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कारगिल के युद्ध पर निबंध / essay on Karagil War in hindi
रूपरेखा (1) प्रस्तावना, (2) पाकिस्तान की नीयत, (3) भारतीय कार्यवाही, (4) उपसंहार।
प्रस्तावना-
भारत और पाकिस्तान दो पड़ोसी देश हैं। पाकिस्तान का निर्माण सन् 1947 में भारत विभाजन के पश्चात् हुआ था। इसकी स्थापना इस्लाम धर्म के आधार पर हुई है। भारत सदैव इस पड़ोसी देश से मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की अपेक्षा करता रहा है, परन्तु कश्मीर समस्या को लेकर इन दोनों के मध्य अब तक तीन युद्ध हो चुके हैं। तीनों बार ही पाकिस्तान को पराजय का मुँह देखना पड़ा ।
कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन पाकिस्तान ने आक्रमण करके इसके कुछ भाग पर कब्जा कर लिया था। तब से कश्मीर का वह भाग उसके कब्जे में है। उस भाग को पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है। कश्मीर के शेष भाग पर अधिकार करने के लिए ही उसने सन् 1965 और 1971 में भारत पर आक्रमण किये लेकिन मुँह की खानी पड़ी। सन् 1971 के युद्ध में तो उसका एक भाग टूटकर अलग हो गया तथा नये देश ‘बंगला देश का उदय हुआ। तब से ही पाकिस्तान भारत से बदला लेने के लिए नये-नये षडयन्त्र रचा करता है।
पाकिस्तान की नीयत-
भारतीय प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने भारत और पाकिस्तान के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बस के द्वारा लाहौर की यात्रा की। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी कदम आगे बढ़ाया और लाहौर समझौता हुआ। अभी लाहौर समझौते के हस्ताक्षरों की स्याही सूखने भी न पायी थी कि पाकिस्तान ने बर्फीले और चट्टानों से भरे कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर दी। उसने भाड़े के सैनिकों तथा अपने सैनिकों के साथ नियन्त्रण रेखा पार करके भारतीय क्षेत्र में चौदह किलोमीटर तक अन्दर घुसकर कारगिल, द्रास और बटालिक क्षेत्र की ऊँची चोटियों पर कब्जा कर लिया।
1972 में शिमला समझौते के अनुसार इस क्षेत्र में यह समझौता हुआ कि सर्दियों में यह क्षेत्र सैन्य-विहीन रहेगा। भारतीय सेना सर्दियों में इस क्षेत्र की सभी चौकियों को खाली करके नीचे उतर आती है। पिछले 27 वर्षों से यही परम्परा चली आ रही थी। किसी भी पक्ष इस दौरान नियंत्रण रेखा के सम्बन्ध में कोई आशंका व्यक्त नहीं की थी। भारत पाकिस्तान से मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन पाकिस्तान ने विश्वासघात करके इस क्षेत्र में घुसपैठ कर दी। इस कार्यवाही का उद्देश्य सियाचिन को जाने वाली सड़क पर नियन्त्रण करके सियाचिन को अलग-थलग करना और शेष कश्मीर पर कब्जा करना था।
भारतीय कार्यवाही-
भारतीय गुप्तचर संस्थाओं ने सरकार को इस घुसपैठ की जानकारी बहुत पहले दे दी थी, लेकिन निर्णय लेने में देरी हो गयी। 9 मई को भारतीय नेताओं ने कुछ निर्णय लिया और भारतीय स्थल सेना को घुसपैठियों की टोह लेने के लिए तथा समुचित कार्यवाही का आदेश दिया। 14 मई को पाकिस्तानी घुसपैठियों की टोह लेने गये 6 भारतीय जवान पाकिस्तानी घुसपैठियों की चपेट में आ गये। भारतीय स्थल सेना ने घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए कार्यवाही आरम्भ कर दी, लेकिन शीघ्र ही अनुभव किया कि अकेली भारतीय स्थल सेना उन्हें खदेड़ने में असमर्थ है, कारण पाकिस्तानी घुसपैठिये कारगिल, द्रास, बटालिक तथा मश्कोह घाटी की ऊँची चोटियों पर कब्जा किये बैठे हैं। उन्होंने बंकर बना रखे हैं और उनके पास आधुनिक हथियार भी हैं।
ये घुसपैठिये आक्सीजन की कमी वाले क्षेत्र में 15,000 मीटर ऊँचाई वाली घाटियों पर हैं और उन्हें हैलिकॉप्टरों से सहायता पहुँचाई जा रही है। 26 मई, 1999 को भारतीय वायुसेना को इनके विरुद्ध हवाई हमला करने का आदेश दिया गया। वायु सेना ने दुश्मन के ठिकानों को अपना निशाना बनाया। दुश्मन के अनेक सैनिक मारे गये तथा बंकर नष्ट हो गये। इससे दुश्मन घबरा गया और पाकिस्तान सरकार ने भारत से बातचीत की पेशकश की। 9 जून, 1999 को पाकिस्तानी विदेश मंत्री भारत आये, लेकिन भारत ने उन्हें स्पष्ट कर दिया कि जब तक घुसपैठियों को वापस नहीं बुला लिया जाता तथा जब तक एक भी घुसपैठिया भारतीय सीमा में है, उसे मार भगा जाता, तब तक कोई बातचीत नहीं हो सकती।
इस बीच पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इधर-उधर दौड़ लगाते रहे, उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से इजाजत माँगी और दौड़ते हुए अमेरिका जा पहुँचे। उन दोनों के मध्य तीन घण्टे चली वार्ता के परिणामस्वरूप पाकिस्तान ने अपनी सेना को नियंत्रण रेखा के पार वापस बुलाने के फैसले की घोषणा की। दोनों देश के सैनिक अधिकारियों के मध्य बातचीत हुई। भारत ने 16 जुलाई तक सभी पाक सैनिकों की वापसी का अल्टीमेटम दे दिया।
उपसंहार –
हमें इस पाकिस्तानी घुसपैठ से सबक लेना चाहिए कि पाकिस्तान पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। हमें अपने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए सदैव तत्पर और आधुनिकतम हथियारों से लैस रहना चाहिए।
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◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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