाद-कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’, ‘से’, ‘के द्वारा’ परसर्ग भी प्रयुक्त होते हैं।
यथा-
हमको दिल्ली जाना चाहिए।
हमें सो जाना चाहिए।
मुझे अवश्य जाना है।
मोहन से पुस्तक पढ़ी गई।
बच्चों के द्वारा करतब किए गए।
ने परसर्ग का प्रयोग
(1) कर्ता के लिए ने परसर्ग का प्रयोग भूत काल के सामान्य भूत,
आसन्न भूत, पूर्ण भूत, संदिग्ध भूत, संभाव्य भूत तथा
हेतुहेतुमद्भूत में ही होता है। (अपूर्ण भूत में नहीं होता)
(2) कर्ता के लिए ने परसर्ग का प्रयोग सकर्मक क्रियाओं के साथ
ही होता है। सोना, जागना, जीना, मरना, आना जाना आदि
अकर्मक क्रियाओं में नहीं।
(3) अकर्मक क्रिया का प्रयोग सकर्मक के रूप में होने पर ने
परसर्ग का प्रयोग होता है; जैसे-
उसने बहुत बड़ी चाल चली थी।
(4) प्रेरणार्थक रूप में अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक बन जाती हैं
इसलिए उनके साथ ने चिह्न का प्रयोग होता है, जैसे-
माँ ने बच्चे को सुलाया।
शिष्य ने गुरुजी को जगाया या जगवाया।
(5) अकर्मक होने के बावजूद छींकना, नहाना, थूकना, भौंकना
क्रिया में, ने परसर्ग का प्रयोग किया जाता है, जैसे-
किसने छींका?
कुत्ते ने भौंका था।
विद्वानों ने इन प्रयोगों को सही बताया है परन्तु प्रयोग में ये
स्वाभाविक नहीं लगते हैं।
(6) संयुक्त क्रिया में यदि बाद वाली क्रिया सकर्मक हो तो पहली
क्रिया के अकर्मक होने पर भी ने का प्रयोग होता है; जैसे-
उसने वहीं सो लिया था।
(7) कर्ता के ने परसर्ग का प्रयोग होने पर क्रिया के लिंग और वचन
कर्म के अनुसार हो जाते हैं; जैसे-
राम ने रोटी खायी, राम ने आम खाया।
(8) यदि कर्म के साथ उसके परसर्ग को का भी प्रयोग हुआ हो
तो ने चिह्न से युक्त वाक्य में क्रिया अनिवार्यतः एकवचन
पुल्लिंग में ही होती है; जैसे-
मैंने लड़के को देखा था।
नोट : सामान्यतः कर्म कारक एवं संप्रदान कारक की विभक्ति को
हो सकती है। परन्तु, कभी-कभी को विभक्ति प्रयोगानुसार कर्ता कारक की भी। जैसे – माँ को कार चलानी पड़ी।
2. कर्म कारक (Accusative Case)
क्रिया का प्रभाव या फल जिस संज्ञा/सर्वनाम पर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। यथा-
रंजन पुस्तक पढ़ रहा है।
रजनी ढोलक बज़ा रही है।
राजन गेंद खेल रहा है।
इनमें क्रमशः पुस्तक, ढोलक तथा गेंद कर्म हैं। ये तीनों क्रिया के आधार हैं। पढ़ी जा रही है क्या-पुस्तक; बजाई जा रही है क्या-ढोलक; खेली जा रही है क्या-गेंद। अतः ये तीनों कर्म कारक हैं।
विभक्तियाँ-सामान्यतः कर्म के साथ कोई विभक्ति नहीं लगती। उपर्युक्त तीनों वाक्यों में कोई विभक्ति नहीं है।
कभी-कभी कर्म के साथ ‘को’ या ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे- कृष्ण ने अर्जुन को समझाया। (को)
उसने मुझे/मुझसे कहा (से)
राम ने रावण को मारा (को)
कर्म की पहचान-वाक्य में कर्म की पहचान करने का उपाय यह है कि क्रिया के साथ ‘क्या’, ‘किसे’ लगाकर देखिए।
जो उत्तर मिलेगा-वह ‘कर्म’ होगा।
मुख्य और गौण कर्म-कभी-कभी वाक्य में एक साथ दो कर्म मिलते हैं। यथा-
दूधिया ग्राहकों को दूध दे रहा था।
माँ बच्चे को खाना खिला रही थी।
अध्यापक शरारती बच्चों को दंड दे रहा था।
इनमें ग्राहकों को, बच्चे को, बच्चों को गौण कर्म हैं तथा क्रमशः दूध, खाना और दंड मुख्य कर्म हैं। मुख्य कर्म की पहचान यह है कि वह क्रिया के समीप रहता है तथा उसमें विभक्ति नहीं लगती। जबकि गौण कर्म क्रिया से दूर रहता है तथा उसमें विभक्ति का प्रयोग होता है।
कर्म कारक के परसर्ग (को और शून्य) का प्रयोग
(1) उपर्युक्त वाक्यों में शून्य विभक्ति का प्रयोग हुआ है परन्तु यदि
कहा जाए कि शिक्षक छात्रों को पढ़ाते हैं तो इनमें को परसर्ग |
का प्रयोग दृष्टिगत होता है। वस्तुतः शून्य परसर्ग में अनुक्त को
की ही स्थिति होती है।
(2) द्विकर्मक क्रियाओं में गौण द्वितीयक कर्म के साथ को का
प्रयोग होता है; जैसे-
मोहन ने रमेश को पत्र भेजा था।
उपर्युक्त वाक्य में भेजना क्रिया द्विकर्मक है क्योंकि इसमें रमेश
तथा पत्र दोनों भेजना क्रिया से प्रभावित कर्म हैं। इसमें प्रधान
कर्म पत्र है तथा गौण कर्म रमेश है।
3. करण कारक (Instrumental Case)
करण का अर्थ है-साधन संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप की सहायता से क्रिया संपन्न होती है, उसे करण कारक कहते हैं। इसकी विभक्तियाँ हैं- ‘से’, ‘के द्वारा’ ।
उदाहरणार्थ-
उसने पेंसिल से चित्र बनाया।
रविदत्त दाएँ हाथ से लिखता है।
उसे पत्र द्वारा सूचित कर दिया गया है।
4. संप्रदान कारक (Dative Case)
जिसके लिए क्रिया की जाती है, या जिसे कुछ दिया जाता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। इसके परसर्ग को, के लिए, के हेतु, के वास्ते हैं।
यथा-
अध्यापक ने छात्रों के लिए पुस्तक लिखी।
अपनी पुस्तकें दूसरों को मत दो।
बाबू ने भिखारी को दस पैसे दिए।
उपर्युक्त वाक्यों में क्रमशः ‘छात्रों के लिए’, ‘दूसरों को’, ‘भिखारी को’, ‘पेट के वास्ते’ में संप्रदान कारक है। इनमें किसी को कुछ ‘प्रदान’ करने का भाव निहित है।
ध्यान दीजिए-‘को’ परसर्ग कर्म कारक तथा संप्रदान कारक दोनों में प्रयुक्त होता है। अतः इसका निश्चय सावधानीपूर्वक
करना चाहिए कि ‘को’ परसर्ग युक्त शब्द कर्म कारक है या संप्रदान। प्रायः डिकर्मक क्रियाओं वाले वाक्यों में ‘को’ परसर्ग संप्रदान
कारक के लिए आता है।
5. अपादान कारक (Ablative Case)
‘अपादान’ अलगाव के भाव को प्रकट करता है। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से अलग होने के भाव प्रकट हों, उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान की विभक्ति ‘से’ है।
उदाहरणतया-
मोहन छत से कूद पड़ा।
वह कल ही दिल्ली से लौटा है।
यमुना यमुनोत्री से निकलती है।
करण और अपादान कारक में अंतर
करण और अपादान दोनों कारकों में ‘से’ परसर्ग प्रयुक्त होता है। जहाँ साधन (करण) के अर्थ में ‘से’ का प्रयोग है, वहाँ करण कारक; और जहाँ अलग होने के अर्ध में ‘से’ का प्रयोग होता है, वहाँ अपादान कारक होता है।
जैसे-
सुनील गाड़ी से मद्रास गया। (करण)
सुनील गाड़ी से गिर गया। (अपादान)
हम शहर से आए हैं। (अपादान)
6. अधिकरण कारक (Locative Case)
क्रिया होने के स्थान और काल को बताने वाला कारक ‘अधिकरण कारक’ कहलाता है। इसकी विभक्तियाँ हैं में, पर, के ऊपर, के अंदर, के बीच, के मध्य, के भीतर आदि।
उदाहरणतया-
स्थान बोधक-चिड़िया पेड़ पर बैठी है।
सिंह वन में रहता है।
घर के भीतर बैठो।
आँगन के बीच में चारपाई बिछा दो।
छत के ऊपर चले जाओ।
विभक्ति-रहित अधिकरण-कई स्थलों पर अधिकरण कारक की विभक्ति लुप्त हो जाती है।
जैसे-
वह साल आएगा।
इस जगह पूर्ण शांति है।
वास्तव में उपर्युक्त उदाहरणों में ‘साल’ का आशय ‘साल में’, ‘जगह’ का आशय ‘जगह पर है।
7. संबंधकारक (Genitive Case)
एक संज्ञा या सर्वनाम का दूसरी संज्ञा या सर्वनाम से संबंध बताने वाले शब्द-रूप को संबंधकारक कहते हैं। इसके परसर्ग हैं – का, के, की, रा, रे, री।
उदाहरण-
सुरभि का लेख सुंदर है।
उसके वचनों पर ध्यान दो।
ये मेरे मित्र हैं।
यह मेरा घर है।
सम्बंध कारक के परसर्ग
(का, की, के, रा, री, रे, ना, नी, ने) का प्रयोग
(1) सम्बंध कारक के का परसर्ग से एकवचन पुल्लिंग बोध का होता।
है, के परसर्ग से बहुवचन पुल्लिंग का बोध होता है और की का
प्रयोग स्त्रीलिंग एकवचन तथा बहुवचन दोनों में होता है, जैसे-
(i) मोहन का भाई सोहन आया हैं। (ii) इस बाग के आम बहुत मीठे है।(एकवचन पुल्लिंग) (iii) रामानंद की पाँचों बहनें पढ़ने में तेज हैं। (बहुवचन स्त्रीलिंग)
(2) मेरा, मेरी, मेरे, हमारा, हमारी, हमारे, तेरा, तेरी, तेरे, तुम्हारा,
तुम्हारी, तुम्हारे आदि सार्वनामिक संदर्भों में का, के, की।
परसर्ग रा, रे, री के रूप में परिवर्तित रूप धारण कर लेते हैं।
सम्बंध कारक के ये परसर्ग सम्बंध, स्वामित्व, प्रयोजन, मात्रा,
गिनती, वजन, विशेषता आदि बताने में सम्बंध-सूत्र का काम
(3) कहीं-कहीं का, के, की के लिए वाला, वाले, वाली शब्दों का
प्रयोग भी होता है; जैसे- बाबा वाली छड़ी, सोने वाली घड़ी आदि।
(4) सम्बंध कारक के इन परसर्गों के स्थान पर इय, इ. इण आदि
कुछ प्रत्ययों का प्रयोग होता है; जैसे- राजा का आदेश-राजकीय आदेश, सरकार का काम – सरकारी काम, अरब का घोड़ा – अरबी घोड़ा, ग्राम की नारियाँ-ग्रामीण नारियाँ आदि।
8. संबोधन कारक (Vocative Case)
संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारा, बुलाया, सुनाया या सावधान किया जाए, उसे संबोधन कारक कहते हैं।
जैसे-
हे भगवान! मुझे दुखों से बचाइए।
अरे भाई! तुम अब तक कहाँ थे।
अजी श्रीमान! इधर तशरीफ लाइए।
नोट –
(1) संबोधन कारक में विशेष ध्यान रखने की बात यह है कि इसमें
बहुवचन वाले कर्मों में भी अनुस्वार नहीं लगता है; जैसे-
बालको! शांत बैठो। मित्रो! अब मैं जाना चाहता हूँ।
(2) संबोधन कारक की विभक्तियों को परसर्ग नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे पूर्ववर्तिनी होती है। अर्थात् शब्द के पहले आती है; जैसे-
माता! ऐ लड़के!
(3) संबोधन कारक में अनुक्त अर्थात् शून्य विभक्ति भी चलती है;
जैसे- माताओं, मित्रों, बहनों आदि।
(4) कारकों के प्रयोग से संज्ञा-सर्वनाम क्रिया आदि पदों के रूपों में
अनेक परिवर्तन होते हैं।
★★★ निवेदन ★★★
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